एक माँ ऐसी भी.

एक माँ ऐसी भी.

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यशोदा को अपने पति से तलाक लिए करीब दो साल बीत चुके थे| वह एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी और अपने माँ - पापा के साथ ही रहती थी|

यशोदा के माता - पिता किसी काम से बाहर गये थे और उन्हें वापस आने में अभी वक़्त था| रविवार के दिन जब यशोदा अपने छत पर योगासन कर रही थी कि तभी उसके कानों में बाहर से आने वाले शोर की आवाज़ आई| उठकर देखा तो बाहर कूड़ा -स्थल पर काफी भीड़ जमी हुई थी| भीड़ के कारण कुछ न दिखने पर वह नीचे आ गई|

”हाय ! कैसे माँ - बाप हैं इसके जो फूल जैसी बच्ची को कूड़े में फ़ेंककर भाग गयें !”

“हाँ, सचमुच देखो तो कितनी प्यारी बच्ची है।"

”कितना मासूम चेहरा है, कितनी भोली मुस्कान है। अपलक निहारती इसकी आँखे, जिसने अपने माँ - बाप को भी ठीक से नहीं देखा होगा| उसे ऐसे छोड़ गए इसके माँ - बाप !"

जितने लोग थे, उतनी ही बातें| मानो वहाँ कोई प्रतियोगिता चल रही हो| सब अपने - अपने तरीके से उस बच्ची की मासूमियत, मुस्कान पर टिप्पणी करने में व्यस्त थे| इतने में वह बच्ची रोने लगी| यशोदा ने जाकर उस बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया और दुलारने लगी| अब भीड़ की नज़र में यशोदा चर्चा का चेहरा बन गई|

"यशोदा ! तुमने क्यों उठाया इस बच्ची को ? इसके माँ - बाप ने इसे तिरस्कृत कर दिया है| ये यहाँ कूड़े के ढेर में पड़ी थी।"

"हाँ, ऊपर से काले कपड़े में लपेटा है। क्या पता कोई जादू - टोना हो ? इसे तो किसी आश्रम या अस्पताल में डाल आना चाहिए।"

जो भीड़ कुछ देर पहले उस बच्ची के साथ थी, अब वही भीड़ उसे जादू - टोना और न जाने क्या - क्या कह रही थी !

भीड़ जितनी जल्दी अपना रंग बदलती है उतनी जल्दी में तो जानवर भी नहीं बदलते होंगे| सबकी बातों को सुनने के बाद यशोदा ने कहा,

"कुछ वक़्त पहले तो इस बच्ची से सबको सहानुभूति थी| अब क्या हुआ ? मैं इस बच्ची को अब अपने पास ही रखूंगी|"

बच्ची को दुलारते हुए यशोदा ने कहा,

"बेटी तुम उदास मत हो| आज से मैं तुम्हारी माँ हूँ।"

और यशोदा उस बच्ची को लेकर अपने घर आ गई|

अपने पति से तलाक के बाद यशोदा मुस्कुराना ही भूल गई थी|खुशियों ने भी उससे अपना मुंह मोड़ लिया था, पर उस बच्ची ने यशोदा को फिर से मुस्कुराने का मौका दिया| जो खुशियाँ उससे रूठ गईं थी, वे अपनी बाँहें फैलाये उसे बुला रही थीं|

जब भी वह बच्ची अपने अधरों पर मुस्कान रखती तो यशोदा का दिल भी झूम उठता और यशोदा के चेहरे पर भी ममत्व भरी मुस्कान तैर जाती| शायद ऐसी ही होती है बच्चों की मनमोहक मुस्कान| इसलिए यशोदा ने उस बच्ची का नाम भी मुस्कान रखा|

बच्ची अभी छोटी थी, इसलिए यशोदा ने स्कूल में दो हफ़्तों का अवकाश - पत्र भिजवा दिया ताकि मुस्कान को वक़्त दे सके|यशोदा ने सबसे पहले मुस्कान का हेल्थ चेकउप करवाया, कुछ कपड़े खरीदे और मुस्कान का बेबी - फ़ूड|

पूरा दिन मुस्कान को दुलारते, पुचकारते, खेलाते बीत जाता|यशोदा का मन मुस्कान के साथ पूरी तरह रम गया था| मुस्कान भी यशोदा को अपलक निहारती और फिर खिलखिलाकर हँस पड़ती| मुस्कान के सोते वक़्त जब यशोदा अपनी उँगलियाँ उसकी हथेली के बीचों - बीच रखती तो मुस्कान उसे कसकर पकड़ लेती| मानो वह यशोदा की ऊँगली थामकर ही पूरी दुनिया देखना चाहती हो| यशोदा भी अपनी ममता उड़ेलते हुए, मुस्कान की हथेलियों को चूम लेती|

आज यशोदा के माता - पिता वापस आने वाले थे| यशोदा मुस्कान के साथ बड़ी ही बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रही थी|यशोदा की माँ अंदर आती हैं,

"ये क्या है यशोदा ?कहाँ से उठाकर लाई हो इसे ?"

"बच्ची है,और इसका नाम मुस्कान है।"

यशोदा इस तरह की बातों के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी|

“हाँ बच्ची है, मगर किसकी ? तुम जानती हो, अभी आते वक़्त लोगों ने कैसे - कैसे सवाल पूछे हैं ! कुछ तो मुबारकबाद दे रहे थे|तुम्हारे पापा तो बीच रास्ते से ही लौट गए मुंह छुपाकर| इसे यहाँ से हटाओ|”

"नहीं माँ, मैं इसे अपने पास ही रखूंगी| मैंने क़ानूनी तौर पर गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है| कुछ दिन में पूरी भी हो जाएगी।"

- यशोदा ने कहा।

"ये गोद - वोद लेना कुछ नहीं होता| अपना खून अपना ही होता है।"

- माँ ने फिर कहा|

"हाँ माँ, भैया भी तो अपना ही खून है न तो फिर आज वह हमारे साथ क्यों नहीं है ?"

- यशोदा के इस सवाल का जवाब उसकी माँ के पास नहीं था|गुस्से में मुस्कान को देखते हुए वे कमरे से बाहर आ गई|

दो हफ़्तों की छुट्टी खत्म हो गई| यशोदा मुस्कान को लेकर स्कूल जाने लगी| वहाँ भी लोगों ने कई तरह की बातें यशोदा को सुनाई|पता नहीं लोग बातें क्यों बनाते हैं और कैसे बनाते हैं ! लोगों को एक - दूसरे के सुख - दुःख में मदद करके ज़िंदगी बनानी चाहिए, तो वे बातें बनाना पसंद करते हैं| शायद कुछ लोगों का यही हुनर होता|

यशोदा मुस्कान के साथ खेल रही थी कि तभी यशोदा की माँ अंदर आई| यशोदा के पास बैठकर माँ ने कहा,

”बेटी मैं जानती हूँ, तुम्हें इस बच्ची से लगाव हो गया है| पर ये समाज नहीं जीने देगा| इस बच्ची की मुस्कान के पीछे मुझे तेरा जीवन अंधकारमय लगता है| तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी पड़ी है |तुम फिर से शुरुआत करो।"

एक गहरी लम्बी साँस लेते हुए यशोदा ने कहा,

"जब मैंने मनित से तलाक लिया था, उस वक़्त भी लोगों ने बातें बनाई थीं| समाज का हवाला मुझे भी दिया गया था| उस वक़्त तो तुम लोग मेरे साथ थे तो अब क्या हुआ ? इस बच्ची की माँ ने इसे क्यों छोड़ा, उनकी क्या मज़बूरी थी, ये सब मुझे नहीं पता। मगर इस बच्ची के कारण ही मैंने फिर से हँसना सीखा| एक ख़ुशी मिली| जीने का सहारा मिला| याद है आपको, उस दिन जब मैं, पापा और आप पार्क से लौट रहे थे तब एक बच्ची जो गाड़ी के आगे आ गई थी, पापा ने अपनी जान जोखिम में डालकर उसे बचाया था| वो बच्ची सहमकर पापा के पैरों से लिपट गई थी| तो अपने उसे अपनी गोद में उठा लिया था| उसकी माँ ने कितनी दुआएं दी थीं और कहा था, आज तो लोग अपने ही भाई - बहन के बच्चों के साथ भेदभाव करतें हैं और आपने एक अनजान बच्ची की जान बचाई| वो भी अपनी जान जोखिम में डालकर ! आपका बहुत - बहुत धन्यवाद|

माँ मान जाओ, मैं जानती हूँ पापा भी मान जायेंगे|

ऐसी कई बच्चियां हैं इस दुनिया में जो कभी हॉस्पिटल, कचरे के पास छोड़ी जाती हैं, समाज और इसकी कुरीतियों के कारण| जिस तरह से मुस्कान ने मेरे जीवन में मुस्कान भरी है, इस तरह से अब मुस्कान अनेकों बच्चियों के चेहरे पर भी मुस्कान लाएगी|मैं मुस्कान के नाम से बच्चियों के लिए एनजीओ खोलूंगी|"

  

वक़्त के साथ सबकी नाराज़गी भी दूर हुई| आज कई बच्चियां 'मुस्कान एनजीओ' में ख़ुशी से अपना जीवन जी रही हैं।

यशोदा अपने नाम के ही स्वरुप अब कई बच्चियों की माँ थी...|  


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