दो पैसे
दो पैसे
एक बार श्री कृष्ण अपने शाखा और बहनोई अर्जुन से मिलने उनके महल पहुंचे। अर्जुन ने उन्हें अगले दिन सुबह नगर भ्रमण करने लेने का विचार किया। अगले दिन दोनों नगर परिक्रमा के लिए निकले। कुछ दूर जाने पर उनको एक गरीब ब्राह्मण भिक्षा मांगते हुए दिखाई दिए।
अर्जुन को उनपर दया आयी। उन्होंने ब्राह्मण को अपना एक बहुमूल्य मानिक जदित अंगूठी भेट स्वरुप प्रदान की। ब्राह्मण खुशी से उनको धन्यवाद कहकर अपने घर की तरफ चल दिया। राश्ते मैं कुछ लुटेरों ने उससे वह मानिक चीन ली।
अगले दिन फिर वो ब्राह्मण भिक मांगने लगा। अर्जुन ने फिर उनको देखा और पूछे की क्या हुआ। सारी गाथा सुनने के बाद उनको अर्जुन ने सोने की मोहरे से भरा हुआ एक पोटली प्रदान की। फिर से ब्राह्मण खुशी खुशी अपने घर की और चल दिए।
फिर से वही लुटेरों ने उनसे सब कुछ चीन लिया। फिर अगले दिन सब कुछ जानने के बाद अर्जुन बहुत निराश हुए। तब श्री कृष्ण ने अपनी लीला दिखलाई। उन्होंने उस ब्राह्मण को दो पैसे दिए।
ब्राह्मण उन्हें सुक्रिया कहकर चल पड़े। उन्होंने सोचा की दो पैसो से कुछ नहीं खरीद सकता हूँ। फिर श्री कृष्ण ने उन्हें इतनी काम राशि क्यों दी। उसी समय एक मछवारा एक मछली को पकड़ लिया था और वो मछली जोर जोर से छटपटां रही थी।
ब्राह्मण से ये दृश्य देखा नहीं गया और उन्होंने उस दो पैसो से उस मछली को खरीद लिया। जैसे ही वो उससे पानी मैं छोड़ने जा रहे थे, उस मछली के पेट से वो अंगूठी निकली। ब्राह्मण ने मछली को पानी मैं छोड़ कर उसकी जान बच्चाई और खुशी के मारे छिल्लाने लगा -'मिल गया मिल गया।'
उसी समय वो लुटेरे वहा से गुज़र रहे थे। वे ये सब सुनकर घबरा गए और सोचे की इसने जरूर युधिष्ठिर महाराज से उनकी शिकायत कर दी है और अर्जुन अपनी सेना सहित उन्हें पकड़ने आरहे होंगे | वे सब डर के मारे हाथ जोड़ कर ब्राह्मण के पास आ कर बोले की - ' हमें माफ़ कर दीजिये, अब से हम चोरी छोड़ देंगे। ये कहकर उस ब्राह्मण को उसका पोटली से भरा हुआ सोने के मोहरे दे दिऐ और कहा की अंगूठी कल नदी मैं नहाते समय खो गयी थी, उसके बदले और एक मूल्यबान अंगूठी दे कर जल्दी जल्दी वहां से चले गए।
श्री कृष्ण और अर्जुन दूर से उस ब्राह्मण का पीछा कर रहे थे। अर्जुन ने पुछा की ये कैसे हुआ। श्री कृष्ण बोले की पहले दो बार उस ब्राह्मण ने सिर्फ अपने और अपने परिबार के सुख समृद्धि के बारे मैं सोचा। लेकिन इस बार उसने उस मछली की पीड़ा को महसूस करके उसकी जान बच्चाई। उसने सिर्फ उस मछली के जीबन बच्चाने की बात सोची और दो पैसे उस मछवारे को दे दिए। अंगूठी मिलने के बाद भी पहले उस ब्राह्मण ने मछली को पानी मैं छोड़ा और उसकी जान बचायी। फिर वो खुशी के मारे छिल्लाया।
जब भी हम दुसरो के बारे मैं सोचकर उनकी मदत करते हैँ, तब तब भगवान हमारी मदत करते हैँ और हमें जीबन मैं सफलता और कामियाबी प्रदान करते हैँ।
अर्जुन को अब सारी बात समझ मैं आ गई। उन्होंने श्री कृष्ण को प्रणाम किया और आगे बढ़ने के लिए अनुरोध किया। फिर दोनों अपनी मंज़िल की और चल दिए।
