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Comedy

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ट्रेन का सफ़र

ट्रेन का सफ़र

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किसी भी ट्रेन के सफर का मजा लेना हो तो उसके जनरल डिब्बे में बैठ जाइए। जब मैंने पहली बार जनरल डिब्बे में सफर किया तो मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं अपने इस अनुभव को आपके साथ बाट रहा हूँ........

"अरे वो चाचा...... थोड़ा खसक के बइठा....."

"हमाऊ के गोरखपुर तक ही जाए के बाय....!"

कुछ ऐसे ही वाक्यों के साथ मेरा सफर शुरू हुआ। मैने भी इधर उधर देखा और अपने लिए कोई जगह देखने लगा। पर वो डिब्बा ऐसे भरा था, मानो 5 किलो की बोरी में 8 किलो चावल कुछ देर देखने के बाद मैंने दरवाजे के बगल के दीवार से सहारा लेकर खड़ा रहने का फैसला लिया। उस डिब्बे में बहुत से लोग अलग अलग जगहों से थे, पर उनकी बाते और एक दूसरे का हाल चाल जानने का सलीके से लग रहा था जैसे सब एक दूसरे को अच्छे से जानते और पहचानते हों। जूते और चप्पलें ट्रेन की छत पर लगे पंखे की शोभा बढ़ा रहे थे लोग अपने अपने समान गोद में रखे सामान रखने वाली जगहों पर भी बैठे हुए थे। एक आदमी पान खाए हुए, खिड़की के तरफ बैठे हुए महिला को बार बार हटने के लिए आग्रह कर रहा था जिससे कि वो पान थूक पाए। चार लोगो की सीट पर छः छः लोग बैठे हुए थे। कोई अपने समान रखने तो कोई अपने ऊपर बैठे हुए व्यक्ति की लटकती टांगों को ऊपर करने के लिए बातें कर रहा था।फिलहाल तो डिब्बे की ज़मीन दिखाना तो बहुत मुश्किल लग रहा था। हर ओर कोई किसी पर लात रखकर तो कोई दो सीटों के बीच में सो रहा है। एक व्यक्ति का तो केवल पेट भर दिखाई दे रहा है क्योंकि ऊपरी धड़ एक सीट के नीचे और निचला धड़ सामने वाली सीट के नीचे है। कुछ ख़ुशनसीब थे जिन्हें सीट मिल गई थी लेकिन वो बैठे-बैठे ऊंग रहे हैं। अब ख़ुशनसीब कौन है यह जानना थोड़ा मुश्किल है। जिसे सीट मिली है वो या फिर जो नीचे ज़मीन पर मज़े से सो रहा है वो। मेरी नज़र में सबसे ख़ुशनसीब वह है जो बहुत ही दुबला-पतला है और आराम से किसी भी खांचे में फिट हो सकता है। डिब्बे में एक ओर जहां केवल आमने-सामने दो कुर्सियां होती हैं उसके ऊपर सामान रखने की जगह पर वो ख़ुशनसीब सो रहा है। कई सारे अलग-अलग मापों के बस्तों के ऊपर चैन से कैसे सोया जाता है यह मैं उसके उठने पर ज़रूर पूछूंगा। मैं अब वहा से हट कर एक सीट के किनारे सहारा लेकर खड़ा हुआ। किसी भी वक़्त ट्रेन का एक झटका मेरे सर के ऊपर टांगे गए बाग को मेरे सर पर पटक सकता था। एक आदमी पॉपकॉर्न लेकर आता दिखाई देता है जिसे देख मेरे मन में ख्याल आया कि ये कैसे एक छोर से दूसरे छोर पर जायेगा। इतनी भीड़ कि जहां आदमी की नाक से नाक टकरा जाए उसमें भी पॉपकॉर्न का बड़ा झोला लेकर आसानी से निकल जाने का हुनर उसे अपने काम की प्रति लगन और पेट भरने की मजबूरी साफ साफ बयां कर रहा था। ये सब देखते सुनते और सारी चीज़ों मजे लेते हुए मेरे सफर के तीन घण्टे कब बीत गए पता ही न चला। कहने के लिए तो मेरा सफर तो पूरा हो गया और एक अनूठा और खास अनुभव दे गया।


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