दोस्ती और भाईचारा
दोस्ती और भाईचारा
ज़िंदगी में दोस्ती और भाईचारा बहुत मुश्किल होता है संभालना। जो इनको संभाल लेता है उसकी मौत आसान हो जाती है उसके जीवन के अंतिम दिन बड़े ही सुकून से यारों और भाइयों के साथ निकल जाते है। कुछ लोग इस यारी को संभाल पाते है कुछ लोग नहीं, ज़िंदगी में कुछ मुकाम ऐसे भी आते है जहाँ ये जान पाना मुश्किल हो जाता है की कौन सही है और कौन गलत जिसकी वजह से ये यारी टूट जाती है हाँ पर मुझे ऐसे भी लगता है की यारी कभी टूटती नहीं वो हमेशा दिलों में चिंगारी की तरह सुलगती रहती है। मुझे लगता है ऐसा तब होता है जब यारी दोस्ती में नहीं, गहरी यारी दोस्ती में सब अपने अपने मुकाम पर बढ़ने लगते है ऐसे इसलिये कह राह हूँ क्योंकि उस वक़्त सबका ध्यान अपने लक्ष्य की ओर होता है। उस वक़्त इंसान अपने जीवन की अपनी ही कोई नई परिभाषा बना रहा होता है। पर एक दिन ऐसा जरूर आता है जब चाहे कितनी ही लड़ाई झगड़े क्यों न जाये यार की यारी और भाइयों का प्यार याद ही नहीं आता बल्कि उनकी कमी महसूस भी हो जाती है।