एक सैनिक का खत
एक सैनिक का खत
मैं जीवन की अंतिम बेला में प्रवेश कर चुका हूँ। अभी भी बमों के लावे में से कुछ मौन जीवन फट रहे हैं। कुछ जज्बात गोली और कारतूस के शोर में दब गए हैं। कुछ यादें चाँद के पीछे-पीछे फलक का छोर नापने गई थी, जब लौटकर आयेगी मुझे यहाँ न पाकर बहुत तड़पेगी। कदाचित् रोये भी किंतु वे एक सैनिक की यादें है, बहुत जल्द खुद को संभाल लेगी और खो जायेगी अनंत आकाश में, सितारा बनकर आसमान में प्रतिदिन आयेगी। तुम उनसे बातें करना।
वे मुझसे अक्सर रुठ जाती थीं और कहती थीं, “क्यों तुम हो हमारे लिए इतने बेरहम ! देखना एक दिन हमें अनाथ करके चलते बनोगे देश की खातिर।”
बावली है वो थोड़ी सी। मेरे दिल और जिगर में देश बसता है किंतु दिल के एक छोटे से कोने में मेरे जन्मदाता भी तो रहते हैं, मेरी जीवनसंगिनी भी और वे भी जिन्हें मैंने जीवन दिया। हाँ, बचपन के कुछ साथी भी तो हैं जिनके साथ खेलकूद कर मैं बड़ा हुआ। ये यादें उनकी ही तो हैं।
ये नाराज रहती है मुझसे जब मैं कई-कई दिनों तक इन्हें सहलाता नहीं हूँ। इन्हें बाँहों में भरकर दुलारता नहीं हूँ, इन्हें चूमता नहीं हूँ, इन्हें खुद पर लपेटकर सोता नहीं हूँ।
लेकिन मैं क्या करूँ ? दुश्मन कभी भी देश पर आक्रमण कर सकता है। यदि मैं इन्हें लेपटकर सो जाऊंगा तो आप सब कैसे इन यादों को देने वालों के साथ सुख चैन से सो पायेंगे ?
मेरी यादों को मुझसे यह शिकायत नहीं है कि वे मेरे दिल के कोने में क्यों दुबकी हैं, उन्हें शिकायत बस इतनी सी है कि मैं इन्हें भी याद क्यों नहीं करता ? क्यों मुझे कई-कई दिन निकल जाते हैं अपने दिल के इस कोने को सहलाए !
मेरी प्रियतमा, प्रिया, आह ! अपना घर-परिवार सब छोड़कर मेरे लिए ही तो चली आई थी किंतु मैं सुहागरात के दूसरे दिन ही तो चला आया उसे और उसके पेट में आ चुकी मेरी निशानी को अकेला छोड़कर।
कितना रोती थी वह पहले-पहले मेरे पास आने के लिए। बाऊजी को आजकल दिखता नहीं है, एक दिन प्रिया ने खत में लिखा था। मेरे जाने पर ऑपरेशन करवाने के चक्कर में फिर वे पूरे अंधे हो गए। अब ऑपरेशन से भी ठीक नहीं हो पायेंगे। क्या करूँ मैं ? मैं यदि अपने बाऊजी के लिए स्वार्थी हो जाता तो मेरे देश में कितनों के बाऊजी अंधे, बहरे ही नहीं लूले, लंगङे होने की कगार पर आ जाते।
ऊफ् ! बाऊजी, अब तो आप अपने इकलौते बेटे को देखने की हसरत लिए चले गए इस दुनिया से। मैं नहीं जा पाया अपनी विधवा माँ के आँसू पोंछने। क्या करूँ मैं ? मुझे मेरी माँ से ज्यादा इस धरती माँ की फिक्र है। मैं चला जाता तो दुश्मनों की बंदूकों से निकली गोलियाँ मेरी भारत माँ का कलेजा चीर देती।
मेरा मुन्ना, इस बार पत्नी ने उसकी फोटो भेजी थी, पूरे दो साल का हो गया। बंदूक हाथ में रहती है तो उसी के आकार से उसके बढ़ते कद का अनुमान लगा लेता हूँ, फिर खुद पर ही क्रोध करता हूँ, बेटे की लम्बाई क्या बंदूकों से नापी जाती है ?
रघू, मेरा बचपन का दोस्त, कितनी बड़ी मुसीबत फँस गया था पिछले वर्ष, बहन का किसी लड़के से साथ भाग जाना क्या कम बड़ी मुसीबत है ! फिर खबर आई थी, बेच दिया उसने रघू की बहन को किसी कोठे पर ले जाकर।
बहुत रोया था मैं, रघू की बहन मेरी भी तो बहन थी, किंतु मैं क्या करूँ ? बाहर से आये आतंकवादी मेरे देश की बहुत सी बेटियों की बोटियों को न नोचे इसलिए मेरा यहाँ डटे रहना बहुत जरुरी है।
तुम कहोगे, “तुम्हारे जैसे और भी तो बहुत सैनिक है वहाँ पर, सरहदों की रक्षा ले लिए मैं उनको भी तो छोड़कर आ सकता हूँ।”
हाँ, आ सकता हूँ, तब, जब पङोस के देश में सब कुछ ठीक चल रहा हो। अब, जब पड़ोसी देश कभी भी हमला करने की फिराक में है तब हम जितने हैं उतने भी कम ही है। फिर कैसे मैं घर लौट आने का जोखिम उठा लूँ ?
मेरा छोटा भाई दुल्हा बना था, चाहता था कि सेहरा अपने इस भाई के हाथ से पहने, लेकिन देश के सभी बेटों के सिर पर निर्विघ्न सेहरा सजता रहे इसलिए मेरा यहाँ रहना जरुरी था।
माँ ने कई दिन मेहनत करके इस बार मेरे लिए स्वेटर बुनकर भेजी थी। नादान है माँ, कैसे समझाऊँ, उस स्वेटर से तो यहाँ भरी दोपहर में भी ठंड नहीं रुकती है। हाँ, लेकिन उसमें माँ की ममता की गर्माहट है जिसके कारण मैं उसे माइनस बीस और तीस के तापमान में भी पहन लेता हूँ।
बीवी अक्सर उलाहना देती है-
“सबके पति अपनी पत्नियों को इतने रोमांटिक खत लिखते हैं, अपनी पत्नियों के बालों की तुलना बलखाती लहरों से करते हैं, आँखों की तुलना गहरे समंदर से और काजल की तुलना गहराती रात से करते हैं। वे पत्नी के लिए चाँद तोङ लाने का जिगर रखते हैं, सितारों से उनकी माँग सजाने का वादा करते हैं, सूरज की तपिश में अरावली पर्वतमाला के शिखर से आई लव यू कहने का वादा तो कइयों ने इस बार आने पर पूरा करने का किया है। आसमान में घुमड़ते बादलों में भी तो वे अपनी पत्नी का चेहरा ही देखते हैं।
नादान है वो मैं उसे कैसे समझाऊँ ? कि वे सब धन कमाने के लिए बाहर गए हैं, रात को उनके पास अपनी पत्नियों को याद करने के सिवाय और कोई काम नहीं होता। मैं उसे क्या जवाब दूँ ! झूठ कह नहीं सकता, सच वह सहन नहीं कर पायेगी।
मैं चाँद देखता हूँ तो मुझे मेरा देश नजर आता है कि चाँद पर जो जाए व वहाँ से मेरे देश की तरक्ती देखकर भारत से घबराए, सितारों सा मैं मेरे देश के हर एक बच्चे को झिलमिलाता देखन चाहता हूँ। गहरा समंदर और बलखाती लहरें मुझे देश की नौसेना की याद दिलाती है तो उङते बादल वायुसेना की।
ऊँची चोटियों पर चढ़कर दिल से केवल एक ही वाक्य निकलता है “जय हिंद, जय भारत।”
गहराती रातें मुझे चौकन्ना करती है कि एक भी उग्रवादी स्याह रात का फायदा उठाकर मेरी भारत माँ के सीने पर वार करने का दुःसाहस न कर पाए।
बहुत हो गई यादों की बातें।
अब मैं जा रहा हूँ। मेरा देश जंग जीत गया है। मैं मरकर भी जी जाऊंगा क्योंकि तिरंगे झंडे का मुझे कफन मिलेगा। मैं देख रहा हूँ मेरे साथियों को जो घुटने टेके दुश्मनों को हथकड़ी पहनाकर गाड़ियों में बंद करके ले जा रह हैं। मुझे अफसोस है कि मैं उनकी मदद नहीं कर पा रहा हूँ। मेरे सीने पर पाँच गोलियाँ एक साथ लगी है। यदि मैं ये गोलियाँ नहीं खाता तो वे हमारा एक बंकर उड़ा देते जिसके अंदर पचास सैनिक थे। एक जान के बदले पचास जानों को झोंक देने जैसा घटिया सौदा मेरे बाऊजी ने मुझे नहीं सिखाया था।
मैं संतुष्ट होकर जा रहा हूँ, मेरे इन पचास साथियों ने मुझे मारने वाले दुश्मन के साथ उसके अन्य सौ साथियों को धूल चटा दी है। मेरी मौत का बदला उन्होंने मेरी आँखों के सामने ही ले लिया है।
बहुत दर्द हो रहा है अब, यमराज सिर पर आकर सवार हो गया है, बड़ी मुश्किल से उससे दो मिनट का समय माँगा है, बस इतना कहने के लिए कि कल रेडियो में खबर आई थी-
मेरे देश के कई बड़े शहरों में कर्फ्यू लगा है क्योंकि भाई ही भाई से आपस में लड़ रहे हैं, एक दूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे हैं। सच कहूँ तो सुनकर मैं मरने से पहले ही मर गया था।
हम यहाँ बाहर के दुश्मनों से देश को बचाने के लिए सीने पर गोली खाते हैं और मेरे भाई वहाँ आपस में लड़कर देश की धरती को लाल करते हैं। सच में, हमारी शहादत के कोई मायने नहीं है यदि मेरे देश के बेटे आपस में लङते रहे, मरते रहे।
यदि ऐसा ही चलता रह तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी आपसी फूट का फायदा उठाकर बाहरी दुश्मन हमारे देश पर एक बार फिर कब्जा कर लेंगे। हम जब तक चेतेंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
हमारा मजहब कोई भी हो हम सबसे पहले भारतीय है। मनमुटाव हमारे बीच हो सकता है लेकिन एक दूसरे का खून बहाकर देश की सम्पत्ति को नष्ट करना इस मिट्टी के संस्कार नहीं है, हाँ, बिल्कुल नहीं है।
अब अलविदा...रघू, मुन्ने, माँ, प्रिया...सबको मेरा अंतिम सलाम...बाऊजी के पास तो मैं जा ही रहा हूँ। प्रिया, मुन्ने को बचपन से ही सैनिक बनने की शिक्षा देना ताकी वह, वो कर सके जो मैं नहीं कर पाया। अभी भी तो भारत के एक हिस्से को आजाद करवाना है...अभी बहुत काम बाकी है...प्रिया मुझे अपनी यादों में जिदा मत रखना, दूसरा विवाह कर लेना। प्रिया सुन रही हो न तुम...प्रिया सुन रही...प्रिया सु...
प्रिया...प्रि...