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Prem Bajaj

Romance

3  

Prem Bajaj

Romance

दो दिल मिले चुपके-चुपके

दो दिल मिले चुपके-चुपके

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"निलेश आज जो हुआ वो ठीक नहीं था"

  " हां प्रेम इस बात का मुझे भी एहसास है कि हमसे अनजाने में बहुत बड़ी गलती हो गई, लेकिन यकीन मानो मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था, शायद वक्त ने आज हमें ये एहसास दिलाया कि हम दोनों के दिल एक दूजे को चाहते हैं, हम बेशक अपनी ज़िम्मेदारियों से, अपने परिवारों से, अपनी मजबूरियों से बंधे हैं ,लेकिन दिल तो आज़ाद है ये किसी के बांधे कभी बंधे हैं, हमारे दिल चुपके से कब एक -दूजे के हो गए, कब यूं मिल गए हमें पता ही नहीं चला!"

  "सच कह रहे हो निलेश कब ये दिल तुम्हारे दिल से चुपके से बतियाने लगा मैं तो जान भी नहीं पाई, शायद इसी को ही प्यार का नाम देते हैं लोग, शादी शुदा होते हुए भी मैं प्यार का अर्थ नहीं जानती थी, कभी प्यार मिला ही नहीं, बस बिस्तर की ज़रूरत और घर में काम की मशीन, और एक ए. टी. एम. बन कर रह गई थी!"

" प्रेम फिर तुम अपने पति से तलाक क्यों नहीं ले लेती ??"

" हूंहह , ये नहीं हो सकता आकाश मुझे तलाक नहीं देते, मैंने कहा था एक बार, जब से तलाक की बात हुई है तब से ज़्यादा मार-पीट और गाली -गलौच करने लगे हैं! 

मेरा पति आकाश अक्सर शराब पी कर आता है, और मुझ पर हाथ उठाता, उस पर गन्दे इल्ज़ाम लगाता, मैं चुपचाप सह रही हूँ, बस मुझे अगर कहीं सुकून मिलता तो ऑफिस में! यहां आकर सब दुःख भूल जाती हूं, तुम्हारा साथ अच्छा लगता, निलेश को भी मेरा साथ अच्छा लगता, अक्सर काम में मेरी मदद करता, लंच-टाईम में हम दोनों एक साथ लंच करते और अपने-अपने दुःख -सुख साझा करते, निलेश मेरे पति की हरकतें जानकर बड़ा दुखी होता और मुझे सांत्वना देता, देखा जाए तो हम दोनों ही अपने जीवन साथी से बहुत परेशान थे, निलेश की पत्नी भी मुंहफट और झगड़ालू किस्म की थी इसलिए हम दोनों को ऑफिस में एक दूजे का साथ अच्छा लगता।

दो दिन का ऑफिस मिटिंग टूर था और साथ में ने साल की पार्टी भी थी ऑफिस की तरफ से मुम्बई में! और निलेश के बैंक से निलेश और मुझे चुना गया, हम दोनों वहां मिटिंग से फारिग हो कर होटल वापिस आ रहे थे टैक्सी से तो मेरे पति आकाश का फोन आया जो बहुत बुरी तरह मुझे गाली दे रहा था, मेरी आंखें भीग गई, टैक्सी से उतरते ही मैं सीधी अपने कमरे में गई और फूट-फूट कर रोने लगी। थोड़ी देर बाद उन्हें नीचे होटल में नए साल की पार्टी में भी पहुंचना था, मगर मेरे आंसू नहीं थम रहे थे! निलेश मेरी हालात देखकर अपने कमरे में ना जाकर मेरे रूम में चला आया मुझे ढांढस बंधाने, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, जैसे ही निलेश ने मेरे आंसू पोंछने चाहे मेरा बांध टूट गया और मैं निलेश के गले लग कर खूब रोई, निलेश ने मुझे बांहों में भर लिया!  बाहर नए साल का जश्न पूरे शबाब पर था और भीतर एक ज्वारभाटा आया और हम दोनों को एक करके चला गया ।

"हां प्रेम मैं भी प्यार की तपिश को आज महसूस कर पाया हूं,"

 हम दोनों के चेहरों पर एक सुकून भी था, दोनों तृप्त हो चुके थे।

"प्रेम तुम घबराओ मत, मानता हूं जो हुआ नहीं होना चाहिए था, अब एक ही रास्ता है मैं वापिस जाते ही अपना तबादला करा दूंगा, ताकि फिर कभी ऐसा ना हो"!

और निलेश ने आते ही दो दिनों में अपना तबादला करा लिया। हम दोनों एक -दूजे से दूर हो गए लेकिन एक -दूजे को दिल से ना निकाल सके, हमारे तो चुपके से एक-दूजे से बातें करते थे, एक -दूजे से मिलते थे। दो दिल चुपके-चुपके एक - दूजे के ख्यालों में मिल कर ही तृप्त हो जाया करते थे। हम दोनों के दिलों में वो लम्हे घर कर चुके थे, उन्हीं लम्हों के सहारे ही हम अपनी जिंदगी बिताने चले था रहे हैं।

यही है * प्रेम - नीलेश, प्रेम*



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