एनकाउंंटर

एनकाउंंटर

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4 दिसंबर 1998 की वो रात..

मैं कोटद्वार में लखनऊ की बस का इंतजार रहा था..ठंड से मेरे दाँत किटकिटा रहे थे..पहाड़ों से आ रही ठंडी हवा मेरे पूरे शरीर को जकड़ रही थी..तभी सन्नाटे को चीरती हुई कुछ लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाजेंं सुनाई देने लगी..

अरे मार डाला..छोटा ही तो था..बड़ी बेरहमी से मारा है..वहाँ मौजूद लोग कुछ इसी तरह की बात कर रहे थे..सामने एक सफेद रंग की मारुति 800 कार खड़ी थी..

सभी लोग उसी कार की तरफ दौड़ रहे थे..मैं भी कार के पास पहुँच गया..कार के चारों शीशे बंद थे..अगले शीशे पर 10-12 छेद साफ-साफ नजर आ रहे थे..

ड्राइविंग सीट पर एक 20-25 साल का युवक खून से लथपथ पड़ा था..मुझे समझते देर नहीं लगी कि युवक को 10-12 गोलियां मारी गई हैं..

मैंने पास केे PCO से पुलिस फोन किया..5 मिनट में ही सायरन बजाते हुए पुलिस वहां पहुँच गई..गाड़ी में से इंस्पेक्टर ओपी ध्यानी उतरे..खून से सने युवक को ध्यान से देखते ही उन्होंने अपने सीनियर को वायरलस किया...सर.. विजय का कत्ल हो चुका है..किसी ने गोलियों से भून डाला है..बड़ी गंदी मौत मरा है..विजय कुछ साल पहले ही पुलिस चकमा देकर फरार हुआ था..बीमा कंपनी से 50 लाख रुपये की धोखाधड़ी के आरोप में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था..


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