दया
दया
घर से थोड़ी दूर पर ही एक कुंआ था। कुंआ खुला हुआ था, जाल वग़ैरह से ढका हुआ नहीं था। पता नहीं कैसे एक सड़क का कुत्ता घूमते हुए उस कुएंमें गिर गया। कुत्ता डूबने उतराने लगा। उस कुत्ते को निकालने के लिए कौन कुएँ में उतरता। कोई उसे निकालने को तैयार नहीं था। उसको देखने कुएँ पर भीड़ तो जमा हो गई, पर कोई उसकी सहायता को नहीं बढ़ा।
एक बुजुर्ग व्यक्ति सुबह टहलने निकले थे, कुएँ पर भीड़ देखी, उन्होंने पूछा क्या बात है। पता चला है कि एक कुत्ता कुएँ में गिर पड़ा है, सो भीड़ जमा है।
वह पास गए, कुत्ते की करूण दशा देखी। उसकी मदद कैसे करें। पास में पुलिस चौकी थी,सहायता करने का बोर्ड लगाये। उन्होंने वहाँ जाकर पुलिस मैन से कहा कि "भाई तुम तो सहायता करने के लिए यहाँ बैठे हो, वह कुत्ता कुएँ में गिर गया, उसको बाहर निकलवा दो।"
वह पुलिसमैन कहने लगा कि "कुत्ता निकालना हमारा काम नहीं, कोई आदमी होता तो हम निकाल भी देते।"
उन बुजुर्ग ने समझाया कि "भाई भगवान सब जगह हैं, कुत्ते में भी प्राण हैं, उसे भी सुख दुख महसूस होता है। एक अच्छा काम करोगे तो भगवान भी तुम्हारी मदद करेगा। कुत्ता कुएँ में मर गया तो पानी भी पीने लायक नहीं रहेगा। देर करोगे तो कुत्ता जीवित नहीं रहेगा।"
सिपाही पर बात का असर हुआ। वह एक और सिपाही को साथ लेकर कुएँ पर गया। कुत्ता जीवित था बाहर निकलने को संघर्ष कर रहा था। सिपाही ने डोल मंगवाया। उसे रस्सी से कुएँ में डाला। और किसी तरह कुत्ते को बाहर निकाल लिया।
कुत्ता थोड़ी देर तो चुपचाप पड़ा रहा, फिर बदन झाड़ा और उठकर चल दिया। कुत्ता सही सलामत बच गया।
उस बुजुर्ग व्यक्ति ने दोनों सिपाही को सौ, सौ रुपये इनाम में दिए। वे लेने को मना करने लगे, पर बुजुर्ग ने रुपये उन्हें थमा दिए। और बोले,” तुमने एक अच्छा काम किया, मेरी बात सुन ली, कुत्ता बच गया,, तुम्हें इनाम तो मिलना ही चाहिए।”
दया भावना की ,सहृदयता की कमी नहीं है।