अनपढ़ा दर्द
अनपढ़ा दर्द
मम्मी मुझे भाई या बहन चाहिए अभी के अभी ।”
“अरे, एकदम यह कहाॅं से भाई बहन की जिद लग गई ।
भाई बहन क्यों चाहिए ?”
“मैं पार्क में जाता हूॅं। मुझे कोई अपने साथ खिलाता नहीं कहते हैं- “तू छोटा है तुझे खेलना नहीं आता।” यहाॅं तुम और पापा ऑफिस के काम में दरवाजा बंद करके लगे रहते हो।बस चुप रहो मीटिंग चल रही है कहते रहते हो।”
“तुम्हारे इतने खिलौने हैं । कमरा खिलौनों से भरा पड़ा है। सॉफ्ट टोयज, चाबी वाले और क्या चाहिए तुम्हें?”
“पर ये मुझसे बातें नहीं करते । मैं अकेला बोलता रहता हूॅं।जब दादा दादी आए थे तो वे लूडो साॅंप सीढ़ी खेलते थे,ब्लॉक से घर बनवाते थे। वे चले गए । उन्हें बुलवाओ बुलाओ उन्हें।”
“ तुम्हारा दिमाग खराब हो गया रिंकी! उल्टी सीधी जिद करते हो । वे कैसे रह सकते हैं हमारे साथ?”
“ क्यों नहीं रह सकते? मुझे चाहिए वे, बस चाहिए।” “चुपचाप अपने कमरे में जाओ और खिलौनों से खेलो ।मेरी मीटिंग शुरू होने वाली है । ज्यादा चूं - चप्पड़ की तो थप्पड़ लगेगा गाल पर।”
“कितना ही कुछ कर लो इसके लिए, रोज-रोज नई - नई फरमाइश रहती है । बिगड़ गए हैं पूरे । पता नहीं पहली औरतें कैसे संभाल लेती थी दस-बारह बच्चे? यहाॅं तो एक ने ही नाक में दम कर रखा है।
