STORYMIRROR

Ravi Ranjan Goswami

Inspirational

4  

Ravi Ranjan Goswami

Inspirational

एक एम्बुलेंस ड्राइवर

एक एम्बुलेंस ड्राइवर

5 mins
275

रमेश खूब पैसा कमा रहा था। वह खुद को वी आई पी से कम नहीं समझता था। लोग उसके आगे पीछे घूमते थे। गिड़गिड़ाते थे और हज़ारों रूपये उसे देते थे। वह दिल्ली में प्राइवेट एम्बुलेंस का ड्राइवर था और एम्बुलेंस गाड़ियों का दलाल भी।

इंडिया में कोरोना महामारी की दूसरी लहर पहली लहर से अधिक उग्र बनकर आयी थी। यहाँ तक की देश की चिकित्सा व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही थी। कहीं अस्पतालों में मरीजों को बेड नहीं मिल रहे थे। कहीं ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं थी। कोविड के इलाज़ में आक्सीजन की विशेष आवश्यकता होती है। आक्सीजन के आभाव में लोग मर रहे थे। देश में त्राहि त्राहि मची थी।

रमेश की एम्बुलेंस में ऑक्सीजन की व्यवस्था थी और वह नियत भाड़े से पांच दस गुना भाड़ा कोविड के मरीजों को घर से अस्पताल या अस्पताल से घर या एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल पहुँचाने के लिए ले रहा था। पहले वह ऑटो चलाता था। कोरोना की पहली लहर में उसने ऑटो बेचकर टैक्सी ले ली थी। ये तरक्की उसने एक दो निजी अस्पतालों में बेड की दलाली करके की थी। तब बेड लाखों रूपये में बिके थे। अच्छा कमीशन मिला था मरीज से भी और अस्पताल से भी।

रमेश जवान और अच्छी कद काठी का युवक था। उसकी जानकारी के अनुसार करोना वाइरस अधिक उम्र के या बीमार लोगों के लिए खतरनाक था। वह ड्यूटी पर ,अस्पतालों के चक्कर लगाते हुए बराबर मास्क पहनता था। अतः उसे इससे खतरा नहीं लगता था।

कोरोना की दूसरी लहर पहली से बड़ी थी। रमेश को पैसे कमाने का एक और अवसर दिखाई दिया। उसने टैक्सी दूसरे ड्राइवर को किराये पर दे दी। किसी प्रकार उसने एक एम्बुलेंस एजेंसी में ड्राइवर की नौकरी पकड़ ली। अब उसका खेल फिर चाळू हो गया। मरीज जितना अधिक गंभीर बीमार होता सौदा उतना ही अच्छा और जल्दी होता। गलत काम करने वाला भी उस काम को किसी तरह न्याय संगत बना लेता है। रमेश ने भी अपने काम को लेकर खुद को समझा लिया था। इंसानियत पूरी तरह मरी नहीं थी अतः कभी मन में अपने कृत्य को लेकर शंका होती थी। तब व्ह स्वयं को यह कह कर समझा लेता था, "मैं अकेला तो नहीं और भी कुछ लोग कर रहे हैं। वह मरीज को सही जगह समय से पंहुचा दे रहा है। पैसे लोग दे रहे हैं मैं किसी से जबरन छीन तो नहीं रहा। "

वह दिल्ली के चार पांच अस्पतालों के दायरे में अपनी एम्बुलेंस घुमाता रहता था। ये अस्पताल एक से दस किमी के दायरे में थे। इतनी कम दूरी में ही उसकी लाखों की कमाई हो रही थी।

सब बढ़िया चल रहा था। एक दिन रमेश के एक दोस्त ने मांग रख दी, "यार रमेश तू इतनी कमाई कर रहा है एक पार्टी तो कर। शाम को एक महंगे होटल में रमेश अपने तीन चार दोस्तों के साथ पहुंचा। उसने एक मंहगी शराब और दोस्तों की पसंद का उम्दा खाना मंगाया। नशा चढ़ा तो हंसी मजाक करते हुए उनके मास्क उतर गये और धौल धप्पा शुरू हो गया तो दूरी भी न रही ।

पार्टी अच्छी रही थी। सभी संतुष्ट होकर अपने अपने घर चले गए थे।

तीन चार दिनों बाद सुबह रमेश एक प्राइवेट अस्पताल के बाहर अपनी एम्बुलेंस के साथ खड़ा था। उसका बदन टूट रहा था। शायद ठीक से सोया नहीं था एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उसके पास तेजी से आया और उसने पूछा, "जनरल अस्पताल चलोगे ?"

रमेश ने पूछा, " मरीज सीरियस है क्या ? बेड नहीं मिला ?"

"यहाँ बेड खाली नहीं है। वहां किस्मत से बेड मिल गया है." उस व्यक्ति ने लगभग हाँपते हुए बताया।

रमेश ने कहा, "चलेंगे, बीस हज़ार रूपये लगेंगे। "

वह व्यक्ति चौंक गया उसे लगा उसने गलत सुना है अतः उसने पूछा, "कितने ?"

रमेश ने दुहराया," मेरे एम्बुलेंस में ऑक्सीजन भी है। मरीज सुरक्षित पहुंच जाएगा। "

वह व्यक्ति लगभग रुआँसा सा बोला, "मेरा बेटा बीमार है। मेरे पास इतना पैसा नहीं है। फिर इलाज के लिए भी पैसा चाहिये। सरकारी अस्पतालों में भी दवा बाहर से मंगाते है। फिर आजकल तो सभी जगह साधनों की कमी है।"

साधरणतः रमेश अपना भाव कम नहीं करता था किन्तु न जाने क्यों उसने उस व्यक्ति को रियायत दे दी।

रमेश ने उससे कहा, "ठीक है पंद्रह हज़ार रूपये दे देना?"

वह व्यक्ति बोला ठीक है। वह दौड़ कर अस्पताल के अंदर गया और कुछ मिनटों में एक २४-२५ साल के युवक को गोद में उठाकर ले आया।

युवक भी बुरी तरह हांफ रहा था। रमेश ने सहारा देकर मरीज को एम्बुलेंस में लिटाकर ऑक्सीजन लगा दी।

दस मिनट में उसने उन्हें जनरल अस्पताल पर छोड़ दिया।

रमेश कुछ अस्वस्थ महसूस कर रहा था। उसने अपनी एम्बुलेंस अस्पताल के कम्पाउंड में एक ओर खड़ी कर दी। उसे थोड़ी सांस लेने में दिक्कत हुई तो वह एम्बुलेंस से बाहर खुली हवा में सांस लेने उतर आया। तभी उसका जी मितलाया और उल्टी हो गयी। उसे अपना बदन भी गरम लगने लगा था।

एक वार्ड बॉय ने देखा तो एम्बुलेंस का ड्राइवर होने के नाते उसे अंदर डॉक्टर के पास ले गया।

डॉक्टर ने रमेश का चेक अप किया और उसे भर्ती होने और करोना का टेस्ट करवाने की सलाह दी। वार्ड बॉय ने कहा, "डाक्टर साब बेड तो कोई खाली नहीं। "

डॉक्टर ने कहा, "85 नंबर बेड पे ले जाओ उसपर एक ही पेशेंट है।ड्राइवर साब थोड़ा रिकवेस्ट कर लेंगे"

वार्डबॉय रमेश को सामान्य वार्ड में बेड नंबर 85 पर ले गया। उस बेड के मरीज को देखकर रमेश चौंक गया। वह वही युवक था जिसे रमेश अपनी एम्बुलेंस में अस्पताल लाया था। उससे कुछ कहना नहीं पड़ा। वह समझ गया था। उसने एक साइड सरक कर दूसरे मरीज के लिए आधा बेड खाली कर दिया। रमेश उसके बगल में लेट गया। वार्ड में सभी बिस्तरों पर दो लोग थे।

रमेश की जब टेस्ट रिपोर्ट आयी तो पता चला उसे कोरोना हो गया था।

रमेश ने कोरोना की भयावहता देखी थी। किन्तु महसूस नहीं की थी उसका सारा ध्यान पैसों पर रहता था। साथ ही उसने ये कभी सोचा नहीं था की कोरोना उसे भी हो सकता है। अब उसका अपराध बोध उसे आतंकित किये था। उसने अपनी एम्बुलेंस में मनमाने दाम लेकर कोरोना से मृत व्यक्तियों की लाशों को भी ढोया था। उसे लग रहा था उसके गलत कामों के फलस्वरूप वह बीमार पड़ा है।

उसे एक हफ्ते अस्पताल में रहना पड़ा। हर पल वह अपने किये पर पछताता रहा और ईश्वर से क्षमा मांगता रहा।

वह ठीक होकर जब अस्पताल से निकला वह एक नया व्यक्ति था। लोगों के प्रति सुहानुभूति रखने वाला और अपना कार्य ईमानदारी से करने वाला। अब वह अपनी एम्बुलेंस का उचित भाड़ा लेता था। कभी कभी किसी गरीब को आपात स्थिति में अपनी सेवा निःशुल्क भी प्रदान कर देता था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational