Dinesh Divakar Stranger

Horror Drama

5.0  

Dinesh Divakar Stranger

Horror Drama

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 9

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 9

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इस कहानी को पढ़ने से पहले इस कहानी के पिछले आठ भागों को पढ़ें।


अब तक......


सहस्र बाहु को उस मायाजाल से जैसिका को बचाने का उपाय मिलता है वह प्रेम को दिव्या को बुलाने के लिए कहता है और फिर उन दोनो को त्रिशूल देते हैं जिससे वे दृष्टि और उसके मायाजाल को खत्म कर सके।


अब आगे.......


प्रेम और दिव्या चलते चलते बहुत दूर निकल पड़े


दिव्या- प्रेम तुम्हें याद है हमने मिलकर बांस को कैसे बेवकुफ बनाया था।


प्रेम- हां उसे कैसे भुल सकता हूं , हम भी कितनी बदमाशियां किया करते थे काश वो दिन फिर वापस आ जाता।


बात करते करते शाम होने लगा तभी सामने एक पुरानी हवेली दिखाई दिया


दिव्या- प्रेम शाम हो रही है आज रात हमें यही रूकना चाहिए।


प्रेम- नहीं हम सीधे उस मायाजाल में जाकर रूकेंगे।


दिव्या- नहीं हम जिस रास्ते से जाने वाले हैं वो कब्रिस्तान का भंडार है, इसलिए रात में वहां अतृप्त आत्माएं भटकती रहती है इसलिए हम यही रूकने वाले हैं।


प्रेम- पर.....


दिव्या- पर वर कुछ नहीं।


प्रेम- ओके बाबा मैं तुमसे कभी जीत पाया हूं


अच्छा वो कब्रिस्तान इतना विशाल है क्या ?


दिव्या- वह पहले कब्रिस्तान नहीं था बल्कि एक खुशहाल गांव था ।


प्रेम- फिर वह कब्रिस्तान कैसे बना ?


दिव्या- इसका पता तुम्हें अगले भाग में पता चलेगा दृव्य दृष्टि - एक रहस्य ( कलंक) में


बहुत देर तक करते करते रात के बारह बज गए, प्रेम थकान के मारे वहीं ढेर हो गया, दिव्या उसके सर के पास बैठकर पुराने दिन याद करने लगी।


सुबह नौ बजे प्रेम की आंखें खुली- अरे बाप रे नौ बज गए, दिव्या दिव्या कहां हो तुम !


प्रेम दिव्या को ढूंढते ढूंढते थोड़ी दूर निकल गया फिर उसकी नजर दिव्या पर पड़ी वह आम के पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ रही थी


दिव्या तुम ये क्या कर रही हूं - प्रेम चिल्लाया


दिव्या- देख नहीं रहे हो तुम्हारे लिए फल तोड़ रही हूं आगे का सफर भुखे रहकर करोगे क्या। ये लो कुछ आम खा लो


प्रेम- मेरा मन नहीं है।


दिव्या- अच्छा खाते हो या... ‌


प्रेम- अरे बाबा खाता हूं खाता हूं गुस्सा मत हो 


दिव्या- प्रेम मुझे भी आम खाना है


प्रेम- तो तुम भी खाओ ना ये लो


दिव्या- अरे बुद्धू मैं आम कैसे खा सकती हूं।


प्रेम- अरे हम, तो क्या करू जिससे तुम्हारी भूख मिट जाए


तभी उन्होंने देखा एक छोटे से बंदर को क‌ई बंदर मिलकर तंग कर रहे थे।


प्रेम उन बंदरों को डराकर वहां से भगाया और उस छोटे से बंदर को अपने हाथों में पकड़ लिया वह बहुत कमजोर लग रहा था ।


प्रेम के हाथ में आम देखकर वह उसे लेकर खाने लगा उसके बाद प्रेम उसे तीन चार आम और देता है ।


दिव्या- प्रेम मेरा पेट भर गया


प्रेम- अच्छा शायद वो बंदर अपनी भूख नहीं तुम्हारी भूख मिटाने आया था।


फिर दोनों आगे बढ़े थोड़ी ही देर में वो दोनो उस कब्रिस्तान वाले गांव में पहुंच गए वहां अजीब सी निगेटिव एनर्जी था जो मन में निराशा भर रहा था जिससे प्रेम कमजोर पड़ रहा था फिर थोड़ी देर आगे जाने के बाद वह निगेटिव एनर्जी तीव्र हो गया जिससे प्रेम अपना आपा खो बैठा- नहीं हम उससे नहीं जीत सकते हम हार जाएंगे, ऐसे बातें बोलकर वह वहीं बैठ गया और रोने लगा।


दिव्या आगे आगे जा रही थी प्रेम की आवाज सुनकर तुरंत उसके पास ग‌‌ई- प्रेम उठो यहां से जल्दी चलो ये तुम्हारे मन में निराशा भर रही है , यहां अगर और रूके तो ये तुम्हें मार डालेंगे और हम जैसिका को कभी बचा नहीं पाएंगे।


लेकिन प्रेम तो जैसे सब कुछ भुल गया था दिव्या को कुछ सुझ नहीं रहा था तभी उसने अपना त्रिशूल निकाल कर जमीन पर गाड़ दिया, त्रिशूल के जमीन पर पढ़ते ही उसके शक्ति से वहां की आत्माएं जो वहां भटक रहा था उन्हें मुक्ति मिल गया वो आसमान में काले धुएं बनकर गायब हो गया।


थोड़ी देर बाद प्रेम को होश आया- दिव्या मुझे क्या हो गया था।


दिव्या- कुछ नहीं सायद नियती चाहती थी कि इन सभी आत्माओं को मुक्ति दिलाने का जरिया हम बनें, अब चलो यहां से हमारे पास समय नहीं है।


कब्रिस्तान को पार करने के बाद एक विशाल खाई दिखाई दिया जिसका अंत काहा है पता नहीं चल रहा था।


प्रेम- दिव्या आगे तो खाई हैं हम आगे कैसे जाएंगे।


दिव्या - यही तो दृष्टि का मायाजाल है


ऐसा कहकर वह प्रेम को लेकर उस खाई में छलांग लगा दिया। प्रेम डर के मारे चीखता रहा फिर दोनों एक गांव में पहुंच गए वहां का नजारा काफी डरावना और खतरनाक था जगह जगह चिताएं जल रहा था छोटे छोटे घरों में कुछ लोग दिख रहे थे।


प्रेम- अरे वाह यह तो इंसान हैं


दिव्या- वो इंसान नही शैतान है क‌ई लोग उन्हें इंसान समझकर उन्के पास जाते तो वो लोग उनका बेरहमी से गला काट देते।


यहां सम्हल कर रहना, जो दिख रहा है उस पर यकीन मत करना, यहां शिकारी खुद शिकार बन जाता है


मेरे पीछे पीछे आओ, उन शैतानो की नजरों से बचते बचाते वो उस मायाजाल के करीब पहुंचे वह एक विशाल महल था जिसका उंचाई बादलों में घुसा पड़ा था। दिखने में वह बहुत खुबसूरत था।


दिव्या- प्रेम लगता है मेरे कैद होने का समय हो गया है मुझे जाना होगा तुम अपना ख्याल रखना और मेरी बातों को याद रखना यहां जो दिख रहा है वो असल में वो नहीं है और हां जब मेरी जरूरत पड़े मुझे बुलाना, और उस मायाजाल में जैसिका की तलाश करना मैं जल्दी ही आउंगी।


ऐसा बोलते ही वह गायब हो गई अब प्रेम बिल्कुल अकेला हो गया था अंजान जगह पर वह छिपते छिपाते आगे बढ़ने लगा..... फिर एक जगह रुक कर आगे रास्ता देखने लगा तभी उसके कंधे पर किसी ने अपना हाथ रखा प्रेम डरते हुए पिछे मुडा और.......


कहीं दृष्टि को पता तो नहीं चल गया ?

तो क्या प्रेम और दिव्या पकड़े जाएंगे ?

क्या प्रेम अब जैसिका को खो देगा ?



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