Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Babita Komal

Drama

5.0  

Babita Komal

Drama

बँटवारा

बँटवारा

5 mins
695


पेशे से बैंक में मैनेजर भुवन सिंह ने अपने दो बेटों दीपक और संदीप की परवरिश में अपनी जिंदगी झोंक दी थी।

कक्षा दस तक तो दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते रहे। पर उसके बाद दीपक इंजीनियर की पढाई के लिए कोटा चला गया और संदीप को पढने में कोई खास रुचि नहीं थी इसलिए वह वहीं पर रहकर किसी साधारण से कॉलेज से ही सनातक की डिग्री के लिए पढने लगा। दीपक ने आई आई टी में प्रवेश पाने के लिए एक ही नहीं दो बार परिक्षा दी पर वह सफल नहीं हो पाया तो भुवन सिंह ने किसी प्राइवेट इंजीनियरींग कॉलेज में उसका दाखिला करा दिया। आई. आई. टी की तुलना में वह बहुत ज्यादा महंगी था पर फिर भी बेटे की चाहत को पूरा करने के लिए भुवन सिंह ने हँसते हँसते यह भार भी उठा लिया।

वक्त के साथ दोनों ही बेटों की पढाई पूरी हो गई। दीपक को किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम मिल गया और वह जापान चला गया। संदीप को कम्पयुटर में बहुत रुचि थी और वह इसी से जुड़ा कोई व्यापार करना चाहता था इसलिए भुवन सिंह ने उसे कम्पयूटर की एक दुकान करा दी। उसी साल में भुवन सिंह को भी बैंक से रिटायरमेंट मिल गया तो वह भी समय काटने के लिए उसी दुकान में बैठने लगा। समय अपनी रफ्तार से आगे बढता गया। दोनों बेटों कीउनकी पसंद की लड़कियों से भुवन ने खूब धूमधाम से शादियाँ की जिनमें उसकी सारी जमा पूंजी खत्म हो गई। वह अपने बेटे के साथ दुकान पर बैठता था तो उसे कभी पैसे की समस्या नहीं आई। बढती उम्र के साथ वह अब घर पर ही रहने लगा था पर संदीप ने कभी अपने माता – पिता के ईलाज और उनके खर्चे में कोई कमी नहीं आने दी। संदीप बहुत मेहनती था। गुजरे दस सालों में उसने अपनी दुकान को बड़े शोरुम में बदल लिया। और किराये के घर की जगह अपना घर बना लिया था। उधर दीपक भी अपनी मेहनत के दम पर दिन प्रतिदिन बहुत तरक्की कर रहा था। पर वक्त के साथ उसका भारत आना कम हो गया था। एक बार जब भुवन सिंह की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई तब दीपक अपने परिवार के साथ चार साल बाद भारत आया।

चार साल के अंतराल में अपने भाई के बढे रुतबे को देखकर वह भौंचक्का रह गया। पिता की हालत बहुत खराब थी। डॉक्यर के हिसाब से वो कुछ ही दिन के मेहमान थे। माँ का पहले ही स्वर्गवास हो गया था तब वह बड़ी मुश्किल से दस दिन के लिए आ पाया था। इस बार वह भारत घूमने के हिसाब से पूरा एक महीने का वक्त लेकर आया था। लेकिन भाई का ऐशो आराम देखकर मन में लालच आ गया। संदीत की दुकान पिता के नाम से थी बस इसी को मुद्दा बनाकर दीपक ने एक दिन हिम्मत करके पिता के सामने बँटवारा करने की बात कह दी।

दीपक ने कभी भी प्रत्यक्ष रुप से अपनी कमाई के बारे में भुवन सिंह को बताया नहीं था पर फेसबुक में डाली गई फोटों और बड़ी कम्पनी में बड़े पद के आधार पर वह अपने बेटे के रुतबे का आँकलन कर सकता था। दीपक ने पिता की मेहनत के पैसों से कमायी पूंजी से दुकान की शुरुआत होने की बात कहकर अपना हक दुकान पर जताया था। क्योंकि उसके हिसाब से दुकान को बुलंदी पर पहुँचाने में पिता के पैसे और बाद में भी उनकी मेहनत का योगदान था। और पिता की संपत्ति में बेटो का हक होता है इसलिए उसे अपना हिस्सा चाहिए था।

भुवन सिंह मुस्करा दिया और अगले दिन बँटवारा करने की बात कहकर बेटों को घर भेज दिया। संदीप को किसी बात का पता नहीं था।

दूसरे दिन पिता ने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया और एक एक बड़ा सा पर्चा थमा दिया और कहा कि

“ मेरे पास जो भी है उसका बँटवारा मैंने इस पर्चे में कर दिया है। “

संदीप जैसे जैसे पर्चे को पढता गया उसकी आँखें आँसुओं से नम होती गई और दीपक जैसे जैसे पर्चा पढते गया उसकी आँखें गुस्से से लाल - पीली होती चली गई।

दोनों को एक समान पर्चे दिये गए थे और उपर लिखा था ,

बेटों का पिता की संपत्ति के साथ दायित्वों पर भी हक बनता है ...

मैंने दोनों बाँट दिये हैं ....

कक्षा दस तक दोनों की परवरिश एक जैसी थी इसलिए वँहा तक का हिसाब बराबर

उसके बाद दीपक की पढाई का खर्च ....20 लाख

संदीप की पढाई का खर्च .....2 लाख

संदीप की दुकान में लगाई पुंजी ........10 लाख

मैं दुकान में बैठता था तो मैंने संदीप के यँहा खाना भी खाया और रहा भी तो उसे मेरी तनख्वाह मान ली जाए। पर बेटा होने का नाते माता पिता का भार उठाना दीपक की भी जिम्मेदारी थी तो दल साल में हर महीने के दो हजार भी पकड़े तो दस साल के 2 लाख 40 हजार रुपए हुए। मैंने पढाई पर जो खर्चा किया उसी की बदौलत दीपक आज इतनी धन दौलत कमा पाया तो पढाई पर हुए खर्च को इनवेस्टमेंट मानते हुए उसके बदले में कमाये पैसे में बचाए पैसे( कम्पनी के बचत के नियमों को आधार पर ) लगभग 1करोड़

सभी खर्चों के बाद संदीप की बचत 50 लाख।

अब दोनों पर हुए खर्च के अनुपात में दोनों के कमाये पैसे को बाँट लो बँटवारा हो जाएगा।

पता चल जाएगा कौनसा बेटे के हिस्से में क्या आएगा।

संदीप पूरा पर्चा पढकर फूट फूट कर रो पड़ा तो दीपक की यह हिसाब पढकर साँसें फूल गई। अपनी गाढी कमाई हाथ से निकलने का भय उसके चेहरे पर साफ झलकने लगा।

“ क्या पापा आप भी न , मैंने तो ऐसे ही मजाक में कह दिया था आपने तो पूरा ब्यौरा ही निकाल दिया। सब कुछ आपका ही तो है। “

कहकर वह कमरे से ही नहीं अगले दिन देश से भी बाहर चला गया और पिता के जिंदा रहने तक कभी वापस नहीं आया।


Rate this content
Log in

More hindi story from Babita Komal

Similar hindi story from Drama