एक पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा
गीता के 18 अध्याय समाप्त हो चुके थे। अर्जुन महाभारत में कौरवों से लड़ने के लिए राजी हो गए थे।
जैसे आज के समय में कोई अति जिज्ञासु छात्र, क्लास खत्म होने के बाद एक सवाल टीचर से जरूर पूछता है, उसी तरह अर्जुन ने भी गीता के 18 अध्याय खत्म होने के बाद श्रीकृष्ण से पूछा,
" हे मधुसूदन! आपने सांख्य योग, ध्यान योग, कर्म योग, भक्ति योग के बारे में मुझे खूब बताया; सृष्टि में अच्छा - बुरा जो भी होता है, वो सब आपके द्वारा ही होता है, ऐसा आपने बताया । अच्छी या बुरी जो भी व्यवस्थाएं हैं, वो सब आप ही के द्वारा बनाई गईं , ऐसा भी आपने ही बताया।
पर प्रभु अभी भी मेरे मन में एक संशय है कि त्रेता युग के लाखों साल की परंपराएं, प्रतिष्ठाएं, और अनुशासन; फिर द्वापर युग के लाखों साल की परंपराएं, प्रतिष्ठाएं, और अनुशासन के अति प्राचीन बोझ के नीचे दबकर कलियुग में आम इंसान कहीं मर ही न जाए?"
अर्जुन की बात सुनकर श्रीकृष्ण अपने चिर - परिचित अंदाज में मुस्कराए और अपने बाएं हाथ को कमर पर रख और दाहिने हाथ को चक्रधारी पोजिशन में रखकर बोले,
" हे पार्थ! तुमने जन कल्याण को ध्यान में रखकर जो प्रश्न पूछा है, उसे सुनकर मेरा मन बहुत आनंदित हुआ है। तुम्हें ये जानकर खुशी होगी कि मैंने भविष्य की इस समस्या का समाधान भी पहले ही सोच लिया है। ये समाधान मैं तुमसे धैर्यपूर्वक कहता हूं, पर तुम ध्यानपूर्वक सुनना-
कलियुग में जब लाखों सालों की परम्पराओं, प्रतिष्ठाओं, और अनुशासन का हवाला देकर मौहल्ले की आंटी और अंकलों का फैलाया गया आतंक अपनी उत्कृष्ट सीमा को छू लेगा, तब मैं देवकीनंदन श्रीकृष्ण ' Mind Your Own Business' शब्द-रूप में कलियुग में अवतार लूंगा। "
श्रीकृष्ण के वचन सुनकर, अर्जुन का हृदय खुशी से आह्लादित हो उठा। स्वर्गलोक में अप्सराओं और गंधर्वों ने नाचना शुरू कर दिया। देवतागणों ने आकाश से पुष्प वर्षा की। चारों दिशाएं शंख की सुखद ध्वनि से गूंज उठीं।
- ' Mind Your Own Business ' फ्रेज की उत्पत्ति की पौराणिक कथा।
गीता के 19 वें अध्याय से।
