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Amit Yadav

Abstract Drama Others

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Amit Yadav

Abstract Drama Others

विक्रम -बेताल

विक्रम -बेताल

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बात उस दौर की है , जब टीवी पर " शांति " और "स्वाभिमान" जैसे सीरियल आते थे।


मेरे अध्यापक महोदय ने मुझसे पूछा,

"बेटा अमित! दूरदर्शन पर जो "शांति" और "स्वाभिमान" सीरियल आता है, देखते हो?"


मैंने कहा, "हाँ , सर।"


वो बोले,"नहीं देखा करो। ऐसे सीरियल ही तो तुम्हारी generation को ख़राब कर रहे हैं। "


मैंने पूछा, "सर, फिर कौन सा सीरियल देखा करूँ?"


उन्होंने कहा, "विक्रम - बेताल। इस सीरियल को देखने से तुम्हे नैतिक शिक्षा मिलेगी।"


फिर,मैंने भी आज्ञाकारी शिष्य की तरह उनकी बात मानी और "विक्रम-बेताल" देखना शुरू किया। 


इस कहानी में, एक बेताल होता है जो पेड़ से उल्टा लटका है। एक विक्रम होता है , जिसे किसी कारणवश बेताल को उठाकर किसी के पास लेकर जाना है। विक्रम, बेताल के पास जाता है और उससे अपने साथ चलने को कहता है। बेताल विक्रम के साथ, उसकी पीठ पर लदकर चलने को तैयार तो हो जाता है, पर उसके सामने एक शर्त रखता है। कहता है," मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ। पर मेरी एक शर्त है कि तुम रास्ते भर एक शब्द भी नहीं बोलोगे। अगर बोले तो मैं वापस उड़कर इसी पेड़ पर फिर आ जाऊंगा। "


विक्रम शर्त मान जाता है।


रास्ते में बेताल विक्रम को एक कहानी सुनाता है। विक्रम चुपचाप कहानी सुनता रहता है। कहानी के अंत में बेताल एक moral dilemma create करता हुआ प्रश्न विक्रम से पूछता है। और धमकाते हुए कहता है ,"अगर तुमने इस प्रश्न का सही उत्तर नही दिया तो मैं तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा।" 


विक्रम परेशान हो जाता है कि करे तो करे क्या , बोले तो बोले क्या। 


अंततः वो उस प्रश्न का सही जवाब देता है। चूँकि अपने सिर के टुकड़े-टुकड़े होने से बचाने के लिए, उसने बोल दिया था; और एक तरह से बेताल से किया वादा तोड़ दिया था। इसलिए बेताल उड़कर वापस उसी पेड़ से उल्टा लटक जाता है और यह क्रम हर एपिसोड में चलता रहता था।


गुरु जी ने नैतिक शिक्षा पर ध्यान देने को कहा, पर मेरा ध्यान कहानी के structure पर अटक गया। 


कुछ एपिसोड के बाद , मैं पूरी तरह से आश्वस्त हो गया था कि इस तरह से तो विक्रम कभी भी बेताल से जीत नहीं पायेगा। अगर खेल के सारे नियम बेताल ही निर्धारित करेगा तो विक्रम कैसे जीतेगा?


बड़े होने पर एहसास हुआ कि बेताल सिर्फ कहानी में ही नहीं , बल्कि हमारी personal और professional लाइफ में भी होते हैं और हमारी हालत एकदम विक्रम जैसी हो जाती है। 


मुझे लगता है कि अब विक्रमो को चाहिए कि बेतालों से कह दे ,


"देखो भाई बेताल! तुमने कहा कि रास्ते भर नहीं बोलना। मैं नहीं बोलूंगा। पर ये रस्ते में कहानी सुनाने वाली बकर तुम भी नहीं करोगे।"


 फिर, क्या पता विक्रम जीत ही जाए।


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