घर में भेड़िये

घर में भेड़िये

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रात भर इमली दर्द से कराहती रही, पोर पोर फोड़े की तरह पिरा रहा था।

उसे जानवरों की तरह पीटा गया।

कसूर- नारी निकेतन की संचालिका के पति को उसने चाँटा मारा, उसकी हवस की टपकती लार के विरोध में। "माई, हमको ये बापू बहुत मारता है, चिमटी काटता है, उसकी बात न माने तो हाथ मरोड़ता है। बहुत गन्दा है ये, नहीं रहना यहाँ।" सात साल की इमली अपनी माँ से बोली।

इमली अपनी बड़ी बहिन के यहाँ भेज दी गई। "जीजा, हम तुम्हाई गोद मे न बैठेंगे, हमसे जबराइ न करो, हमाए गाल न छुओ। अपना हाथ परे हटाओ जीजा।

इमली मामा के घर पहुँचा दी गई, "मामी हम चौका बासन समेट दिये,अब सोने जाय।"

"पैर पिरा रये, तनिक पैरन में तेल मल दे।"

"अरे इमलिया, सोने से पहिले भैया (मामी का भाई) को दूध गरम करके दे आ।"

"भैया, हाथ छोड़ो, हमारा...."

नई छोड़ता, का करेगी तू...

"येल्लो....."

गरम दूध भैया के ऊपर उड़ेल दिया। बिलबिला गया, मारने दौड़ा--- इमली भागी, अंधेरी सड़क पर कब तक भागती रही,नहीं जानती, होश आने पर अपने को नारी निकेतन में पाया।

सुबह उस पर निकेतन के नियमों को न मानना, लोगों से मारपीट करना और भी दोष लगाकर नारी सुधार गृह भेज दिया गया।

इमली हँस पड़ी.....नारी...वो तो गूँगी, बहरी, चेतना शून्य...देह....है।


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