घूंघट
घूंघट
समाज की कुछ प्रथाएं है जो शायद अच्छी से ज्यादा लोगों को दबा के रखने वाली है। ऐसे परम्परा जो जिसका परिणाम अच्छा के साथ बुरा भी है।
अभी मुश्किल में 10 दिन भी नहीं हुए विजय की शादी को जिसकी पत्नी डॉक्टर है एक नजदीक के अस्पताल में। वह पढ़ी लिखी नई ज़माने की स्वछंद विचारों की लड़की है। सारा परिवार उस से खुश है। बहू बड़ी अच्छी है जो नौकरी भी करती है और समय निकाल कर घर के कामों में भी हाथ बंटा लेती है।
आज मोहल्ले के शर्मा जी की पत्नी घर पे आयी तो बहू ने चाय दिया और प्रणाम किया । उसके बाद वह अपनी सासू मां से बोली ,"मां जी! मुझे कुछ फ़ाइल पढनी है मरीज की मैं अपने कमरे में जाऊं।" उसकी सासू मां ने भी आज्ञा दे दी।
शर्मा जी की पत्नी ने कहा कि तुम्हारी बहु की आदतें तो बाकी सब ठीक और पढ़ी लिखी भी है बस घूँघट नहीं रखती। दिन भर तो वैसे अपनी डॉक्टर पोशाक में रहती लेकिन पर्दा उसमें नहीं है।
विजय की माँ ने मुस्कुराते हुए कहा कि वह नए जमाने की पढ़ी लिखी और अपने पैर पर खड़ी लडक़ी है। वह कहां इन पर्दे और घर में दबा के रखी जाने वाली बहुँओ जैसे है जैसे हम लोग थे और ऐसे होना भी नही चाहिए। घूँघट से ज्यादा जरूरी सम्मान देना है।
इस घटना को काफी समय बीत चुके हैं। आज शर्मा जी के यहाँ पुलिस आयी थी सुना है उनकी बहू ने अपनी सास और पति पर दहेज का आरोप लगाया है। सुनने में आ रहा कि यह बात भी गलत है क्योंकि शर्मा जी का परिवार ऐसे नहीं।उन्होंने अपने बेटे की शादी गरीब घर की लड़की से इसलिए किआ जिससे वह आये और सब सम्भाल ले क्योंकि उन्हें कामकाजी घरेलू बहु चाहिए न कि बाहर कमाने वाली।
पुलिस के आने के बाद शर्मा जी की बहू घूँघट में लड़ते हुए बाहर निकली और सड़क पर न अजाने क्या क्या बोलने लगी अपने सास और ससुर को। चलो किसी तरह मामला शान्त हुआ और कुछ दिन बाद पता चला कि शर्मा जी की बहू अपनी सास से अलग रहने के लिए ये सब नाटक किआ था। ये सब जानकर मोहल्ले वाले कहने लगे बहु अगर घूँघट में हो तो जरूरी नहीं वह सम्मान देगी और बिना घूँघट वाली नहीं।कभी कभी बिना घूँघट वाली बहु पर्दे वाली से ज्यादा अच्छी और सम्मान देने वाली होती है।
समाज की व्याप्त ये विचार की बहू का मतलब घूँघट में दबी स्त्री नहीं बल्कि घर से निकलकर अपने सास ससुर माता पिता और पति का सम्मान बढ़ाना भी है।