मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Drama Others

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मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Drama Others

दोस्ती (कहानी)

दोस्ती (कहानी)

5 mins
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विजय, अपनी बालकनी में आराम कुर्सी पर यूँ ही आँखें बंद किये सोच रहे थे। कभी-कभी छुट्टी का दिन भी कितना मनहूस होता है। आज पता नहीं क्यों एक अजीब सी मायूसी थी। तभी अचानक काल बेल बजी, दरवाज़ा खोला तो सामने कॉलेज के ज़माने का दोस्त अनिल खड़ा था। व्हाट ए सरप्राइज, मिस्टर अनिल गुप्ता !!!-"ओह !!! विजय जोशी चीफ़ इंजीनियर ... । बड़े तमगे लगा लिये तू ने तो अपनी नेम प्लेट में ???" एक ज़ोरदार ठहाके के साथ दोनों गले मिले। 

- अनिल, फ़ोन किया होता। मैं किसी को लेने भेज देता। घर ढूंढने में दिक्कत हुई होगी।

- अरे कुछ नहीं यार, दोस्तों को तो हम पाताल से भी उठा कर ले आते हैं। तुझे तो पता है।

- ये तो है, चलो बैठते हैं। अच्छा हुआ तू आ गया। आज मैं बहुत बोर हो रहा था। और कुछ मायूस सा भी। 

- विजय यार, "जब भी ज़िन्दगी से मायूस हो जाओ तो पुराने लोगों के साथ वक़्त गुज़ार लिया करो। माना कि बहुत कमी हैं लेकिन रौनक़ भी उन्हीं से है और तुम्हें, हमेशा अच्छी सलाह ही देंगे क्योंकि तुम्हें बखूबी जानते हैं। तुम ये क्यों भूल जाते हो कि बचपन में उन्हो ने जो दर्श सिखाए हैं उन्हीं के सहारे तुम्हारी ज़िन्दगी की गाड़ी, अभी तक बढ़िया से दौड़ रही है। उसी के सहारे तो तुम एक क़ाबिल ऑफिसर बने हो। तुमने अब उनसे मिलना ही छोड़ दिया। तो उनके पुराने फार्मूले कब तक काम आएँगे ? अपने मेसेज बॉक्स, उनको ज़रा खोलकर तो दिखाओ। अब तक उनके पास बहुत से नए फार्मूले इजाद हो चुके हैं।" ज़रा अपने बचपन को याद करो जितने तुम्हारे सीधे साधे दोस्त थे न, ... वे तो केवल पापा-मम्मी को दिलासा देने के लिए थे। उनसे तुम्हें कभी कोई तजुर्बा हासिल नहीं हुआ। उन्होंने ने तो हमेशा हर काम से डराया। ऐसा करोगे तो ऐसा हो जाएगा। वैसा करोगे तो हम तुम्हारे पापा को बता देंगे। असली मज़ा तो उन्हीं दोस्तों के साथ आता था न। जिनसे पापा-मम्मी मिलने को मना करते थे। असली तजुर्बे भी इन्होंने ही दिये। इनकी तो, इतनी मिहरबानियाँ हैं कि तुम गिन-गिन कर थक जाओगे। ज़रा याद करो अमरुद के बग़ीचे में चोरी से घुस कर अमरुद खाने में जो मज़ा आता था, वह कितनी ही अच्छी क्वालिटी की वाली फल की दुकान से फल लाकर खाने में है क्या... ??? ... नहीं न। तुम्हें पेड़ पर चढ़ना, गहरे पानी में तैरना, साईकिल चलाना भी तो दोस्तों ने ही सिखाया है। अरे हाँ !!!, किसी अमीर दोस्त की मोटर साईकिल चलाने में कॉलेज में कितना मज़ा आता था!!! ज़रा सा दूर का कहकर, पूरा शहर ही नाप आते थे। और फिर सबसे बड़ी बात तो ये है जिस पर आज तू बड़ा नाज़ करता है न ! कि मेरी तो उस ज़माने की लव-मेरिज है तो सुन... , तेरी तो, उससे बोलने-बात करने की हिम्मत ही कहाँ थी? तू तो बस कॉलेज में अंजना को टुकुर-टुकुर देखा करता था और मन ही मन ख्याली पुलाव बघारता रहता था। अगर तू अपने दिल की बात मुझे नहीं बताता तो वो आज किसी और की होती और तू देवदास बन जाता। वह तो मैं ने ही हौसला दिया था कि -"आज कह ही दे, जो कुछ भी तेरे दिल में है। जो होगा देखा जाएगा। हम तो तेरे साथ खड़े हैं। ये तो पक्का है, तुझे जूते नहीं पड़ने देंगे।" बस, उस दिन का दिन है कि तेरी बात बन गई। आज भी अंजना तेरे साथ है। 

- अरे धीरे बोल यार विजय, अंजना बाजू वाले कमरे में ही है।- तो बुला ले न, उसे भी। - अरे नहीं यार, हम बहुत दिन बाद मिले हैं गप्प लगाते हैं। उसे आराम करने दे। तू तो आते साथ शुरू हो गया। बोल, ठण्डा लेगा या गर्म?- जो तुझे पिलाना हो पिला दे यार। मेरे को तो सब चलता है।

- अरे विजय याद है, जब कॉलेज के एनुअल फंक्शन में तू ने मेरा नाम जोकर के राज कपूर वाले गाने पर एक्टिंग की थी। क्या शानदार एक्टिंग थी यार। "जाने कहाँ गए वो दिन कहते थे तेरी याद में नज़रों को हम बिछाएंगे। चाहे कहीं भी तुम रहो चाहेंगे तुम को उम्र भर तुम को न भूल पाएंगे।" सारे दर्शकों ने खड़े होकर तालियाँ बजाई थीं। जिनकी गड़-गड़ाहट से सारा हाल गूंज गया था। और रैना तो जैसे पागल हो गई हो। अपने को रोक ही नहीं पाई। दौड़कर लिपट गई थी तुझ से, बिना किसी की परवाह किये। अरे कहाँ है... ? कुछ पता चला उसका?-"अपनी नज़र में आजकल दिन भी अँधेरी रात है।साया ही अपने साथ था साया ही अपने साथ है।"- ऐसा कैसे हो सकता है। तू तो सबको इश्क-मोहब्बत के फार्मूले बांटता फिरता था। कुछ तो पता होगा? - होगी कहीं यार। अब तक दादी-नानी बन गई होगी। विजय ने कहा।- अच्छा छोड़े। और सुनाओ विजय, तुम्हारा कारोबार कैसा चल रहा है? - बढ़िया है, अब तो सब कुछ फ़्रेंचाइज़ पर ही है। मैं तो एक दम फ्री हूँ। अब दिल नहीं लगता, इस दुनियाँ में। सोचा, चलो आज तुमसे मिल लेते हैं। कुछ यादें ताज़ा भी हो जाएँगी। कुछ दिल भी बहल जाएगा। - अच्छा किया न। तू आ गया। - विजय, तू भी एक दम से ग़ायब हो गया था। बहुत काम का बोझ था न , तेरे ऊपर? तू भी तो दोस्तों से ही सब कुछ छुपाता है। अब बड़ा आदमी बन गया है न। बड़ा गुरूर हो गया है।"इतनी प्रॉपर्टी खरीद ली। इतना बड़ा कारोबार, इतना बड़ा रुतबा??? " फिर भी तेरा इस दुनियाँ में दिल नहीं लगता ??? ज़रुरत है तुझे भी एक बार फिर, उन्हीं दोस्तों के सामने दिल खोलने की, वरना याद रख, "ये दिल किसी बड़े अस्पताल में खुलवाना पड़ेगा।" एक बार फिर दोनों के ठहाके कमरे में गूंज गए। 



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