घर आजा परदेसी
घर आजा परदेसी
जिंदगी में बहुत बार हमको दूर के ढोल सुहावने दिखते हैं और हम अपना शहर अपना देश छोड़कर दूसरी जगह चले जाना होता है ।फिर वापस जिंदगी में बहुत बार ऐसा होता है ,कि हमको वापस अपने वतन लौटने की इच्छा होती है।
मन में यह बोल गूंज रहे होते हैं घर आजा परदेसी तेरा देश पुकारे।
यह एक सच्ची कहानी है ।और यह एक इतने मेहनती और सच्चे इंसान की कहानी है ,
जिन्होंने अपने मेहनत और बलबूते पर बहुत कुछ हासिल करा है ।उन्हीं की जुबानीः
एक दिन दिन सुबह-सुबह 5:00 बजे अमेरिका से मेरी बहन का कॉल आया ।उसने बोला ब्लड रिलेशन शिप के ऊपर तुम दोनों भाई भाभी की फाइल अप्रूव हो गई है । तो तुम लोग अब अमेरिका जाओ ।
मैं बहुत खुश हुआ । मैंने सोचा मैं यहां काफी गरीबी में जी रहा हूं।
जितना करना चाहता हूं। उतना नहीं कर पा रहा हूं ,तो हम दोनों अमेरिका जाते हैं वहां से कमाकर बच्चों को भेजेंगे। तो अच्छे से सेट हो जाएंगे। इस जज्बे के साथ मैं और मेरी पत्नी दोनों अमेरिका के लिए रवाना हुए ।वहां हम बहन के घर गए ।
उसने हमको बहुत आवकार दिया। खुश हुई कि हम उसके बुलाने पर वहां चले गए ।
2 दिन बीते और बहन ने बोला तुम अपना ठिकाना देखो ,और अपनी रोजगार ढूंढो।
संडे तक तुम यहां रह सकते हो।उसके बाद तुमको अपना काम और ठिकाना ढूंढना पड़ेगा। मेरे ऊपर तो जैसे बिजली गिर पड़ी। मुझे ऐसा लगा, कि मेरी सगी बहन जिसने मुझे यहां बुलाया इस तरह से घर से बाहर निकाले ,मानने में नहीं आया।
मगर बाद में लगा कि यह अमेरिका का पानी चढ़ा है इसको अभी, यह अपने छोटे भाई को इस तरह से बाहर निकाल रही है। फिर हमने बोला ,तुम ऐसा करो हमको कोई काम ढूंढ दो ,रहने का ठिकाना ढूंढ दो ,बहन बोली यहां किसी को फुर्सत नहीं है। हम अपना काम करें ,या तुम को देखें। अपने आप इधर-उधर ढूंढो। कांटेक्ट बनाओ। और हमारा काम अमेरिका बुलाना था, हमने तुमको बुला दिया है। अब आगे तुम अपनी तरह से देखो। "
क्या करते, हमने सोचा मंदिर जाते हैं दर्शन करते हैं । फिर सोचेंगे क्या करना है ।वहां पर सर्व धर्म मंदिर एक ही होता है ।एक ही परिसर में बहुत सारे मंदिर होते हैं ।तो हम मंदिर जाकर के दर्शन करके बाहर निकल रहे थे ,तो हमें एक सरदार जी मिले बड़े अच्छे से दिख रहे थे।
बोले भाई "कहां से आए हो?", हमने कहा "इंडिया से गुजरात से आए हैं।"
थोड़ी देर बात करी उनसे। और बात बात में उनसे पूछा कि यहां कहीं रहने का ठिकाना, और काम मिलेगा क्या। तो उन्होंने कहा दूसरी जगह क्यों जाते हो तुम।
मेरे मोटेल में आ जाओ, मोटेल मतलब धर्मशाला कह लीजिए, जहां रहने खाने की सुविधा होती है। हमने सोचा कि मरता क्या ना करता चलो ,अपन या वहां चलते हैं। हम दोनों जने उनके साथ में उनकी मोटेल पर गए।
इन से काम पूछा क्या काम करना होगा। और पगार क्या होगा। तो उन्होंने बताया कि हमको वहां रूम्स के अंदर चद्दर बिछाने होगी ,रूम सर्विस देनी होगी । और रहने खाने को वहां पर जगह मिल जाएगी। हमने सोचा ,एक बार तो हम यहीं पर काम कर लेते हैं । और फिर हम ने वहां बहन को फोन से बोल दिया ।और अपना काम चालू कर दिया ।इसी तरह दिन बीतते गए, जैसे-जैसे पैसे इकट्ठे होते हम उनको घर भेज देते ।और जब तक सिटीजनशिप नहीं मिली। 8 साल हमने वहां खड़े पग नौकरी करी ।
उसके बाद सिटीजनशिप का लेटर आया तो हम इंटरव्यू के लिए गए, हम दोनों को सिटीजनशिप मिल गई ।उसके बाद जब तक पेंशन चालू हुई तब तक हम वहां और रुके। और इसी तरह खड़े पग काम करते रहे ।दिन में 10 घंटे खड़े रहकर काम करना ।और पैसे इकट्ठे करते रहे। और जिस दिन पेंशन चालू हुई, उसके दूसरे दिन मैंने मेरी पत्नी से बोला चलो अपन वापस इंडिया चलते हैं ।बस अपना काम खत्म हुआ, अब अपन यहां के सिटीजन हो गए हैं। तो अपने बच्चों का भविष्य सुधार सकते हैं। इस तरह हमने करीब ₹7000000 इकट्ठे करके घर पर भेजें ।बच्चों को भेजें। उन लोगों ने घर दुकान सब सेट किया ।और हम लोग को बोला पापा मम्मी अब वापस आ जाओ। बहुत हुआ। अब अपन इतने पैसे के साथ में मिलकर के अपना काम कर लेंगे। और अच्छी तरह जी लेंगे।
मैं मेरी पत्नी को बोला आ अब लौट चलें मेरा देश बुलाए। और हम दोनों वापस भारत गुजरात आ गए ।यहां आकर ऐसा लगा जाना जाने स्वर्ग में आ गए हो ।सच में अपना देश तो अपना देश ही है ।गरीबी में भी भले ही अपना देश में रहो तो बहुत अच्छा ।और दूसरे देश में रहो तो पैसा तो मिलेगा पर संतोष नहीं ।
