भूख
भूख
अत्यधिक गर्मी में चलकर आने के कारण करण के कपड़े पसीने से तरबतर थे। उसका मुंह लाल हो रहा था।
“ माॅ़ जल्दी से घर चलो मुझे बहुत तेज भूख लगी है या मुझे कुछ खाने को दो। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले करण ने अपनी माॅं से कहा
“बेटा, अभी घर चलती हूॅं बस थोड़े से बर्तन रह गये है।”
माॅं बहुत तेज भूख लगी है। सुबह स्कूल जाते समय भी तुमने कुछ खाने को नहीं दिया था।”
“स्कूल में तुझे खाना तो मिलता है वहाॅं क्यों नहीं खाया?”
“रोज वहीं खाना खाया नहीं जाता ।” उसने रोते हुए कहा।
सामने ही फ्रिज पर रखी डलिया में रखे केले काले हो चुके थे। जिन्हें माला पिछले पांच-छह दिनों से देख रही थी। लेकिन मालकिन के डर के कारण उसकी कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई।
रोने की आवाज सुनकर अपने ए सी लगे कमरे से बाहर निकल कर मालकिन श्रेया आई।
“अरे करण बस एक काम कर दे । यह खाने का टिफिन सेठ जी को दुकान पर पकड़ा आ।”
“दीदी, बाहर चिलचिलाती धूप है। अभी स्कूल से आया है इसे भूख भी लगी है।”
“अरे बच्चे को मजबूत नहीं बनाएगी तो दुनिया में कैसे जिंदा रहेगा। उनका फोन आया था कि दुकान पर बहुत अधिक भीड़ है। वो नहीं आ सकते लेकिन यदि उन्होंने समय पर खाना नहीं खाया तो उनकी तबीयत बिगड़ जाएगी। वो वैसे ही ब्लडप्रेशर और शूगर के पेशेंट है। वो भूख बर्दाश्त नहीं कर सकते।”
“माॅं का आदेश पाकर भूख से तड़पता बच्चा चिलचिलाती धूप में टिफिन लेकर चल पड़ा।
