दस हजार की नौकरी
दस हजार की नौकरी
"माँ !मुझे ये नौकरी भी नहीं करनी।"
" पर क्यों बेटा ?"
"इतनी पढ़ाई की, इंजीनियर बना।ये दस हजार की नौकरी के लिए। मुझे नहीं करनी यह नौकरी।"समीर अंहकार का बोला।
" पर बेटा ऐसे करके तू सारी नौकरी गँवा देगा। "
"चिंता मत करो माँ। अभी पूरी उम्र पड़ी है। मुझे कोई न कोई नौकरी मिल ही जाएगी। देखना बीस हजार का ऑफर आएगा मेरे लिए।"कहकर समीर चला गया। दिन बीतते गए और समीर अपनी दस हजार की नौकरियों को ठुकराता गया। आखिरकार एक दिन उसके दोस्त ने उसे फोन किया।" अरे समीर !कैसे हो भई ?क्या हाल है ?"
"मनोज कहाँ हो आजकल तुम ? सुना है तुम्हें नौकरी मिल गई।"
" हाँ यार! दस हजार की नौकरी मिली थी। पर आज देखो, आज मैं लाखों में कमा रहा हूँ। "समीर आश्चर्य से सुनता रह गया। "क्या यह कमाल कैसे किया तूने ?ऊपर की कमाई है क्या ? सच सच बताना।"
"अरे नहीं यार ! तू मुझे जानता नहीं क्या ? मैं और ऊपरी कमाई। काम की शुरुआत दस हजार से की थी अब धीरे-धीरे प्रमोशन मिलता गया। काम में अच्छा होता गया तो बाॅस सैलरी बढ़ा दी और आज मैं इतना कमा रहा हूँ। अपना घर है, कार है और क्या चाहिए और तू क्या कर रहा हम दोनों साथ ही पास आउट किए थे।"
"कुछ नहीं यार मुझे तो नौकरी नहीं मिली। दस हजार की मिलती थी तो मैं उन्हें ठुकरा देता था। "
"समीर दस हजार की नौकरी बहुत बड़ी नौकरी होती है। अगर तूने कर लिया होता तो तू मुझसे आगे रहता। अभी भी वक्त नहीं बीता है। अभी भी तू चाहे तो कुछ भी कर सकता है। छलांग मारने से हम गिर सकते हैं। धीरे-धीरे ऊपर चलेंगे तो आगे आसमान को छू लेंगे इसलिए अपनी उड़ान को मत रोको। भरो।"
"सही कह रहा तू मनोज। आज ही मैं एक नई शुरुआत करता हूँ। उनसे जो भी नौकरी मिलेगी भले वह पाँच हजार की हो, उसे कर लूँगा और अपनी जिंदगी की गाड़ी को सही पटरी पर ले आऊँगा।
