दूसरों की तकलीफ समझें
दूसरों की तकलीफ समझें


"नया महीना शुरू हो गया है। पिछले महीने का इस महीने दोनों का किराया दो।"-मकान मालिक मनीष ने अकड़ते हुए किरायदार सोहम से कहा। "भाईसाहब आपको तो पता ही है, मैं एक छोटी सी प्राइवेट जॉब करता हूँ, पिछले महीने गाँव में माँ बीमार हो गई, कुछ पैसे वहां भेजने पड़े। इसके बाद होली आ गई। घर में भी राशन-पानी का ख़र्चा है। बच्चों की एडमिशन फ़ीस भी जमा करी। एक-दो महीने का समय दें, मैं मकान का किराया दे दूँगा। 21 दिन का लॉक डाउन किया है सरकार ने ऊपर से प्राइवेट जॉब है, इस बार पूरी तनख्वाह कट सकती है या जितने दिन जायेंगे उतने दिन की मिले।" सोहम ने चिंतित होते हुए मकान-मालिक मनीष से कहा।
"इतना मुझे न बताओ, गाँव भेजने के लिए रुपये हैं, बच्चों की फ़ीस भरने के लिए रुपये हैं, राशन-पानी के लिए भी रुपये हैं और तो और होली खेलने के लिए भी रुपये हैं, पर समय से किराया देने के लिए रुपये नहीं हैं तुम्हारे पास। हफ्ते भर का समय है दे देना किराया।"-यह कहकर मनीष अपने कमरे में आ गया।
सोहम के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच आईंं। लॉक डाउन के कारण सब बंद है। कुछ दिन घर पर रखा राशन भी खत्म हो जायेगा। राशन-पानी तो सरकार मुहैया करा देगी पर किराया देना है। कैसे होगा? पति को उदास देखकर सोहम की पत्नी बोली-"आप ऐसे उदास मत होइये। संकट की घड़ी है हम सभी पर आई है। मिलकर निकल लेंगे। "सोहम रोआंसा होते हुए बोला- "न कोरोना होता, न लॉकडाउन होता, ना आँफिस दफ्तर बंद होते न ही किराया रुकता।"
"आप चिंता मत कीजिए मैं अपनी सोने की अँगूठी मकान मालिकों को गिरवी रख दूँगी। तीन-चार महीने का किराया बड़े आराम से निकल आयेगा।"-सोहम की पत्नी ने कहा।" पर वह तो तुम्हारी माँ ने शादी में तुम्हें दी थी।"-सोहम ने ना से सिर हिलाते हुए कहा। सोहम की पत्नी समझाती हुई बोली-"जान है तो जहान है। पैसे से ज्यादा ज़रुरी जान है। एक अँगूठी गई कोई बात नहीं दूसरी बन जायेगी।" यह कहकर सोहम की पति ने ऊँगली में से अँगूठी निकालकर सोहम को पकड़ा दी। सोहम उस अँगूठी को भारी मन से देखने लगा और उसे सम्भाल के रख ली।
आधी रात को अचानक मकान-मालिक मनीष के कमरे से चीखने की आवाज़े आईं। अजीब सी आवाज़ सुनकर सोहम और उसकी पत्नी मकान-मालिक के कमरे की तरफ भागे। दोनों वहां के नज़ारे देखकर काँप गए। मनीष के पिता जी को हार्ट-अटैक आया हुआ था। मनीष उसकी पत्नी और बच्चे घबराये हुए थे। मनीष की पत्नी बार-बार रोते हुए कह रही थी हमसे क्या ग़लती हुई है। आधी रात को वो भी लॉक डाउन के समय कोई वाहन मुश्किल था और लॉक डाउन के कारण फैमिली डाक्टर भी अस्पताल में अपनी ड्यूटी कर रहे थे। उन्होंने फौरन पिताजी को एडमिट करने को कहा। पर वह अस्पताल कैसे जाते?
सोहम ने इस मुश्किल घड़ी में मनीष का भरपूर सहयोग करते हुए अपने दोस्त को तुरंत सब स्थिति बताते हुए, कार देने का अनुरोध किया। नाजुक स्थिति समझते हुए सोहम का दोस्त तुरंत अपनी कार से मनीष के पिता को अस्पताल ले गया। घर पर सोहम की पत्नी ने मनीष की पत्नी को ढांढस बढ़ाया और मनीष की पत्नी के अस्पताल जाने के बाद उसके बच्चों का ख्याल रखती। मनीष भी बच्चों के लिए दूध और मनीष के घर का सामान ले आता। हफ्ते भर बाद मनीष के पिता जी घर आ गए। सोहम छोटे भाई की तरह मनीष के काम आ रहा था।
एक दिन सोहम मनीष के पास गया और अँगूठी देते हुए बोला-"भाईसाहब,आप ये अँगूठी रख लीजिए। मैं कैसे भी करके किराये का इंतज़ाम नहीं कर पाया हूँ। आपके पिताजी भी बीमार हैं उनके दवाई-पानी में कमी नहीं होनी चाहिए। आगे आपको जब जरूरत पड़े सामान वगैरह लाने की आप बेफिक्र आवाज़ लगा दीजिएगा।"
मनीष हाथ में पकड़े उस अँगूठी को देखते-देखते रो पड़ा। मनीष ने रोते-रोते सोहम को गले से लगाते हुए कहा-"पागल है क्या भाई, जो मैंं तुम्हारी पत्नी की अँगूठी लूँगा। माफ़ कर दे भाई ।जो तुमने किया है उसका तो कर्ज में जीवन भर नहीं उतार सकता। जब कोई काम नहीं आया उस समय तुमने हमारा साथ दिया। मेरे पिताजी को अपने पिताजी की तरह देखभाल की। मेरे पीछे मेरे घर का राशन पानी लाये। तुम्हारी पत्नी ने मेरे बच्चों का कितना ख्याल रखा।उसके आगे हम तुम्हारे ऋणी हूं।"- यह कहकर मनीष फूट-फूट कर रोने लगा। इसके साथ ही उसकी पत्नी और पिताजी भी रोने लगे।
मनीष के पिता जी बोले-"आज से तुम मेरे छोटे बेटे हुए। तुम्हारा एहसान मैं कैसे उतारूँ। आज से तुम कोई किराया नहीं दोगे और यह मैं एक पिता के हक से कह रहा हूँ।" यह सुनकर सोहम और उसकी पत्नी के आँसू छलक आये।
दोस्तों, कोरोना वायरस महामारी के कारण सम्पूर्ण विश्व में संकट आया हुआ है। इस महामारी को देखते हुए हमारी सरकार ने लॉक डाउन घोषित किया हुआ है । जिस कारण आर्थिक व्यवस्था में भी असर पड़ा है सब से ज्यादा प्रभाव करीब और मध्यम वर्ग की जनता को हुआ है। अतः अपने अधिनस्थ कार्यरत जनों, किरायदारों का विशेष ख्याल रखें। उनके बारे में जरूर सोचें।