दर्द और उम्मीद
दर्द और उम्मीद


दिवाली के अगले दिन कूड़े के ढेर पर एक देसी गाय बैठी थी। उसके आँखो मे आँसू देख ,देसी कुता रूक कर बोला - बहन! तुम क्यों रो रही हो ? तुम्हें तो आज भी लोग माता कहते है।
गाय- तुम नही समझोगे, मेरी तकलीफ । इसी देश में कभी मै श्री कृष्ण की कामधेनु थी तो कभी भोलेनाथ की नंदी।पर आज देखो (और गला भर गया)।
कुत्ता -(बीच में ही बोला) वो समय मुझे भी याद है, दीदी जब युधिष्ठिर के साथ सदेह स्वर्ग मै ही गया था ।युधिष्ठिर का तो अँगूठा भी गल गया था। लोग भैरव समझते थे। शंकर भगवान को खुश करने के लिए लोग गाते थे 'मोर भंगिया के मनाई द, हे भैरोनाथ'। तुम क्यों दुखी हो ? तुम्हारा दूध तो क्या गोबर को भी पूजा मे लगाते है।
गाय- भैरो भाई !तुम नही समझोगे। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है । आज हमारे साथ सौतेला व्यवहार होता है ।हमारी कम दूध को आधार बना विदेशी गाय को लोग एयरकंडीशनर मे सब सुविधा देकर रखते है जबकि मेरा दूध ज्यादा गुणकारी है।पैसे के पीछे लोग ऐसे भाग रहे हैं कि मुझे डर है कि मेरी प्रजाति ही विलुप्त ना हो जाए ?क्योंकि अब लोभ लालच में आकर जबरदस्ती हमारी नस्ल को संकर बना रहे है।
कुत्ता- अरी बहन! इस दृष्टिकोण से तो कभी सोचा ही नहीं। हमारी जाति मे ही देखो ना! हमारी नस्ल वाले को 'गली का कुता' कह गाली दिया जाता है। जबकि विदेशी कुत्ते को ड्राईंग रूम के सोफे पर ,कार मे जगह देकर इज्जत दिया जाता है। क्या आजतक कभी सुनी हो कि किसी भारतीय कुता को किसी विदेशी ने अपना पालतू बनाया हो ?
गाय -सच कह रहे हो जब अपने देश में ही हम लोगों को कद्र नही तो विदेशी कौन राजगद्दी देगा ?
कुत्ता - पर इस साल के दिवाली देखने के बाद कुछ उम्मीद बंधी है। जिस तरह से चाईना के सामानों को छोड़ मिट्टी के दीप जलाएँ है उससे अब लगने लगा है कि हमारे देश के लोग भी जाग रहे हैं।
गाय - काश ! ऐसा हो।