दुखों का श्राद्ध
दुखों का श्राद्ध
सविता जी आज अपनी बहू के मेंहदी लगते देख भावुक हो रही है। सविता जी के आज पोते विनय की शादी की तैयारी चल रही है। विनय सविता जी की एकलौती बहू शालीनी का बेटा है। शालीनी की शादी सविता जी के बेटे दीपक के साथ हुई थी। दीपक ओर शालीनी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। शालीनी की सादगी भरी सुंदरता देख दीपक का दिल शालीनी पर आ गया।
चूड़ीदार सूट उस पर छोटी सी नीली बिंदी आँखो में काजल दोनों हाथों में चूड़ियाँ पाव में पतली सी पाजेब लंबे बाल।। कोई भी देखता मंत्र मुग्ध हो जाता।
शालीनी को हमेशा से ही सलीके से तैयार होना ओर गहरे रंग के कपड़े पहनने का शौक था।
सविता जी ने पहली बार जब शालीनी को देखा था उसी दिन अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था।
कुछ ही दिनों में सविता जी की इच्छा भी पूरी हो गई। शालीनी बहू बन कर आ गयी। शादी के बाद तो शालीनी की खूबसूरती और बढ़ गयी। लाल साड़ी में मांग में सिंदूर गले में मंगलशूत्र हाथों की मेंहदी में शालीनी की खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे।
हर वार त्योहार में शालीनी दुल्हन की तरह सजती।। धीरे धीरे समय बीत रहा था। दो साल बाद विनय शालीनी की गोद में आया।
सब अच्छा चल रहा था लेकिन कब दीपक गलत संगत में पड़ गया ना शालीनी को पता चला ना सविता जी को। सिगरेट शराब का शौक कब लत में तबदील हो गया शायद दीपक भी ना जान पाया। शालीनी सविता जी घर पर सब ने खूब समझाया लेकिन दीपक पर कोई असर नहीं पड़ा, घर में अजीब सी मनुसीहत छा गई। शराब नशा मनुसीहत ही तो है।
शराब के नशे ने लीवर को गला के रख दिया। पूरे परिवार की जिम्मेदारी शालीनी के ऊपर आ गयी। जब विनय 15 साल का हुआ लंबी बीमारी के बाद दीपक का देहांत हो गया। शालीनी के जीवन के सारे रंग उड़ गए। अपने लिए ठीक से शोक भी मनाने का वक्त ना मिला शालीनी को। सास ससुर और अपने विनय की जिम्मेदारी से दबी जो थी। दुख मनाए भी तो किस के लिए जिसने अपनी जिंदगी नशे में बर्बाद कर दी। ना अपने माँ पिता के लिए सोचा ना पत्नी बच्चे के बारे में।
आज विनय की शादी है। सभी तरफ ख़ुशी का माहौल है लेकिन सविता जी ने जो खुशी आज शालीनी को दी है उसका कोई मोल नहीं।
सविता जी ने शालीनी को अच्छी गुलाबी रंग की साड़ी देते हुए कहा इतने सालों से में तुम्हें समझाने की कोशिश कर रही हूं अपने जीवन से रंग मत उड़ने दो। तुमने हमेशा हमारी सेवा की है अपने माँ पिता से बढ़ कर हमें माना है तुम मेरी बेटी ही हो। मैं तुम्हें फिर वैसे ही देखना चाहती हूं जैसे सालों पहले पहली बार देखा था सजी सुंदर। मेरी ये इच्छा मेरे मरने से पहले पूरी कर दो।
माँ आप ऐसी बातें मत किया कीजिए। समाज एक विधवा को कभी ऐसे स्वीकार नहीं करेगा।
समाज की चिंता मत करो। गलती मेरे बेटे ने की। उसकी सजा मेरी बेटी नहीं भूगतेगी। तुम चाहती तो दूसरी शादी कर सकती थी पर तुमने हमें अपनी प्राथमिकता माना। दूसरी शादी करती तो समाज के लिए सभी रंग मान्य होते। तुमने अपना कर्तव्य निभाया इस लिए तो तुम्हें सुंदर दिखने से समाज़ वंचित नहीं कर सकता। क्या एक आदमी ही किसी औरत के पहनावे रहन सहन को निर्धारित कर सकता है। समाज़ ने विधुर पुरूष के लिए तो कोई नियम निर्धारित नहीं किए।
आज फिर उन रंगों को ओढ़ कर शालीनी की आँखो में चमक आ गयी। मेंहदी लगाती शालीनी को सविता जी बड़ी प्यार से निहार रही थी। कुछ लोग बातें बना रहे थे पर आज सविता जी किसी की परवाह किए बिना खुश थी बहुत खुश थी।
