एक डोर
एक डोर
सत्यभामा की ज़िंदगी धीरे-धीरे बदलने लगी थी। कॉलेज की पढ़ाई में वह पूरी तरह से रम गई थी, और हर दिन नए अनुभव उसे प्रेरित करते। क्लासरूम में लेक्चर्स सुनने से लेकर केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल्स तक, हर चीज़ में उसकी दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी। हॉस्टल में भी वह सबसे चहेती बन गई थी। उसका पढ़ाई में तेज़ होना, उसका सुंदर चेहरा और सबसे बढ़कर उसका दूसरों से बात करने का तरीका—सब उसे खास बनाते थे।
सत्यभामा को केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल्स में सबसे ज़्यादा मज़ा आता था। बर्नर की लौ, टेस्ट ट्यूब में रंग बदलते घोल, और रसायनों के बीच होते प्रयोग उसे मंत्रमुग्ध कर देते। उसका केमिस्ट्री ग्रुप चार लोगों का था, जिसमें प्रशांत नाम का एक लड़का भी था। प्रशांत काफी शांत और गंभीर स्वभाव का था, लेकिन धीरे-धीरे वह सत्यभामा में दिलचस्पी लेने लगा। सत्यभामा की मेहनत और समझदारी ने उसे प्रभावित कर दिया था। क्लास के बाद अक्सर वह उससे सवाल पूछने के खाने से उसके आगे पीछे डोलता रहता था.

