एक याद भरी पुरवाई
एक याद भरी पुरवाई
आज ठंड के कोहराम ने बीते कल पर दस्तक दी, तुम्हारा मेरे जीवन की दहलीज़ पर दस्तक देना याद आ गया।
वो भी जाड़ों का मौसम था, सुबह पाँच बजे हाईवे पर खड़ी मैं पटियाला जाने वाली बस का इंतज़ार कर रही थी। दूर-दूर तक सन्नाटों के सिवाय कुछ नहीं था, भोर ने अपनी पलकें उठाई तो आदित ने कुछ रश्मियों को अपनी मुट्ठियों की कैद से आज़ाद किया। थोड़ा अंधेरा छंटा तो पगडंडी से कुछ कदमों की आहट ने मुझे चौंका दिया। तुम पैरों से छोटे-छोटे पत्थरों को हवा में उछालते-खेलते हुए रोड़ की तरफ़ आ रहे थे, शायद तुम्हें भी कहीं जाना था।
बिंदास बेफ़िक्र से सिर्फ़ एक बैग कँधे पर लटकाए होंठों का गोल छल्ला बनाते सीटी बजा कर मेरे फेवरिट गीत को साज़ दे रहे थे, हाँ वही गीत तुम मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए।
जैसे-जैसे तुम नज़दीक आते गए तुम्हारा चेहरा साफ़ होता गया। एक अल्हड़पन सी शख़्सीयत लगी तुम्हारी, बहुत ही हैंडसम लग रहे थे। मेरे दिल का इतना हक तो बनता है एक धड़क चूकना आफ्टर आल हम भी हुस्न-ए-मल्लिका जवाँ हसीन और खूबसूरत है।
पर तुम, तुम इतने घमंडी निकले की एक नज़र भर मेरी तरफ़ देखा तक नहीं बस अपनी मस्ती में अठखेलियां करते रहे। ये तो मेरी खूबसूरती की तौहीन थी, मुझे बहुत गुस्सा आया तुम पर! हट प्राउडी कहीं के मैं भी भाव नहीं दूँगी सोच कर बस का इंतज़ार करने लगी।
बस आई, रुकी। दो ही सीट खाली थी, वो भी पास-पास एक ही रो वाली। मेरे मन में लड्डू तो फूटे तुम्हारे इतने करीब जो थी। पर पास-पास की सीट पर हम बैठे थे फिर भी तुमने मुझे नोटिस तक नहीं किया, आज पहली बार एेसा हुआ था की किसीने मुझे देखना तो दूर नोटिस तक ना किया। आज तक जो कोई मुझे एक नज़र देखता था दूसरी बार पलट कर जरूर देखता था।
और मन में जिसकी चाह हो और वो बात ना बने तो उत्सुकता और बढ़ जाती है, बस वैसे ही मैं तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करने के बहाने ढूँढती थी। कभी कुछ गिरा देती थी तो कभी कुछ ढूँढने लगती थी, पर नाकाम रही! तुम अपने दायरे से सिमटे रहे कानों में इयर फ़ोन लगाकर मोबाइल से सोंग सुनते रहे वो भी आँखें बंद करके।
मैं निराश होकर सो गई जब आँखें खुली तो पटियाला की सरजमीं पर बस रुकी थी। तुम एक नज़र किए बिना ही उतर गए और हम अपने अपने रास्ते चल दिए।
जब तक आँखों से ओझल ना हुए तब तक तुम्हें देखती रही। पर सच कहूँ एक छाप छोड़ गए थे तुम इस पगली के दिल के भीतर! पहली बार किसी अजनबी से इतना मोह जग रहा था। तुम मेरे मनपसंद हमसफ़र थे, पर तुम्हारी अकड़ याद आते ही नाराज़गी में होंठ का छल्ला बनाते तुम्हारी याद धुएँ में उड़ा देती थी।
उस बात को छह-सात महीने बीत गए होंगे, मैं मानों कुछ-कुछ भूल ही गई थी उस अनमने सफ़र को जिसमें मेरे जलवो की तौहीन हुई थी।
उस दिन बस शोपिंग के मूड़ में थी तो मोल के चक्कर काट रही थी। बहुत कुछ खरीदा भी की अचानक फ़ायर एलर्ट बज उठा और लोग आपाधापी में इधर-उधर भागने लगे। मैं भी सीढ़ीयों की तरफ़ भागने लगी तो पैर फ़िसला और धड़ाम से गिरने ही वाली थी की किसीकी बाहों ने थाम लिया। मैं घबराई सी आँखें बंद करके महसूस करने लगी याद करने लगी। एक हल्की सी खुशबू, हाँ ये वही खुशबू थी जो उस दिन साथ सफ़र करते तुम्हारे जिस्म से उठते मेरी साँसों में बस गई थी। कैसे भूल सकती थी आज भी ताज़ा मोगरे सी मेरी नस-नस में बह रही थी, मैंने झट से आँखें खोली और हैरान रह गई मैं अपने मनपसंद हमसफ़र की बाहों में थी।
पर तुमने आज भी कुछ बोला नहीं और आँखों के इशारे से मुझे उठने को बोला। आग की लपटें उठ रही थी मोल के उपरी हिस्से में! इससे पहले हमें आग चपेट में ले लेती तुम मेरा हाथ पकड़कर खिंचते हुए फ़टाफ़ट सीढ़ीयाँ उतरने लगे, मैं कुछ सोचना नहीं चाहती थी, बस ये पल जी लेना चाहती थी जिसकी ख़्वाहिश उस सफ़र में जगी थी,
"तुम, तुम्हारा साथ, तुम्हारा हाथ, ओर मैं!
चुपके से चुटकी ली अपने हाथ पर। ना सपना तो नहीं था तुम साक्षात मेरे करीब थे, इतने करीब की मेरी रूह महक रही थी तुम्हारी नज़दीकीयाँ पा कर। उतरते हुए सीढ़ीयाँ तो खतम हो गई, साथ मेरे हसीन पल भी मानों छूट रहे थे मेरे हाथ से। तुम मेरा हाथ छोड़कर आगे बढ़ने लगे, मुझे एेसा महसूस हुआ मानों ज़िंदगी छूट रही हो।
मैंने झट से तुम्हारा हाथ पकड़ लिया और गुस्से में आगबबूला होकर अपने दिल के एहसास एक ही साँस में बोलने लगी, “ओ हैलो मिस्टर आप जो भी हो, आपका नाम जो भी हो... पहले तो मुझे गिरते हुए बचाने के लिए थैंक्स पर इतना इगो ठीक नहीं। एक लड़की एक छोटे से सफ़र में कभी आपकी हमसफ़र थी, चलो उस दिन तो आप अजनबी थे तो बुरा नहीं मानी तुम्हारे अकडूपन से, पर आज उस थोड़ी सी पहचान के नाते ही हाय हैलो कर लेते। तुम्हारे जैसा अभिमानी मैंने आज तक नहीं देखा।”
मुझे लगा शायद मैं कुछ ज़्यादा ही बोल गई, तो मैंने सौरी बोलते हुए कहा, “बाय द वे कम से कम आपका नाम तो बताते जाईए? What is your name...”
पर ये क्या तुम्हारी आँखें भर आई थी और हाथ के इशारे से जुबाँ दिखाकर तुमने कहने की कोशिश की, की तुम बोल नहीं सकते, और इशारे से मुझे ये भी कहा तुम बहुत ही सुंदर हो। मैं पहली नज़र में ही तुम्हे अपना दिल दे बैठा था पर मैं कहाँ तुम्हारे काबिल किस हैसियत से तुम्हें देखता, प्यार करता बस इसीलिए एक दूरी बनाए तुम्हें फिल करवाया जैसे तुम्हारी परवाह नहीं, अब समझ में आया मेरी अकड़ का राज़! बस इशारे से इतना बोलकर तुम चलने लगे मुझे इशारों की भाषा का कोई ज्ञान नहीं था फिर भी तुम्हारी हर बात समझ गई।
ये उपर वाले का इशारा था शायद तो कैसे जाने देती तुम्हें, तुम साफ़ और नेक दिल के मालिक और इस पागल दिल की पहली पसंद थे।
मैं बीच बाज़ार ही घुटनो के बल दो हाथ जोड़कर तुम्हें तुमसे मांगने बैठ गई, तो क्या हुआ की तुम बोल नहीं सकते महज़ इतनी सी बात पर मेरी फीलिंग्स पीछेहठ करने वाली नहीं थी। मैंने कहा, “तुम सिर्फ़ सुनोगे मैं तुम्हारे लफ़्ज़ बनना चाहती हूँ, ये तुम्हारी आँखें बहुत बातूनी है मुझे अल्फ़ाज़ों की जरूरत नहीं, बिना कहें तुम्हारी हर बात समझने वाला ये दिल मेरे पास है, बस आज जो मुझे थामा है तो ताउम्र इसी बाहों की पनाह दे दो एक लड़की होकर प्रपोज़ कर रही हूँ,
मेरी चाहत को अपना लो...!”
और तुमने भी पब्लिक की परवाह किए बिना मुझे हौले से उठाकर अपनी बाहों में भर लिया और आज भी अपनी मजबूत बाहों से थामें मुझे फूल सी अपनी पलकों पर बिठाए रखते हो, और में तुम्हारी आवाज़ बनकर गुनगुनाती हूँ तुम्हारे दिल में खेलते खयालों को वाचा देते।
आज जाड़ों की ठंड़क ने एक बार और हम दोनों के सफ़र का सफ़र करवा दिया, देखो उस लम्हों की उमसती खुशबु आज भी तरोताज़ा है मेरे जहन में झिलमिलाती।