दशहरा
दशहरा
दशहरा ( विजय दशमी )
दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक एक पावन त्यौहार है । जो भारतवर्ष के अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है । अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मान्यताएं हैं । अयोध्या में नौ दिनों तक श्रीराम की पूजा की जाती है । जोड़ा कलश स्थापित करके रामायण पाठ की जाती है और बिहार और बंगाल में एक कलश स्थापित करके मां दुर्गा की आराधना की जाती है और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है और दसवें दिन हथियार , अस्त्र शस्त्र पूजन की विधि है । सेना में भी दशहरा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ।
बचपन से देखा है । दशहरा में मंदिरों में बहुत वृहद स्तर पर पूजा पाठ और हवन होता है । मेला का भी आयोजन होता है । बच्चों के लिए तरह-तरह के झूले , खेल खिलौने और कहीं थियेटरों का भी इंतजाम किया जाता है बच्चों के मनोरंजन के साथ साथ कुछ गरीब लोगों की कमाई भी हो जाती है । गली के नुक्कड़ पर दुर्गा मां की मूर्ति की स्थापना , पूजा , अर्चना और आखिरी में कुछ नाटक जैसे कार्यक्रम का आयोजन होता है ।
कहीं कहीं काली पूजा का अधिक महत्व तो वहां बली देने की प्रथा है । बकरे और भेड़ की बली दी जाती है । बंगालियों में अष्टमी को पुष्पांजलि और पेठा और नारियल को बली के रूप में अर्पण करते हैं ।
मूलतः दशहरा श्रीराम के जीत की कथा है । श्रीलंका में जब श्री राम और रावण के बीच युद्ध हुआ और रावण मारा गया । रावण के उस मौत को सदियों से बार बार जीवंत किया जाता है । लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके रावण का पुतला बनाया जाता है और फिर उस पुतले को जलाकर रावण दहन का उत्सव मनाया जाता है । बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है ।
प्राचीन काल में एक और मान्यता है कि दशहरा दुर्गा माता के असुरों से जीत के जश्न के रूप में मनाई जाती है । भारतवर्ष के कुछ हिस्सों में दशहरा के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है और मां दुर्गे की मूर्ति की स्थापना की जाती है । एक कलश की स्थापना के साथ जौ बोए जाते हैं । नवमी तिथि को हवन के उपरांत कुंवारी कन्याओं की पूजन की जाती है और पंडितों को भोजन कराकर दान दक्षिणा के साथ विदाई की जाती है ।
अपनी-अपनी मान्यताओं , आस्था , श्रद्धा, विश्वास और आर्थिक स्थिति के हिसाब से देश भर में खूब उत्साह उमंग के साथ दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है ।