“सफरनामा”राह से रूह तक का....
“सफरनामा”राह से रूह तक का....
रोज की तरह आज सुबह सुबह मैंने सूखे पत्तो और हरी घास पर मोतियों जैसी चमकती ओस की बूंदो से ढकी हुयी पखडंडी का सफर अब अंजान से, जाना पहचाना सा लगने लगा था |शीत मंदाकिनी की हल्की हल्की झोंखो का आनन्द लेता हुआ मै , विचाराधीन मन के साथ टहलते हुये, ध्यान आज अचानक से एक खिलखिलाती हुई हंसी के ओर आकर्षित हुआ lउसके दीदार की एक झलक पाने के लिए मेरे मन ने सोचना छोङ उसे देखने की जिद करने लगा, मैंने उसे देखा और देखता रह गया। एक बिंदी , बालो में केशबंद और प्यारे से चेहरे पर खिलखिलाती हुयी उसके होंठो की हंसी मुझे उसका गुनहगार बनने पर मजबूर कर दिया । मेरे पैरो की यात्रा मानो रुक सी गयी l
मैं इतने दिनों से रोज ही उसे देखता था पर आज वो और उसकी हंसी मानो कुछ और ही बातें बयां कर रही थी, उसे देखते ही मेरे मन में सवाल उठा "कहीं ये मेरी जिंदगी में सफरनामा बन कर तो नहीं आयी है ??" किसी सरफिरे की मोहब्बत की अस्वीकारता उसके चेहरे और गले पर बने हुए घाव के निशान उसकी खूबसूरती को बयां करने के लिए काफी थे जैसे चांद पर लगे धब्बे चांद की खूबसूरती को बढाते हैं।