हाय रे बेरोजगारी
हाय रे बेरोजगारी
भाई बेरोजगारी चरम पर है। नौकरी ढूंढते-ढूंढते जूते घिस चुके हैं। .घर से पैसे जेब खर्च के लिए मिलते हैं। लेकिन वो पैसा नए जूते खरीदने में चले जाते हैं। रोज सुनना पड़ता है कि इतने पैसों का क्या करते हो। लेकिन क्या करें बेशर्मों की तरह बार-बार हाथ फैलाना ही पड़ता है। नहीं-नहीं आप गलत समझ रहे हैं ये कहानी मेरी नहीं है। मेरे दोस्त मन्नु की है। अखबारों में इश्तिहार देख-देखकर मन्नु थक चुका था। हर बार रिसेप्सनिश्ट की नौकरी निकलती वो भी लड़कियों के लिए। काफी कोशिश करने के बाद जब नौकरी नहीं मिली तो मन्नु के दिमाग में बहुत ही विस्फोट आइडिया आया। उसने रिसेप्सनिश्ट की नौकरी करने की ठान ली।
लेकिन इस नौकरी के लिए शर्त थी वो भी लड़की वाली। फाइनली मन्नु ने सोचा क्यों न वो लड़की बनकर रिसेप्सनिश्ट बन जाए। फिर क्या झट से बाजार से बुर्का और सलवार सूट ले आया। फिर होठ लाल और गाल सफेद कर मन्नु इंटरव्यू के लिए गया। बॉस को उसकी हर अदा पसंद आई। और उसे फौरन नौकरी पर रख लिया। अब मुन्नी बन चुका था। बुर्का पहनकर स्कूटी से दफ्तर आने-जाने लगा। कुछ दिन तक तो सब ठीक चला। लेकिन इसके बाद मन्नु। अरे नहीं-नहीं मुन्नी। के साथ हादसा हो गया। आखिर उसके साथ क्या हुआ। .ये खुद मन्नु अरे नहीं भाई मुन्नी बताएंगी।
मन्नु (मुन्नी)- भइया। मेरे साथ बहुत बुरा हुआ। हर दिन की तरह ही मैं कल भी शाम को 5 बजे बुर्का पहनकर दफ्तर से घर लौट रहा था। तभी 5 मुसदंडों ने अपनी कार से मेरी स्कूटी का पीछा किया। मैं घबरा गया सर्दी में पसीना छूटने लगा। मैं बेचारा डर का मारा।
स्कूटी का एक्सीलेटर तेज घुमाने लगा। स्कूटी की रफ्तार बढ़ गई। लेकिन दरिंदों की हवस की रफ्तार मेरी स्कूटी से काफी ज्यादा थी। फिर क्या गुंडों ने अपनी काली लपलपाती कार से मेरी छोटी सी भोली सी स्कूटी को टक्कर मार दी।
मैं स्कूटी के साथ ही गिर गया। कूल्हों में चोट लग गई। मेरे मुंह से आह निकलती उससे पहले मुसदंडों ने मुझे उठाया और कार में घुसेड़ दिया। उनमें इंसानियत नाम की चीज लुप्त थी। बेशर्मों ने मेरी चोट के बारे में एक सवाल नहीं किया। उल्टा मेरा बुर्का नोचने- फाड़ने लगे। एक पल तो लगा जैसे आज तो मेरी इज्जत खराब होकर रहेगी। गुंडों में हवस का इनकलाब देख खौफ में मेरा खून जम चुका था।
डर से मेरी आवाज दब गई थी। दबी हुई जुबान में मैंने कहा- भाईसाहब। लेकिन हवसी वहसी दरिंदे मेरा दर्द कहां सुनने वाले थे। उन पर तो हवस हिलोरे मार रही थी। एक लफंगा कह रहा था। बहुत खूबसूरत और गदराया हुआ माल मिला है। आज तो बिरयानी जैसा मजा आ जाएगा। तभी दूसरा वहसी बोला। अभी रहने दो कमरे पर आराम से लुत्फ उठाएंगे। फिर अचानक कार की ब्रेक लगी और कार धरती पकड़कर खड़ी हो गई।
फौरन कार के दरवाजे खुले। दरिंदों ने मुझे गोद में उठा लिया और सीधे 10 बाइ 10 के कमरे में पटक दिया। मैं भूखा-प्यासा ना पानी पूछा ना खाना। भूखे सियारों ने मुछे नोचना शुरू कर दिया। मैं कुछ बोल-पाता उससे पहले बुर्का चीथड़े हो चुका था। फिर कपड़े फटने लगे। जब सारे कपड़े उतर गए तो भूखे भेड़िए की भूख ही उड़ गई। दरिंदों की हवस आंखों से उतर चुकी थी। कमरे का माहौल शांत हो चुका था।
बस हवा सर सरा रही थी। कोई कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। फिर मेरी आवाज से कमरे का सन्नाटा टूटा। मैंना कहा भाइयो मैंने आप लोगों को काफी बताने की कोशिश की। लेकिन मेरी आवाज आपके कानों तक नहीं पहुंची। तभी एक शरीफ से गुंडे ने मुझसे पूछा- भाई ऐसी क्या जरूरत पड़ गई जो तुम खातून बन गए। फिर मैंने अपनी मजबूरी गिनानी शुरू की। मेरी मजबूरी और बेरोजगारी का ग्रंथ सुन पांचों दानव देव जैसे लगने लगे। इमोशनल हो गए। उनकी आंखों में आंसू आ गए। बहती हुए आंसू और सरसराती जुबान से एक ने मुझसे कहा।
भाई तुमने हमें ठगा है। आगे से ऐसा मत करना। एक सीख गांठ बांध लो--भले ही पकोड़े तल लेना। लेकिन दोबारा रजिया मत बनना नहीं तो फिर गुंडों में फंस जाओगे।
