एक और लक्ष्मीबाई
एक और लक्ष्मीबाई
एक औरत जब माँ बनती है उस में संसार की सारी शक्तियां आ जाती है। वो अपने बच्चे की सुरक्षा और अच्छी परवरिश के लिए हर तूफ़ान से लड़ने के लिए आगे आजाती है। तब भले ही पूरी दुनिया उसके विरुद्घ हो पर वो अपने इरादों से नहीं हटती। अपने अंदर की शक्ति को जागृत कर लक्ष्मी बाई जैसी आख़री सांस तक लड़ती है। आज आप सबको ऐसी एक नारी की कहानी सुनाती हूँ।
लक्ष्मी एक बहुत ही सरल , शांत, और सुलझी हुई लड़की थी। रंग-रूप और गुण में भी वो बहुत अच्छी थी। ग़रीब परिवार से थी इसिलए कहीं से अच्छा रिश्ता न मिल रहा था उसके लिए। वो कभी कभार अपने मौसी के यहाँ कुछ दिनों रहती। वहीं आस पड़ोस में उसके लिए बहुत रिश्ते आया करते थे लेकिन उसके परिवार की आर्थिक अवस्था को जानने के बाद सब मुकर जाते। वहीं एक परिवार था जिनके तीन बेटे थे। मझले लड़के को स्वास्थ्य की कमज़ोरी थी। जीससे उसका रिश्ता कहीं नही हो पा रहा था। हालांकि वो नौकरी करता था। अच्छा खासा कमाता भी था। जब उसका रिश्ता आया तो लक्ष्मी के परिवार वालों ने बिना कुछ सोचे हाँ करदी।
शादी होगई। ससुराल में उसने सबका मन जीत लिया। सास ससुर भी ऐसी ही बहु की चाहत में थे। दाम्पत्य जीवन भी बहुत खुशनुमा चल रहा था। लेकिन तीन साल तक उनको संतान प्राप्त न हुआ। चौथे साल कई मन्नतों के बाद उसके यहां एक बेटी हुई। जेठ जेठानी को पहले से लडक़ी थी।उनको और संतान न हुआ। बस एक ही बेटी। इसलिए सब राह तके बैठे थे के एक बेटा हो जाए। बेटी होने पर घर में सबका मुँह उतर गया। छटे साल उसको और एक बेटी हुई। अबकी बार तो सबने उस बच्ची को ही कोसना शुरू कर दिया। अब लक्ष्मी अंदर से बहुत टूट गई थी। परिवार वालों के दबाव में सातवे साल ही वो फिर गर्भवती हुई। इस बार लड़का हुआ। पति पे आर्थिक तनाव बढ़ता गया। शारीरिक रूप से वो कमज़ोर था ही। अब मानसिक तनाव भी बढ़ने लगा। बेटे को सात महीने हुए थे और उसका पति की आकस्मिक मृत्यु होगई। अब वो बिल्कुल अकेली। झोली में छोड़ गए तो ये तीन मासूम बच्चे और ग़रीबी। उसने कभी घर के आंगन से बाहर अकेले कदम नहीं रखा था।
धीरे धीरे ससुराल वालों के व्यवहार बदलने लगे। सास ससुर की उम्र होगई थी और जेठ जेठानी ने बेटे की माँ है और जायदाद में ज़्यादा हिस्सा हड़प लेगी ये सोचकर उसपर अत्याचार करते रहे।
समय बीतता गया और तरह तरह की बातों से लक्ष्मी का जीवन यापन और कठिन होता गया। आस पड़ोस के लोगों से कुछ मदद लेती तो हर कोई उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के लिए तैयार रहता। उसे अपनी आबरू और अपने बच्चों का भविष्य दोनों को सुरक्षित रखना था। पर कैसे?
दुश्मनों से घिरी एक चक्रव्यूह में उस बेचारी की मदद करता कौन? तब उसके अंतर्मन से आवाज़ आई - बस बहुत हुआ ये लक्ष्मी का रूप अब चंडिका बनकर अपने बच्चों की ढाल बनना होगा। अब और अत्याचार नहीं सहना अब लड़ना है, उसने कुछ महिलाओं की सहायता लेकर अपना छोटा सा गृहउद्योग का कारोबार शुरू किया। ऐसी महियाएँ जुड़ने लगीं जिनको समाज ने अकेली औरत समझकर नक्कारा, उनका शोषण किया। अब वो सारी औरतें एक जूट होकर एक दूसरे का सहारा बनकर उभरी। कहते हैं ना नारी के बशूट रूप होते हैं, इन्हें सती से महाकाली बनना आता है, इन्हें गृहलक्ष्मी से लक्ष्मीबाई बनना आता है। एक नारी अगर ठान ले तो अपने आप मे ही अपने रक्षक को देख लेती है। और ऐसे ही वो सरल, शांत और सुलझी हुई बेचारी लक्ष्मी आज साहसी, ताकतवर और निडर लक्ष्मीबाई बनकर अपने और अपने बच्चों की सुरक्षा ख़ुद करती है।
