एक आखिरी पैग़ाम....
एक आखिरी पैग़ाम....
धीरे धीरे.......
यूं रोज के इंतज़ार का ये सिलसिला भी खत्म होने लगा था.
मेरी आँखों ने रास्ता देखना बंद कर दिया.
दिल से उसके आने की आस जाने लगी थी l
अनगिनत सवालों का ढेर बना मेरा मन
अब दिल को समझाने लगा की अब आस छोड़ दो l
फिर एक दिन......
सुबह तो वैसे ही हुयी पर नये उमंग से भरी थी.
मेरे सारे सवालों का जवाब देने मेरे नाम की चिट्ठी लिए
पोस्टमैन मेरे दरवाज़े पर दस्तखत देता है l
मेरे इतने सवाल थे की उस जवाब से भरी चिट्ठी को लेकर
मैं दरवाज़े के सहारे बैठ गयी.
3 महीनों के लम्बे अरसे के बाद मुझे ये चिट्ठी मिली.
मेरी आँखों में सैलाब था जिसे मैं अपने आँचल से
रोकने की कोशिश करते हुए पढ़ना शुरू किया l
मैं अब भी निराश थी क्यूंकि ये भी हर चिट्ठी की तरह........
"उनके घर आने का जवाब न लायी थी".......

