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Sonia Goyal

Fantasy Inspirational

3  

Sonia Goyal

Fantasy Inspirational

दरवाज़े के पार

दरवाज़े के पार

7 mins
330

रमेश अपने पिता शंकर और माता सुमित्रा का इकलौता लड़का था। इकलौता होने के कारण कोई उसे कुछ नहीं कहता था, इसलिए वह बहुत शरारती था। लेकिन उसकी एक कमजोरी यह थी कि वह अपनी मां से बहुत प्यार करता था और उनके बिना एक पल भी नहीं रह सकता था। उसके पिता शंकर गांव के एक जाने-माने सुनियार थे। शहरों में भी उनका व्यापार चलता था। उनके परिवार में सुख-समृद्धि सब कुछ था।

ऐसे ही सब अच्छे से चल रहा था कि अचानक सुमित्रा जी की तबीयत खराब हो गई। शहर के अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया, पर कोई फायदा नहीं हो रहा था। दिन-प्रतिदिन उनकी तबीयत खराब होती जा रही थी। जब उन्हें लगने लगा कि अब उनका बचना संभव नहीं है तो उन्होंने अपने पति को अपने पास बुलाया और उन्हें कहा कि अब मेरे जाने का समय आ गया है।

इस पर शंकर जी ने कहा,"कुछ नहीं होगा तुम्हें। तुम ये सब बातें अपने दिमाग से निकाल दो। बहुत जल्द ही तुम ठीक हो जाऊंगी।"

सुमित्रा जी,"आखिर कब तक आप मुझे और खुद को झूठा दिलासा देते रहेंगे।"

सुमित्रा जी की ये बात सुनकर शंकर जी कुछ नहीं बोले। बस उनकी आंखों के आंसू ही सब कुछ बता रहे थे।

सुमित्रा जी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "आपको पता है ना कि रमेश मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकता, इसलिए मैं चाहती हूं कि जब मेरी मृत्यु हो तो वो यहां न हो। अगर उसको ये सब पता चल गया तो वो इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा मेरे कारण दुख सहे।"

शंकर जी, "पर ये कैसे संभव है??"

सुमित्रा जी, "उसकी चिंता आप मत कीजिए, मैंने सोच लिया है कि ये कैसे होगा। मैं जानती हूं कि मुझसे बदनसीब मां कोई नहीं होगी, जिसको अपनी अंतिम यात्रा में भी अपने बेटे का कंधा नसीब न हो।"

शंकर जी रोते हुए,"पर तुम करोगी क्या??"

सुमित्रा जी, "बस आज जब वो घर आएगा, तब आप किसी नौकर के हाथों कोई चीज तुड़वा देना और उसका सारा नाम मैं रमेश पर डाल दूंगी और उससे गुस्सा होकर खुद को एक कमरे में बंद कर लूंगी और दोबारा कभी भी उसके सामने नहीं आऊंगी। जब मेरी आत्मा अपना शरीर त्याग दे तो रमेश को कहीं भेज देना और उसे पता मत लगने देना कि मैं इस दुनिया में नहीं रही।"

ये सब बोलकर सुमित्रा जी अपने पति को एक टेप रिकॉर्डर दिया और कहा, "मैंने इसमें अपनी आवाज में कुछ बातें रिकार्ड कर दी है। जब भी रमेश ज्यादा टूटने लगे तो आप उस कमरे में से ये रिकाॅर्डर चलाकर उसे मेरी आवाज़ सुना देना।"

शंकर जी को भी यह बात अच्छे से पता थी कि उनकी पत्नी के पास अब ज्यादा समय नहीं है। वह अपनी पत्नी के साथ-साथ अपने बेटे को नहीं खोना चाहते थे, इसलिए वो मान गए और सबको भी समझा दिया।

शाम को जब रमेश खेल रहा था, तो नौकर ने शंकर जी के कहे अनुसार एक महंगी मूर्ति तोड़ दी और नाम आया रमेश पर। सुमित्रा जी ने भी अपने प्लान के अनुसार रमेश को बहुत डांटा और कहा,"रमेश तुम दिन-प्रतिदिन बहुत शरारती होते जा रहे हो। हम तुम्हें इसलिए नहीं कुछ कहते, क्योंकि तुम अभी बच्चे हो और हमें लगता था कि तुम खुद सुधर जाओगे, पर बस अब नहीं। अब मैं तुम्हें तब तक अपनी शक्ल नहीं दिखाऊंगी, जब तक तुम सुधर नहीं जाते और पढ़-लिखकर एक बड़े आदमी नहीं बन जाते।"

इतना कहकर सुमित्रा जी खुद को एक कमरे में बंद कर लेती है। उनके ऐसा करने पर रमेश बहुत रोता है और दरवाजा पीटता हुआ कहता है,"मां प्लीज़ बाहर आ जाओ, देखो मैंने अपने कान भी पकड़ लिए। आज के बाद मैं कभी कोई शरारत नहीं करूंगा, प्लीज़ मां आखिरी बार माफ़ कर दो।"

सुमित्रा जी,"अगर तुम अब मुझे इस कमरे से बाहर लाना चाहते हो, तो जैसा मैंने कहा है वैसा ही करो।"

रमेश वहीं बैठा रोता-रोता सो जाता है और अंदर सुमित्रा जी रोते हुए खुद से कहती है,"मुझे माफ़ कर दे मेरे बच्चे, पर ये सब मैं इसलिए कर रही हूं ताकि तू मुझे देखने की उम्मीद में मेहनत करे और एक सफल इंसान बन जाए।"

अगले दिन सुबह शंकर जी रमेश को उठाते हैं और कहते हैं,"बेटा तुम ऐसे हिम्मत नहीं हार सकते, तुम्हें पता है ना कि तुम्हारी मां ने क्या कहा है तो चलो उठो और एक सफल इंसान बनने की तरफ अपने कदम बढ़ाओ ताकि तुम्हारी मां को खुशी मिल सके।"

रमेश,"जी पिता जी अब मैं बहुत मेहनत करूंगा और जल्दी से एक सफल इंसान बनकर अपनी मां को इस कमरे से बाहर लेकर आऊंगा।"

शंकर जी,"ये हुई ना अच्छे बच्चों वाली बात। मैंने तुम्हारा दाखिला पास ही के शहर के एक स्कूल में करवा दिया है। चलो अब जल्दी से उठकर तैयार हो जाओ, हमें आज ही वहां से जाना है। ताकि जल्दी से तुम्हारी मां का सपना पूरा हो सके।"

रमेश अपने पिता की बात मान लेता है और जल्दी से तैयार होकर आता है और जाने से पहले अपनी मां के कमरे के बाहर आकर कहता है, "मां मैं शहर जा रहा हूं पढ़ने के लिए। अब देखना तुम, मैं जल्दी से एक सफल इंसान बनकर आऊंगा। मुझे आशीर्वाद दो मां।"

अंदर से सुमित्रा जी की आवाज़ आती है, "मेरा आशीर्वाद तो हमेशा तुम्हारे साथ है बेटा।"

फिर रमेश अपनी मां से विदा लेकर शहर पढ़ने के लिए चला जाता है। उसके जाने के कुछ दिन बाद ही सुमित्रा जी की मृत्यु हो जाती है, पर ये बात रमेश से छुपाई जाती है।

उधर रमेश भी अपनी मां को जल्दी देखने की आशा में दिन-रात मेहनत करता है। वो कभी-कभी ही अपने घर आता और दरवाजे के पास बैठकर अपनी मां को सारी बातें बताता रहता। शंकर जी भी सुमित्रा जी के कहे अनुसार कमरे में टेप रिकॉर्डर चला दिया करते।

ऐसे ही समय बीतता गया और रमेश बड़ा हो गया। उसने 20 वर्ष की आयु में ही यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली और एक आईएएस अधिकारी बन गया। नौकरी ज्वाइन करते ही वह सबसे पहले अपने घर गया और अपने पिताजी से कहा, "पापा अब तो मुझे इस दरवाजे के उस पार जाने दीजिए। अब तो मैंने मां का सपना भी पूरा कर दिया।"

शंकर जी उस दरवाजे को खोलते हैं और रमेश को अपने साथ अंदर ले जाते हैं। कमरे में सुमित्रा जी की एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी। उस तस्वीर को देखकर ऐसा लगता था कि जैसे सच में जीवित सुमित्रा जी ही खड़ी हों।

रमेश ने कमरे में इधर-उधर देखा तो वहां सुमित्रा जी नहीं थी। रमेश ने शंकर जी से पूछा कि मां कहां है, तो उन्होंने टेप रिकॉर्डर चला कर रमेश के हाथ में देते हुए कहा कि बेटा तुम्हारे सवाल का जवाब इसमें है।

रमेश ने वो रिकॉर्डर सुना तो उसमें सुमित्रा जी की आवाज़ थी। सुमित्रा जी कह रही थी,"बेटा अगर तुम मुझे सुन रहे हो तो इसका मतलब कि तुम एक सफल इंसान बन गए हो। तुम्हारी सफलता के लिए तुम्हें बहुत-बहुत बधाई बेटा। मैं बहुत खुश हूं, बस दुख है तो इस बात का कि मैं तुम्हारी कामयाबी पर तुम्हें अपने गले नहीं लगा पाई। बेटा मैं जानती हूं कि तुम्हें समझ नहीं आ रहा होगा कि ये सब क्या है, तो मैं तुम्हें शुरू से सब बताती हूं।"

फिर वो रमेश को शुरू से लेकर अब तक सब कुछ बता देती है। ये सुनकर कि उसकी मां तो इस दुनिया को कब की अलविदा कह गई, उसके आंखों से आंसू आ जाते हैं। वो जोर-जोर से रोने लगता है।

तभी रिकॉर्डर से फिर से आवाज़ आती है, "बेटा मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम इस बात को जरूर समझोगे कि मैंने ये सब तुम्हारी भलाई के लिए ही किया है और बेटा मेरी आखिरी इच्छा यही है कि तुमने आज तक जैसे खुद को संभाला है, वैसे ही आगे भी संभालोगे। अगर तुम खुश रहोगे, तो ही मेरी आत्मा को शांति मिलेगी। मेरी ये अंतिम इच्छा पूरी करोगे ना बेटा??"

रमेश रोते हुए ही बोलने लगता है,"हां मां, मैं आपकी ये इच्छा जरूर पूरी करूंगा। मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं हमेशा खुश रहूंगा।"

इतना कहकर वो अपने पापा के गले लग जाता है। उसके पापा भी उसके गले लगकर इतने वर्षों से अपनी आंखों में दफ़न किए आंसुओं को बाहर लाते हैं और रोने लगते हैं।



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