Babita Komal

Children Stories Inspirational

2.6  

Babita Komal

Children Stories Inspirational

चूहे की बहादुरी

चूहे की बहादुरी

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एक बार एक चूहा पिंजरे में फँस गया। उसे समझ में आ गया कि उसकी जिंदगी खतरे में हैं। अपना पेट भरने के लिए वो जिस रोटी के टुकड़े के लालच में खतरे को भूल गया था अब वो रोटी का टुकड़ा ही उसके लिए आफत का सबब बन गया है। और कोई चूहा होता तो गुमसुम चुपचाप अपनी मौत का इंतजार करते रहता। लेकिन वो चूहा बहुत होशियार था। उसने जीते जी जिंदगी से हार मारना नहीं सीखा था। वह अपनी जिंदगी को जीना चाहता था। क्या हुआ कि वो गलती से फँस गया। लेकिन उसमें जीने कि आस तो है, बस उसी आस ने उसे जीते जी मरने नहीं दिया।

वह जीना चाहता था, और जो जीना चाहे उसे दुनिया की कोई ताकत मार हीं नहीं सकती। वह जानवर होकर भी यह जानता था। लेकिन कैसे यह वो नहीं जानता था। लेकिन उसे अपने जीने के विश्वास पर उतना ही भरोसा था जितना कि उसकी जगह और कोई चूहा होता तो उसे अपने मर जाने के विश्वास पर विश्वास हो जाता।

सवाल फिर वही था, क्यों उसका मालिक उसको जिंदा छोड़ेगा जबकि कई दिनों की मेहनत और कई सारे अपने नुकसान के होने के बाद वह उसको पकड़ने में समर्थ हो पाया था। उसका मालिक आया और उसे जाल में फँसा देखकर बहुत खुश हुआ। पिंजरे में बंद वह छोटा सा नीरिह प्राणी उसकी मूँछों पर ताँव ला रहा था। वह पिंजरे को उठाकर चूहे को मारने ही वाला था कि उसका फोन बज गया।

जिसका फोन आया उससे चूहे ने अपने मालिक को कहते सुना कि चूहे मारने वाला जहर, जो रोटी में मिलाया था उसके कारण चूहा मरा नहीं है क्योंकि चूहे ने रोटी खाई ही नहीं। लेकिन अब जब उसे पिंजरे में कैद कर लिया गया है तो वो खुश ही है क्योंकि इस छोटे से प्राणी को मारना तो उसके बाँए हाथ का खेल है। बस चूहे को इसी चर्चा में जीने की राह मिल गई।

चूहे ने उस रोटी के टुकड़े को अपने शरीर के नीचे छिपा लिया। और इस तरह से पसर गया जैसे कि मर चुका हो। मालिक ने बात खत्म की तो पिंजरे में रोटी नहीं थी और चूहा भी मरा हुआ नजर आ रहा था। मालिक तो ऐसे ही मरा हुआ चूहा ही चाह रहा था। रोटी नजर आई नहीं तो वो निशचिंत हो गया कि जहर के असर से चूहा मर चुका है। और मरा हुआ कोई भी जीव ज्यादा देर के लिए जीवित लोगों की जिंदगी में स्थान नहीं पाता यह सर्व विदित है। मालिक ने अपने नौकर को बुलाया और चूहे को गली के नुक्कड़ पर बने कचरे के डब्बे में फेंककर आने के लिए कहा।

अब यह चूहे की परिक्षा का समय था क्योंकि उसे एकदम हिलना डूलना नहीं था। वह दो मिनिट का समय उसके लिए वर्षों के बराबर गुजरा। क्योंकि एक जरा सी असावधानी मौत और जरा सा सावधानी जिंदगी देने वाली थी। खैर उम्मीद थी तो आस भी थी। नौकर ने लापरवाही से पिंजरा उठाया और चल पड़ा। जहाँ चूहा जरुरत से ज्यादा सावधान था वहीं नौकर पूर्ण रुप से लापरवाह था। इन दोनों का ही फायदा चूहे को मिला और जैसे ही नौकर ने कचरे के ढेर पर पिंजरे का दरवाज़ा खोला चूहा फुर्ती से कूदकर भाग गया। नौकर के लिए अपनी ही आँखों पर विश्वास करना मुश्किल हो गया। जो हुआ वो इतना अप्रत्याशित था। वो कभी नहीं समझ पाया कि मरा हुआ चूहा जिंदा कैसे हो गया।

लेकिन यह तो वो चूहा ही जानता था कि जो हुआ वो पूर्ण रुप से सुनियोजित था। पिंजरे से बाहर कूदने से पहले वो 50 बार मन ही मन में कूदने का अभ्यास कर चुका था। और इसीलिए बाहर आकर ऐसा गायब हुआ कि आज भी नौकर उस कचरे के ढेर के आस पास उस चूहे को खोजता नजर आता है।

दोस्तों, यह कहानी कई सारे पाठ एक साथ पढ़ाती है। मौत की आहट मौत नहीं होती, उम्मीद और विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता, दूसरे की लापरवाही खुद को सावधान रहने की शिक्षा देती है और सुनियोजित किया गया कार्य अपने अंजाम तक जरुर पहुँचता है।

हर एक बात जरुरी होती है। आप जिस क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं उससे जुड़ी एक भी जानकारी को हल्के में न ले क्योंकि पता नहीं कब कौन सी जानकारी आपको शिखर तक पहुँचाने में निमित्त बन जाए।

कल फिर मिलने की उम्मीद तो हमेशा साथ रहती ही है न।...



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