शिखा श्रीवास्तव

Drama Romance

1.9  

शिखा श्रीवास्तव

Drama Romance

दर्शन

दर्शन

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बचपन से ही श्रीकृष्ण के अनेक रूपों की कथा सुनते हुए कब सुमन कृष्ण-भक्त हो गयी वो खुद नहीं जान पायी।

अपने प्रभु श्रीकृष्ण से जुड़े समस्त तीर्थ-स्थलों की यात्रा पर जाना उसका एकमात्र सपना था। लेकिन उसके पिता अपने कारोबार में इतने व्यस्त रहते थे कि उसे कहीं घुमाने नहीं ले जा पाते थे।

विवाह-योग्य हो चुकी सुमन को अक्सर उसकी बहन छेड़ते हुए कहती "अब तो जीजाजी के साथ ही अपने सपने पूरे करना लेकिन बुढ़ापे में, क्योंकि कोई पागल ही होगा जो इस उम्र में तीर्थ-यात्रा पर जाना चाहेगा।"

सुमन बस मुस्कुराकर रह जाती।

देखते ही देखते वो दिन भी आ गया जब दुल्हन बनी सुमन ने अपने आलता लगे पैरों से द्वार पर स्थित कलश को गिराकर लक्ष्मी-रूप में अपने पति अमित का हाथ थामकर ससुराल में प्रवेश किया।

पहली रात में जब अमित ने कमरे में प्रवेश किया तब घबराई हुई सुमन को देखकर कहा "तुम्हें बिल्कुल भी डरने और घबराने की जरूरत नहीं है। मैं चाहता हूँ हम पति-पत्नी से पहले एक-दूसरे के मित्र बनें, ऐसे मित्र जो अपने मन की हर बात, हर सुख-दुख, आक्रोश-प्रेम सब कुछ एक-दूसरे से बेहिचक बाँट सकें।"

अमित की बात सुनकर सुमन सहज हो गयी।

एक-दूसरे से बातें करते हुए, एक-दूसरे को जानने की कोशिश करते हुए कब रात गुज़र गयी दोनों को पता ही नहीं चला।

कुछ दिनों के पश्चात जब शादी में आये हुए सभी मेहमान अपने-अपने घर चले गए तब अमित ने सुमन से पूछा "अब बोलो हम कहाँ घूमने चले?"

सुमन ने हिचकते हुए कहा "यहाँ से जगन्नाथ-पुरी नजदीक है ना। वहीं चलें?"

अमित कुछ देर के लिए सोच में डूब गया कि लोग कश्मीर, शिमला, केरल की वादियों में घूमना चाहते है और उसकी पत्नी को तीर्थ जाना है। फिर उसे सुमन का बताया हुआ उसका एकमात्र सपना याद आया और उसने खुशी-खुशी 'हाँ' कह दिया।

सुमन की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

जगन्नाथ-पुरी पहुंचकर जब अमित और सुमन जगन्नाथ प्रभु के दर्शन के लिए पहुँचे तब मंदिर में काफी भीड़ थी।

अमित किसी तरह रास्ता बनाते हुए सुमन को थोड़ा आगे ले गया, लेकिन तब भी सुमन दर्शन नहीं कर पा रही थी।

उसकी आँखों से आँसू छलकने ही वाले थे कि अमित ने उसे गोद में उठाकर ऊँचा कर दिया और कहा "अब आराम से दर्शन करो।"

अपने प्रभु की मूरत साक्षात अपने सामने देखकर सुमन भावविभोर हो गयी थी।

वहाँ उपस्थित सभी लोग इस अनूठे जोड़े को देखकर मुस्कुरा रहे थे।

अमित जैसा जीवनसाथी देने के लिए सुमन मन ही मन अपने आराध्य को धन्यवाद दे रही थी।

दर्शन के पश्चात दोनों होटल पहुँचे और दोपहर का खाना खाकर थोड़ी देर के लिए आराम करने का मन बनाकर बिस्तर पर आ गये।

जब सुमन ने देखा कि अमित गहरी नींद में सो चुका है तब वो धीरे से कमरे से निकली और नीचे होटल के रिसेप्शन पर पहुँचकर वहाँ मौजूद ट्रैवेल-डेस्क से अपने और अमित के लिए एक बुकिंग करवाकर वो वापस कमरे में आ गयी।

कुछ देर के बाद जब अमित जगा तब सुमन ने उससे कहा "एक सपना आज मेरा पूरा हुआ। अब मुझे उसका सपना पूरा करना है जिससे मुझे पहली और आखिरी बार मोहब्बत हो गयी है।"

अमित हैरान सा सुमन को देख रहा था।

सुमन की बात का अर्थ समझते ही उसका चेहरा खिल उठा और उसने तुरंत लिफाफा खोलकर देखा तो उसमें केरल की दो टिकटें थी।

"अपनी प्यारी पत्नी के इजहार-ए-मोहब्बत का ये अंदाज़ मुझे पसंद आया।" सुमन को बाँहों में भरते हुए अमित ने कहा।

अगले दिन केरल की वादियों में हाथ थामे, ज़िन्दगी के हर सुख-दुख में साथ निभाने का, एक-दूसरे की ख्वाहिशों का हमेशा मान रखने का वचन देते हुए अमित और सुमन अपने पहले प्रेम के अहसास को शिद्दत से जी रहे थे।


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