दो बातें
दो बातें


आज फिर मनीषा का बेटा माही स्कूल से घर आकर चीड़ कर अपने कमरे मे चले गया. बैग भीं फैक दिया. जूते मोज़े भीं जगह पर नहीं रखे. टिफ़िन भीं नहीं निकाला। गुस्से मे पैर पटकता हुआ बस चला गया अंदर। मनीषा बेचारी प्यार से उसे बेटा बेटा पुकारती रही पर उसने एक ना सुनी।
ये हर हफ्ते की कहानी थी. माही को हर हफ्ते कुछ ना कुछ शिकायत होती रहती थी. मनीषा का परिवार एक मध्यम वर्गीय परिवार था. अभाव किसी चीज का नहीं था. आवश्यकता की सब चीज़े मौजूद थी अभाव था तो विलासिता का। माही के पापा महेश एक सरकारी स्कूल मे प्राध्यापक थे. वे साधा जीवन और उच्च विचार की महिमा से प्रभावित थे.
तथापि वे माही को आवश्यकता की हर वस्तु उपलब्ध करवाते थे किन्तु उसकी अनावश्यक आवश्यकताए वे पूरी नहीं करते थे. बस इसीलिए वो हर हफ्ते किसी ना किसी बात को लेकर हंगामा करता था. गुस्सा होकर मुँह फुला कर कमरे मे बैठ जाता था. माँ को कुछ भीं कहता था. कभी खाना नहीं खाता था. कभी अपने दोस्तों के यहाँ जाकर बैठ जाता तो आता ही नहीं। उसे कभी खुद का मोबाइल चाहिये होता तो कभी बाइक. कभी किसी दोस्त की जैसी घड़ी तो कभी महंगा वाला लैपटॉप।
किसी ना किसी बहाने से उसे अपनी बात मनवानी होती थी। मनीषा कई बार उसे समझा चुकी थी पर वो समझ नहीं पा रहा था. मनीषा और महेश दोनों जानते थे की माही की युवा वस्था आने को थी ये समय ही ऐसा होता है ज़ब माँ पापा हर बात मे गलत और दोस्त और बाहरी लोग सही लगते है। ऐसे मे अगर समझदारी से काम ना लिया जाये तो बच्चे और ज्यादा बिगड जाते है.
इसीलिए वो दोनों उसे डांटने की जगह हर बार समझाते। आज उसकी जिद थी उसे विडिओ गेम चाहिए था. माँ ने समझाया बेटा वो बहुत महंगा है और वैसे भीं छह माही परीक्षा का समय नजदीक है अगर खेल मे ज्यादा ध्यान लगाओगे तो पढ़ नहीं पाओगे।
पर वो नहीं माना. मनीषा ने महेश से कहां। तो इस बार महेश ने बिना कुछ कहे उसे विडिओ गेम ला दिया. मनीषा और माही दोनों आश्चर्य चकित थे। पर माही बहुत खुश भीं था। उसने पापा को धन्यवाद दिया। और खेलने मे लग गया. मनीषा ने पूछा ऐसा क्यूँ किया आपने।
महेश ने कहां बस देखते जाओ।. जैसे महेश ने सोचा था वैसा ही हुआ। माही का ध्यान खेलने मे लग गया. पहली बार विडिओ गेम मिलने से वो पगला गया था। पढ़ाई वडाई छोड़ उसने पूरा ध्यान खेल मे लगा दिया. सिर्फ स्कूल मे पड़ता घर आकर डांट पड़ती तो थोड़ा पड़ लेता पर उसका मन खेल मे ही लगा रहता. जिससे वो पढ़ाई मे पिछड़ गया।
परीक्षा परिणाम आये तो हमेशा प्रथम आने वाला माही फ़ैल हो गया था। उसकी घर आने की हिम्मत नहीं हो रही थी. पर घर तो आना ही था. बहुत देर रोने के बाद जब वो घर आया. तो देखा माँ पापा इंतजार कर रहे थे। माँ ने उसकी शक्ल देख उसे लगा लिया और पूछा कहां था अब तक, क्या हो गया, कितनी चिंता हो रही थी हमें।
पापा ने पूछा क्या हुआ बेटा ऐसी सूरत क्यूँ बना रखी है। तब उसकी फिर रुलाई फुट गयी। रोते हुए उसने अपना परीक्षा परिणाम आगे रखा। माँ ने देखा और कहां इसीलिए कह रही थी खेलने मे मत लग। पढ़ाई कर ले पर तूने नहीं सुनी। देख ले अब।
फिर पापा ने उसे बुलाया और पास बैठाया। फिर पानी पिलाया और बोला रोना बंद करो। कोई बात नहीं तुम फ़ैल हो गए पर तुम क्यूँ फ़ैल हो गए ये तुम्हे समझ आ गया ना बेटा। हम तुम्हे हर जरुरत की चीज इसीलिए लाकर देते है ताकि तुम्हे कोई कमी महसूस ना हो और ये अनावश्यक वस्तुये इसीलिए नहीं लाकर देते क्युकि इनकी तुम्हे जरूरत नहीं है।
बेटा जिंदगी मे दो बाते हमेशा याद रखना। जब भीं अपनी जिंदगी मे कोई कमी लगे अपने से निचे वालो को देखो। देखो की उनके जीवन मे क्या कमी है। कितने अभाव है, किसी को रहने के लिये घर नहीं है, पहनने के लिये कपड़े नहीं है, खाने को खाना नहीं है। कोई स्कूल नहीं जा पाता, दिन रात मजदूरी करता है। फिर भीं वो शिकायत नहीं करता। कम से कम हमारे पास रहने को घर, खाने को खाना, पहनने के लिये कपड़े है हम अच्छी शिक्षा पा रहे है। इसके लिये भगवान को धन्यवाद दो.
और वही अगर आगे बढ़ने की बात हो तो हमेशा अपने से ऊपर वाले को देखो की उसने उसके मुकाम तक पहुंचने के लिये कितनी मेहनत की होंगी। कितनी समस्याओ का समना किया होगा। फिर भीं अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले वो हारा नहीं। बेटा सफलता परिस्थिति नहीं मेहनत से मिलती है। तो अपनी परिस्थिति पर रोने और उसको जिम्मेदार ठहराने की जगह मेहनत करो।
माही ध्यान से पापा की बात सुन रहा था उसे उसकी गलती समझ आ गयी थी. उसने अपने पापा मम्मी से माफ़ी मांगी और आगे से ऐसी हरकते ना करने का वादा किया और पापा की दोनों बाते गांठ बांध ली। और अंतिम परीक्षा मे सबसे अव्वल आने का वादा भी किया।