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Seeta B

Fantasy

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Seeta B

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दोस्तों से दुनिया

दोस्तों से दुनिया

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दिव्या बहुत खुश है, वो कॉलेज से घर आती है। अपने पापा ‘दिपक’ और ममी ‘वंदना’ को बताती है की मैं अपनी आगे की पढाई के लिए अमेरीका जाना चाहती हूँ और मेरा सीलेक्शन भी हो गया है।

दिपक को आश्चर्य हुआ, उसे तो कुछ पता ही नही था। पर मानना ही पडा, दिव्या बंगलोर से चली गयी अमेरीका। वहॉ कॉलेज मे शुरु मे तो दिव्या को परेशानी हुयी पर फिर कुछ अच्छे दोस्त बने। उसके ग्रुप मे एक ही लडका था सन्नी, जो वही पास के किसी शहर से था पर था भारतीय। सन्नी दिव्या की बहुत मदत भी करता था।

दिव्या और सन्नी मे अच्छी दोस्ती होने लगी। दोनो काफी वक्त साथ बिताने लगे। दिव्या सन्नी से हमेशा कहती, “तुम्हारी कितनी आदतें मेरे सागर अकंल से मिलती है वैसा ही मुस्कराना, नाराज होने पर खुद के ही हाथ अपने दिल से लगा लेना, अचानक से पुरानी बात याद करके जोर से हसना।“ इस वजह से भी दिव्या सन्नी को पसंद करने लगी। पर कभी बताती नही है।

सन्नी एक बार सभी को अपने घर ले जाता है। दिव्या भी आती है। सन्नी की ममी ‘अनु’ सभी की बहुत अच्छी खातिरदारी करती है। पर घर पर कही भी सन्नी के पापा की फोटो तक नही थी। दिव्या पुछती है सन्नी से, पर सन्नी सिर्फ इतना ही बताता है कि पापा ने हमे बहुत पहले ही छोड दिया है।

दिव्या सन्नी के बारे मे अपने ममी पापा को बताती है, उन्हे भी सन्नी से मिलने की इच्छा होती है।

दिव्या और सन्नी एक दूसरे को पसंद करने लगे है दोनो चाहते है परिवारवाले एक बार मिल ले। सन्नी अनु को बंगलोर जाने के लिए मना लेता है। अनु की ममी भी तो वहीं है।

अनु और सन्नी जब दिव्या के घर जाते है तब दिव्या के माता पिता, अनु दिपक और वंदना को देख कर हैरान हो जाती है फिर वो वहॉ ज्यादा देर नही रुकती।

सन्नी और दिव्या परेशान होते है, आखिर बात क्या है समझ नही आती। दिव्या सन्नी को सागर से मिलाती है उसे लगता है शायद वो सब ठिक कर सके। सागर और दिपक बचपन के दोस्त है। सागर के लिए दिव्या बेटी जैसी ही है। दिपक सागर को बताता है कि सन्नी अनु का बेटा है और इसलिए ये बात आगे नही बड सकती। दिव्या उनकी बाते सुन लेती है। वो पुछती भी है कि अगर ऐसा है तो क्या? पर उसे कोई जवाब नही मिलता।

दिव्या और सन्नी सोचते है कहीं सागर तो सन्नी के पिता नही हैं। सन्नी की आदतें सागर से मिलती है। शायद कुछ हुआ हो, दिपक और सागर अनु को पहले से ही जानते है!

सन्नी और दिव्या उलटे सिधे सवाल करने लगते है घर पर। अनु की ममी अनु से कहती है. “तुमने कुछ गलत नही किया है, बच्चे समझदार है उन्हे सब बता दो।“ अनु दिपक को फोन करती है और सब दिपक के घर पर मिलते है। सागर को भी बुलाते है।

अनु बताती है कि “मैं, दिपक और सागर बचपन से एक ही मोहल्ले मे रहते थे। कॉलेज और उसके बाद भी हमारी दोस्ती मे कोई कमी नही आयी। सब मिल कर खुब मस्ती करते। फिर ऑफिस के काम से मैं अमेरीका चली गयी। वहॉ मेरी मूलाकात कुमार से हुयी। कुमार भी भारतीय था, उसका घर गोवा मे था। हम दोनो मिलने लगे फिर दोनो वापस आए, घर पर बात की। सब मान भी गए, हमने शादी कर ली और फिर अमेरीका चले गए।

हम दोनो मे सब ठिक चल रहा था। ऑफिस के काम से कुमार बहुत बार बाहर जाता था। एक बार वो जब गया, कुछ समय तक मुझसे बात करता रहा, पर फिर कोई फोन नही कोई बात नही खबर नही। ऑफिस से पुछा तो पता चला उसने कब से जॉब छोड दिया था। फिर मैं वापस आकर उसके घर भी गयी पर उन्हे भी कुछ पता नही था। वो तो मुझे ही कोसने लगे कि मेरी वजह से ही कुमार घर वालो से नही मिल रहा। मैने बहुत कोशिश की पर कुछ पता नही लगा। दिपक और सागर ने भी मेरा साथ दिया उसे ढूढने में।

एक बार हम साथ बेठे थे, सागर को उन्ही दिनों लडका हुआ था, तो वो हमे बता रहा था कि किस तरह बच्चे के आने से जिंदगी मे खुशियॉ आती है। तब मैने बोला कि काश मेरा भी एक बच्चा होता...”

“मुझे मेरा अपना बच्चा चाहिए था, मैं गोद लेना नही चाहती थी। तो ये दोनो मस्ती करने लगे, हम है ना बोल कब मिले। फिर इस पर हमारे बिच बहुत बहस हुयी। और जो मुमकिन था वो ये कि किसी डोनर को ढुंढ कर मुझे मेरा अपना बच्चा हो सकता था। पर अब दिपक ओर सागर ने मेरी ममी से मिल कर उन्हे मना लिया कि मेरे लिए डोनर ढुंढने के बजाय इन दोनो मे से ही कोई मेरी मदत करेगा।”

तब सागर बोला, “हॉ, बच्चो मे मॉ बाप दोनो के गुण आते है जो हम कभी सोचते नही है। बच्चे पर जितने संन्सकार पैदा होने के बाद उसके आस पास के माहौल से होते है उतने ही माँ बाप के जिन्स से मिलते है। बस यही बात थी और हमने आंटी को मनाया कि किसी और डोनर को ना ढुंढे।”

फिर अनु बोली, “पर मैने एक शर्त रखी की बच्चा होने पर मैं दोनो से कोई संबन्ध नही रखुंगी। दोनो मेरी खुशी के लिए वो भी मान गये। मैं नही चाहती थी कि इन लोगो की अटेचमेंन्ट हो बच्चे से और ना मैं ये जानना चाहती थी कि असली डोनर कौन है। मेरे कहने पर दोनो ने अपनी अपनी पत्नी से बात भी कर ली इस बारे मे। मैने अमेरीका मे डॉक्टर से बात कर ली। फिर दिपक सागर और मेरे ममी पापा सब अमेरीका आए। सब ठिक से हो गया। दिपक और सागर से वो मेरी आखरी मुलाकात थी। फिर सन्नी का जन्म हुआ, मेरी दुनिया को नई परिभाशा मिल गयी। मैंने इस दुनिया के बेमतलबी सवालो से दूर रखने के लिए सन्नी को कुमार का नाम दिया।”

तब दिपक बच्चो से बोला, “अब तुम्हे सब पता है तो रिश्तो को यू हि बनाये रखने के लिए तुम दोनो इस शादी का ख्याल अपने दिल से निकाल लो।”

बच्चे सब जानकर हैरान थे पर उन्हे गर्व हुआ अपने मॉ बाप पर और उनकी दोस्ती पर। इसलिए वो मान गये।

आज इन बच्चो कि वजह से पुराने दोस्त एक साथ थे। सन्नी और अन्नु अमेरीका चले गये, वहीं रहने लगे पहले जैसे। पर अब अन्नु अपने दोस्तों से हमेशा बात करती रहती। दिव्या अपने माता पिता के साथ थी, बंगलोर मे ही काम भी कर रही थी।

दिव्या और सन्नी अपनी जिंदगी मे आगे बड गये पर आज भी अच्छे दोस्त है।


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