एलिमनी
एलिमनी
कहानी
एलीमनी
काम के बोझ से थकी गुनगुन ने जैसे ही फेसबुक खोला तो अपने फोटो को देखते ही रह गई जो फेसबुक के द्वारा भेजा गया था। लिखा था “वी केयर यू गुनगुन। यूं कैन शेयर इट।दिस इज मोस्ट ब्यूटीफुल फोटो आफ टूडे। गुनगुन एकटक ,अपलक,उस फोटो को देखती रह गई। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह फोटो मेरा हो सकता है। फोटो तो बहुत खुशहाल लड़की का था जो कांजीवरम की मैरुन कलर की साड़ी पहने थी। सौलह श्रृंगार से सजी धजी उस लड़की ने तो मोगरे के महकते फूलों का गजरा भी लगा रखा था। वह अपने फोटो पर मोहित हो गई। और वह अपनी शादी के बीते दिनों में लौट गई जब वह दुल्हन बनी थी तो मुहल्ले की दो -तीन औरतों ने तो हाथ से छूकर देखा था और कहा था “अरे तू वही गुनगुन है! बिल्कुल दुर्गा देवी सी लग रही है। जब देवरानी के पहले लड़के देवांग का जसूटन हुआ था तब भी सास के विद्यालय से आई अध्यापिकाओं ने मम्मी से कहा था कि “आपने लड़कियां बहुत सुंदर पैदा की हैं।” गुनगुन ने अपने वर्तमान रूप को निहारा ,जो किसी भी कीमत पर फोटो वाले रूप से मैच ही नहीं करता। कितने वर्षों से उसने मेकअप ही नहीं किया। बस कम्पनी से मिली ड्रेस, आंखों पर चश्मा, सामने कम्प्यूटर और हाथ में मोबाइल। जीवन में काम के अलावा कुछ भी नहीं। सुबह साढ़े चार बजे उठकर घर का काम निपटाना, बच्चों को उठाना, बच्चे भी उठने में पूरी कसरत करवाते हैं। उनकी गलती भी क्या, बेचारे बच्चे ही तो हैं। और मां बाप को प्यार में नखरें दिखाना, उनका जन्म सिद्ध अधिकार है। पर बेचारों को यह अधिकार प्राप्त ही नहीं था। मां भी काम के बोझ के भार से दबी उन्हें वो प्यार नहीं दे पाती थी। बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, फिर आफिस के काम में जुट जाना। लगता है जैसे मैं कोई लड़की नहीं रोबोट हूं रोबोट। तभी मन ने स्वीकारा ‘हां तू रोबोट ही तो है। और इस रूप को तूने स्वयं ही स्वीकार किया है। याद कर वह दिन जब पता चला था कि विनीत एक मुस्लिम लड़की के साथ रहने लगा है लिव इन रिलेशनशिप में। उस समय तो बच्चे भी नहीं थे उसे किसी भी कीमत पर अपने जीवन में स्वीकार करना ही नहीं चाहिए था। न जाने किन संस्कारों की दुहाई देकर तू उसे चिपकी रही। आज इन बच्चों का भविष्य भी गांव पर लगा है।
बहुत ही शातिर थे दोनों। वास्तव में तो वे दोनों बहुत दिनों से एक साथ ही रहते थे। वो मुस्लिम लड़की,जिसका नाम रिहाना था। पहले दोनों ने मिलकर पुरानी दिल्ली के व्यस्त मार्केट में वैन लगानी शुरू की। वैन भी उसी रिहाना के नाम पर थी। विनीत की आई टी कम्पनी में बहुत अच्छी जाॅब थी फिर भी समझ नहीं आ रहा था कि इसने खाने की वैन क्यों लगाई?वो भी मांसाहार की। सास काफी विरोध करती थी लेकिन गुनगुन ने सोचा जाॅब छोड़ कर बिजनेस करने का ही मन हो और यह उसका बिजनेस के लिए प्रारंभिक कदम हो। उसका विचार सही निकला। एक दिन विनीत ने नौकरी छोड़कर मांसाहार का होटल खोलने की घोषणा कर दी। सास और देवर बहुत लड़े। सास का तर्क था कि बिरादरी में क्या मुंह दिखाऐंगे ; ब्राह्मण होकर नानवेज का होटल। लेकिन सब बातें उसके सिर के ऊपर से उतर गई। वह तो नानवेज पहले से ही खाता था। जब वह अपने परिवार के साथ गुनगुन को देखने आया था तो उसने गुनगुन को बताया था। लेकिन बातों का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग प्रभाव। प्रत्येक व्यक्ति अपने आचरण व विचारों के अनुसार शब्दों का अर्थ लेता है। गुनगुन ने सोचा कि लड़का बिल्कुल पारदर्शी चरित्र का है। शादी के बाद भी कोई बात नहीं छिपाएगा। जब रिश्ता होने से पहले अपनी कमी बता रहा। अर्थात पति-पत्नी के रिश्ते की नींव सत्य पर आधारित है। सुनकर वह इस लड़के की सच्चाई की दीवानी हो गई। उसकी इसी पारदर्शी गुण पर वह लट्टू हो गई। और अपने भावी जीवन साथी और जीवन के बारे में आश्वस्त भी। जब कि बड़े भाई ने पति-पत्नी के संबंधों की बारीकी को समझाया था कि नानवेज और वेज खाने वालों में समस्या आ सकती है। आज समझ में आता है कि इसने यह सोचकर बताया था कि यदि प्याज और लहसुन का भी प्रयोग न करने वाली लड़की यदि मांसाहारी पति स्वीकार कर सकती है तो मेरी प्रत्येक कमी को सहन कर सकती है। इससे मेरे परिवार की प्रतिष्ठा भी बनी रहेगी और मेरे संबंध भी चलते रहेंगे।
लेकिन यह तो हर प्रकार से अयोग्य था। केवल पैसे कमाना अच्छाई की कसौटी नहीं है। आधुनिक युग में अच्छी बड़ी नौकरी ही अच्छाई की कसौटी बन गया है। अरेंज मैरिज करने वाली लड़कियां भी पहले लड़के का पैकेज देखती है उसके अन्य गुणों पर ध्यान बाद में देती हैं और यही पैकेज उस लड़की के विनाश का कारण बन जाता है। हमारी संस्कृति में तो चरित्र को ही सबसे ऊपर रखा जाता था लेकिन अब इस अति आधुनिक भौतिकतावती युग में केवल पैसे की ही मान्यता बढ़ गई है। पिछले साल गुनगुन ने केंद्रीय विद्यालय में काउंसलर की अस्थाई पोस्ट पर कार्य किया था वो रकम भी इसने बिना पूछे ही बिजनेस में लगा दी। वो तो तब पता चला जब बिजनेस में अच्छी खासी रकम डूब गई। सास से भी सौलह लाख रूपए बिजनेस के नाम पर ऐंठ लिए थे। पहले तो सभी इसी भ्रम में थे कि बिजनेस बहुत उन्नति कर रहा है। अक्सर यह रात में घर आता ही नहीं था बल्कि इसका फोन आता था या मैसेज आता था कि होटल में कस्टमर्स अधिक हैं। कभी-कभी यह चार बजे घर आता था।
गुनगुन अकेले छह माह के जुड़वां बच्चों को संभालती। सारी रात आंखों में निकल जाती उसकी। सुबह को सास को स्कूल जाना होता। सारे दिन बाल संवारने का, आईना देखने का समय ही नहीं मिलता। इतनी भागादौड़ी करते करते भी बच्चे पलंग से नीचे गिर जाते। घर अब जेल से भी बदतर लगने लगा। वैवाहिक जीवन इतनी बड़ी सजा होगी ऐसा तो नहीं सोचा था।
इन्हीं विचारों में डूबीं गुनगुन न जाने कहाॅं-कहाॅं विचर गई। यह नई नवेली दुल्हन को छोड़ कर भी सुबह रोज चार बजे क्रिकेट खेलने के नाम पर निकल जाता था। सारे नियम धर्म, कायदे कानून औरत के लिए होते हैं। उसे महत्वपूर्ण जगह भी बताकर जाना पड़ता है। गुनगुन को तो अब पूरा विश्वास हो गया कि यह सुबह चार बजे भी उसी से मिलने जाता होगा। क्योंकि जब वह रिहाना पिछले साल होली पर आई थी तो बता रही थी कि उसने विनीत के साथ आठ नौ साल तक विप्रो कम्पनी में साथ काम किया है। वह लड़की तो घर भी आती जाती थी इसका अर्थ तो यह हुआ कि इस अपराध में मेरी सास भी बराबर की अपराधिनी है। कानून की प्रक्रिया बड़ी लंबी। ऊपर से सब कुछ काले कोट वालों के हाथ में। वकील को पैसे चाहिए उसे किसी के दर्द का क्या अहसास। मेंटिनेंस या एलीमनी तो बाद में मिलेगी। कितनी मिलेगी क्या मिलेगी कब मिलेगी कुछ पता नहीं ? फिलहाल तो मैं और मेरे बच्चे नारकीय जीवन जी रहे हैं। बुढ़ापे में माता-पिता के कंधे इतने सशक्त नहीं होते, वो भी मध्यम परिवार के जो तीन जीवों को पाल सकें और न्याय भी दिला सकें। न्याय मिलता है बस थोड़ी सी धनराशि के रूप में। मां बाप जो दान दहेज देते हैं सब पर उसका अधिकार। ससुराल से जो गहने मिले उन्हें भी कानून के माध्यम से लेना होगा। गुनगुन के हृदय में कसक उठी “मैं जो तिल तिल कर मर रही हूॅं क्या उसका हिसाब मिलेगा मुझे? अदालत में जो समय बर्बाद हो रहा है क्या वो समय मिलेगा मुझे?
अपनी कम्पनी से छुट्टी लेकर, बच्चों को घर पर रोते-बिलखते छोड़कर जो अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं क्या उनका हिसाब मिलेगा? कानून अंधा है उसे हर बात का सबूत चाहिए कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनके सबूत देने कठिन ही नहीं असम्भव हो जाते हैं। कानून आत्मा को सांत्वना नहीं दे सकता,दिल को सुकून नहीं दे सकता । न्याय दिलाने वाले जो माध्यम है वो तो आत्मा को छलनी छलनी कर देते हैं। इतने सालों तक लड़ने के बाद जो एलीमनी मिलेगी क्या वो पर्याप्त है। मेरे मासूम बच्चों के मन पर जो बुरा प्रभाव पड़ा क्या उसका हिसाब देगा कानून क्योंकि छोटे बच्चे बोल नहीं सकते । अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सकते लेकिन उनके मन पर भी सामने वाले के व्यवहार का प्रभाव पड़ता है जब मां चौबीस घंटे प्रताड़ित कुंठित रहती है काम में लगी रहती है तो वह बच्चों को वह प्यार वह सांत्वना वो लाड़ दुलार नहीं दे पाती जिसके वे अधिकारी हैं। क्या उस अभाव की पूर्ति करेगा कानून। जब मेरा एक एक पल एक-एक क्षण बच्चों के लिए कीमती था वह समय मैंने अदालत के चक्कर काटते हुए बिताया है घर के काम में बिताया है बच्चों की उपेक्षा करने में बिताया है, बच्चों के पालन पोषण की व्यवस्था करने में बिताया है क्या उसकी पूर्ति करेगा कानून? कानून केवल बाहरी उपाय कर सकता है । पति से खर्च दिलवा सकता है । एलिमनी दिलवा सकता है लेकिन मेरी आत्मा पर लगे घाव का इलाज नहीं कर सकता। लिव इन रिलेशनशिप अभिशाप है इस देश के लिए, समाज के लिए, परिवार के लिए, बच्चों के लिए । लिव इन रिलेशनशिप का दर्द महसूस करना हो तो मुझ जैसी औरतों का दिल खोज कर देखिए कि उनके बच्चे अनाथ हो जाते हैं पति के जिंदा रहते हुए पत्नी विधवा हो जाती है और उनकी दुनिया उजड़ जाती है। क्योंकि हर आदमी अपने परिवार के लिए अनमोल हीरा लेकिन जब यही अनमोल हीरा अपने परिवार को छोड़कर दायित्व से मुख मोड़ कर किसी और के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगता है तो दूसरा परिवार टूट जाता है। हर पिता अपने बच्चों के लिए हीरो लेकिन वही हीरो जब अपना दायित्व छोड़कर किसी और के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगता है तो बच्चे अनाथ ऐसा सोचकर उसने अपने दोनों बच्चों को अपने अंक में भर लिया और ईश्वर से प्रार्थना की कि ऐसे आदमी को जो भी उचित सजा हो वह देना क्योंकि जजों के वश में इसकी सजा देना है ही नहीं । इसने किसी के शरीर का हत्या नहीं की बल्कि इसने आत्मा की हत्या की है मन की हत्या की है दो बच्चों के भविष्य की हत्या की है इसलिए इसकी सजा केवल ईश्वर ही दे सकता है। इसकी सजा मौत नहीं बल्कि केवल अकेलापन है जैसे मैं अकेली अपने बच्चों के लिए यहां परेशान हूॅं ।यह अपने वृद्धावस्था में बिल्कुल अकेला हो इसे पानी देने वाला भी कोई ना रहे। पानी इसके पास हो और यह उठकर पानी पी न सके इतना मजबूर हो जाए तभी इसे पता चलेगा रिश्तो की गरिमा का।
गृहस्थ एक मंदिर है जिसमें पति और पत्नी मिलकर बच्चों के भविष्य का निर्माण करते हैं । समाज को आने वाली पीढ़ी प्रदान करते हैं और वह पूरी पीढ़ी ही समाज को आगे ले जाने का काम करती है लेकिन जब व्यक्ति गृहस्थ को तोड़कर इधर-उधर भटक जाता है तो केवल एक गृहस्थ ही नहीं बल्कि समाज का ताना-बाना भी टूट जाता है और गृहस्थ को तोड़ने वाले को, समाज की व्यवस्था बर्बाद करने वाले को सजा कानून नहीं दे सकता केवल ईश्वर दे सकता है। मैं अपने बच्चों को इतना सक्षम बनाऊंगी इतना सक्षम बनाऊंगी कि यह हाथ जोड़ेगा और बच्चे इसे क्षमा नहीं करेंगे। इसे मृत्यु नहीं देना ईश्वर! मृत्यु इसके लिए बहुत कम सजा है। इसे इतना लाचार ,बेबस ,बेचारा और अपंग बना दे कि यह दूसरों की मेहरबानियां पर जिंदा रहे । यह प्रार्थना करता रहे, गिड़गिड़ाता रहे और मेरे बच्चे इसकी कोई भी प्रार्थना स्वीकार न करें शायद यही मेरे लिए एलिमनी होगी।
