Akanksha Gupta

Drama Tragedy

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Akanksha Gupta

Drama Tragedy

दूर तलक़ अँधेरा

दूर तलक़ अँधेरा

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उसके मोहल्ले में कदम रखते ही लोगों की भीड़ फुसफुसाहट करने लगी थी। भले ही वो अपने घर दस साल बाद लौट रही थीं लेकिन उसके माँ-बाप उसके आने से खुश नहीं थे। इन दस सालों में बहुत कुछ बदल गया। माँ का आँचल उसके सिर से हट चुका था, उसके पिता जो उसके चेहरे को देखकर ही अपने दिन की शुरुआत करते थे, आज उसकी अपवित्र देह की ओर नज़र उठाकर देखना भी पाप समझ रहे थे।


लोगों की व्यंग्य भरी नज़रों से छलनी होती हुई वो अपने घर में एक सुरक्षित कोने की तलाश में पहुँची तो उसे लगा जैसे यहाँ पर उसे अपनी उन बदनाम गलियों से ज्यादा खतरा है जिनसे बचकर वो यहाँ आई थी। मोहल्ले के लड़के उसे कोई स्वादिष्ट व्यंजन समझ कर चबाने को आतुर थे।


उसकी माँ को अपने जिंदा बचे बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही थी जो उसके लौट आने से खतरे में आ गया था। वो तो उनके लिए तभी मर चुकी थी जब उसे पैसों के लिए उन बदनाम गलियों में बेच दिया गया था। आज जिस्म से ज्यादा दिल के घाव दर्द दे रहे थे जो उसे उसके अपनो ने दिए थे।


वो वहाँ पर एक पल बिना रुके वापस लौट गई अपनी उन्हीं बदनाम गलियों में क्योंकि बाहर चाहे जितनी भी रोशनी हो लेकिन उसकी ज़िंदगी में दूर तलक अंधेरा ही था जिसे दूर करने का साहस समाज में नहीं था।



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