माॅं
माॅं
औरंगाबाद जिले में स्थित अजन्ता की गुफाएं देखकर लौट कर पूणे जाना था। रात घिर आई थी।भूख भी प्रचंड होकर बार-बार पेट की सुध लेने का आग्रह कर रही थी। अतः हम स्टेशन के सामने एक रेस्तरां में जाने लगे देखा स्टेशन के बाहर दो भिखारी एक स्त्री और एक ग्यारह - बारह वर्षीय लड़का आए और एक प्लास्टिक के बोरे से दो बड़ी -बडी पन्नियां बिछाई गंदी सी चादर का तकिया बनाया, सिर के नीचे लगाया और लेट गए। मैं उनकी गतिविधियों को बड़े ध्यान से देख रही थी।
निश्चित रूप से दोनों भीख मांगने के लिए की गई दौड़ धूप में थक गए होंगे। भीख मांगने के लिए भी तो सारे दिन खड़े रहना पड़ता है या बैठना पड़ता है, घूमना फिरना पड़ता है और बोलना पड़ता है। थकावट तो होना स्वाभाविक है। तभी दो मिनट बाद ही बच्चा भिखारी उठा और भिखारिन से कुछ कहा। भिखारिन ने बड़े प्यार से अपने पास बैठाया, आलिंगनबद्ध होकर प्यार किया फिर अपनी पिन्नी पर लेटाकर दोनों हाथों से उसके पांव दबाने लगी। यह दृश्य निश्चित रूप से माॅं बेटा होने का साक्ष्य बन गया।
देखकर मैं अभिभूत हो गई। हारी थकी मां भी अपना दुख भूल बच्चों का कष्ट हरने में रत हो जाती है।
