घी का दीपक

घी का दीपक

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"भैया बीस रुपये का देसी घी देना।" एक वृद्ध महिला की आवाज़ ने गोविन्द भाई का ध्यान खींचा जो अब तक अपनी दुकानदारी में व्यस्त थे।

रोज़ की तरह आज भी उनकी दुकान पर बहुत भीड़ थी । इतने में उनकी दुकान का नौकर बोला "सेठ जी बीस रूपए के हिसाब से कितना घी दूँ इनको ?" गोविन्द भाई कुछ कह पाते इसके पहले ही एक चमचमाती सफ़ेद कार गोविन्द भाई की दुकान पर आकर रुकी और सेठ घनश्यामदासजी दुकान पर आकर खड़े हो गए। "जय श्री कृष्णा सेठ जी। " क्या बात है आज आप स्वयं आये हैं, नौकर-चाकर छुट्टी पर गए हैं क्या या फिर आज कुछ विशेष है ? कहिये क्या सेवा करूँ आपकी?" गोविन्द भाई ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में पूछा । सेठजी बोले "कुछ विशेष तो नहीं पर हाँ, आपने सही कहा - नौकर-चाकर छुट्टी पर गए हैं। इतने में नौकर अंदर से पानी का गिलास ले आया - "ये लीजिये सेठजी, जलपान।" सेठजी बोले अरे बस, रहने दो और हाँ, मैं ज़रा जल्दी में हूँ ।", "आज ग्यारस का दिन है और सेठानीजी को तुलसाजी को दीपक लगाना है, इसलिए घी लेने आना पड़ा, जल्दी से पांच किलो डालडा घी पैक कर दो।" "क्या? डालडा घी ?" नौकर ने आश्चर्य से पूछा। "अरे हाँ, डालडा घी ही बोला मैंने, भगवान् को ही तो लगाना है। वैसे भी भगवान तो भाव के भूखे होते हैं, उनकी लिए तो सब बराबर, क्या देसी और क्या डालडा। क्यों सही कहा न गोविन्द भाई ?" गोविन्द भाई ने जल्दी से नौकर को घी पैक करने को कहा ।

"गोविन्द भाई । इन मांजी को बीस रुपये के हिसाब से कितना घी पैक करूँ?" तभी दूसरे नौकर की आवाज़ आई। अब गोविन्द भाई झुंझलाते हुए वृद्धा से पूछने लगे "आपको बीस रूपए का घी किसलिए चाहिए ? इतना तो पन्नी में पैक करने पर ही चिपक जायेगा ? " बीस रुपए का ही चाहिए या थोड़ा ज्यादा दूँ?" वृद्धा बोली "भैया । बीस रूपए का ही चाहिए ।" "अरे मांजी, इतने से घी को क्या ले जाओगी और क्या रोटी पर लगाओगी ?" तभी वृद्धा बोली "आज ग्यारस है ना, मुझे तुलसाजी को घी का दीपक लगाना है।" "खाने के लिए नहीं चाहिए ।" गोविन्द भाई को दो पल के लिए जैसे कुछ सूझा ही नहीं । जल्दी से गोविन्द भाई ने नौकर को आदेश दिया "दे दे जल्दी से मांजी को घी, दिया लग जाये इतना, लगभग बीस ग्राम।"

घनश्यामदासजी अपनी बगलें झाँक रहे थे और गोविन्द भाई सोच रहे थे, भगवान किसके भाव के भूखे हैं ? वृद्धा के या सेठ जी के?"


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