दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 11 कलंक
दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 11 कलंक
इस कहानी के पिछले 10 भाग प्रकाशित हो चुका है
अब तक आपने पढ़ा प्रेम और दिव्या अपने जान पर खेलकर जैसिका को दृष्टि से बचाते हैं और उस मायाजाल को भी नष्ट कर देते हैं फिर दृष्टि एक सवाल छोड़ जाती है जिसका जवाब जानने प्रेम सहस्त्रबाहु के पास जाता है। अब आगे......
सूरजपुर, सुरजपुर नाम था उस गांव का, बात उन दिनों की है जब मेरे पिता उस गांव के वैद्य थे महर्षि नाम था उनका गांव में उनसे ज्यादा पढा लिखा कोई नहीं था उनका एक शिष्य था प्रकाश यानी दिव्या और दृष्टि के पिता जो अविवाहित थे।
इधर हम अपने मां के पेट से बाहर आने कि इंतजार कर रहे थे और आखिरकार वो दिन भी आ गया हमारे पिता महर्षि की खुशी हमें देखकर दूगना हो गया क्योंकि हम जुड़वां पैदा हुए जब हम थोड़े बड़े हुए तो हमारे जन्म दिन पर एक रस्म का आयोजन किया गया जिसमें हमारे सामने पुस्तक, पेन, पैसा, चाकू आदि रखे गए इसके हिसाब से हमारा नामकरण होना था।
मैं आगे बढ़कर पुस्तक और पेन को उठाया जिसे देखकर सब ख़ुश हो गए लेकिन ये ख़ुशी ज्यादा समय के लिए नहीं रहा मेरे जुड़वां भाई ने आगे बढ़कर पैसा और चाकू उठाया ये देखकर सभी लोग थोड़े समय के लिए मौन लो गए फिर हमारे पिता जी ने हमारा नाम रखा- सहस्त्र बाहु
सहस्र यानी अपने हाथ या दिमाग़ की ताकत और बाहु मतलब बलवान सबको लगता था कि मैं पढ़ाकू और बाहु बलवान बनेगा और हुआ भी कुछ ऐसा। मेरी रूचि ज्ञान की ओर जाता था इसलिए मैं अपने बाबा के कार्यों में हाथ बंटाता था लेकिन बाहु के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था।
18 साल की उम्र में बाहु ने पहला खून किया और वो भी गांव के सरपंच का, सभी गांव वाले भड़क कर बाहु को मारने के लिए दौड़े बाबा ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश किया लेकिन वे नहीं माने और बाहु को घसीटते हुए एक झोपड़ी में ले जाकर आग लगा दी।
लेकिन बाबा ने सबकी आंखों में धूल झोंककर बाहु को बचा लिया और उसे दुनिया की नजरों से बचाएं रखा लेकिन बाहु अपने साथ हुए अपमान के प्रतिशोध में जल रहा था उसने पुरे गांव को जलाकर भस्म करने की कसम खाई।
वह काली शक्तियों की साधना करने लगा और कई तरह की तन्त्र विद्या सिखने लगा , इधर मैं अपने बाबा के कार्यों को करते करते लगभग पुरी तरह से सिख गया, जब हम तीस साल के हुए तो बाबा हमें छोड़कर चले गए जिससे राज वैद्य का सारा जिम्मा मेरे सर पर आ गया , मैं दिन रात उसी कार्य में व्यस्त रहने लगा ।
इधर प्रकाश यानी दिव्या और दृष्टि के पिता की शादी हुआं और साल भर में उनके यहां भी जुड़वां बच्चे पैदा हुए वो भी लड़की, उन्हें देखकर प्रकाश को कोई हैरानी नहीं हुआ क्योंकि मेरे बाबा ने दस साल पहले ही अपने दिव्यदृष्टि से देख लिया था कि उन्हें दो जुड़वां बेटियां पैदा होंगे, इसलिए उनका नाम रखा गया दिव्या और दृष्टि, दिव्या काफी शांत और अच्छी लड़की थी लेकिन दृष्टि स्वभाव से चंचल थी और उसे दूसरों को रूलाने में बहुत मजा आता था।
आज काम जल्दी खत्म होने की वजह से मैं घर जल्दी आ गया तो देखा बाहु काली शक्तियों की साधना कर रहा था और थोड़ी देर बाद सो गया मैंने उसे उस काली शक्तियों के जाल से बचाने के लिए उसके सारे चीजों को लेकर किसी सुरक्षित जगह पर छुपाने के लिए आगे बढ़ा तभी मुझे प्रकाश की याद आया मैंने उसे वह सब समान दे दिया ताकि वो उसे सही जगह छुपा दे लेकिन प्रकाश किसी काम के लिए जाने के लिए जल्द बाजी में वह समान अपने घर में ही छुपा दिया।
तभी दृष्टि एक दिन खेलते खेलते उस कमरे में पहुंच गई तभी उसे वह सब समान मिल गया वह उसे खोलकर देखने लगी, उसके अंदर एक पुस्तक जिसमें दुनिया में राज करने का राज छुपा था उसे अपने साथ ले गई उसके मन में काली शक्तियों ने अपना डेरा जमाना शुरू कर दिया था वह भी राज करने के लालसा में काली शक्तियों की साधना करने लगी।
इधर बाहु अपने सामानों को न पाकर पागल हो गया और मुझसे झगड़ा करने लगा फिर एक रात अंधेरे में वह घर से निकल गया घूमते घूमते वह प्रकाश के घर से गुजरा तो देखा वह पुस्तक तो दृष्टि के पास है जो इस समय उसकी साधना कर रही है उसे देखकर बाहु के मन में एक खौफनाक प्लान जन्म ले रहा था।
अभी ये मुश्किल खत्म नहीं हुआ था कि गांव में एक भीषण महामारी ने जन्म ले लिया जो पुरे गांव में जंगल के आग की तरह फैल गया, कोई भी दवा काम नहीं कर रहा था जीना दुभर हो गया गांव के 5% लोग ही स्वस्थ थे, सभी शिकायत लेकर वैद्य यानी मेरे पास आए मैंने उन्हें दिलासा दिया कि मैं जल्द से जल्द उनके लिए दवाई बना दूंगा ।
मैं और प्रकाश दिन रात उस बिमारी को खत्म करने की दवा बनाने लगे एक सप्ताह के बाद हमें सफलता मिला उस दवा से काफी हद तक सुधार हो रहा था जिससे हम और भारी मात्रा में उसको बनाने लगे ।
बाहु को ये पता चला तो उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए निकल पड़ा, उसने दृष्टि को बहलाया मैं तुम्हें इस गांव की रानी बना दूंगा लेकिन तुम्हें मेरा एक काम करना पड़ेगा वह जानता था उसे सहस्र अपने प्रयोग शाला में घुसने नहीं देगा इसलिए दृष्टि को मोहरा बनाया।
दृष्टि ने उसकी बात मान ली, बाहु उसे एक पुड़िया देते हुए कहा - इसे तुम उन दवाइयो के साथ मिला देना दृष्टि उसे लेकर अपने पापा के पास जाती है तभी तीन चार मरीज आ जाते हैं हम उन्हें देखने चले जाते हैं और वहां दृष्टि को नजर रखने के लिए बोलते हैं।
दृष्टि को तो इसी पल का इंतज़ार था उसने वह पुड़िया उस दवा में मिला दिया और वापस आ गई।
हमारे लिए वह लोगों को बचाने वाला दवा था लेकिन वह असल में तो कुछ और ही था।
सभी गांव वालों को वह दवा पिला दिया गया उस समय तो सब ठीक ठाक था लेकिन अगले दिन हमारे घर के सामने लाशों का ढेर पड़ा था जिसे देखकर हमारे पैरों तले जमीन खिसक गया।
जिस जिस आदमी ने उस दवाई को खाया वो सब मर गए इधर बाकी गांव वाले हम पर आरोप लगाने लगे। मुझे समझने में देर नहीं लगा कि ये सब बाहु का काम है अब मैंने गांव वालों को सब सच सच बताने का फैसला लिया और उन्हें सब कुछ बता दिया। वह अपने साथ हुए अपमान का बदला लेना चाहता था इसलिए ऐसा किया।
पंचायत में फैसला सुरू हुआ प्रकाश और कुछ गांव वाले जिनका हमने प्रयोग करके देखा था उन्होंने गवाही दिया जिससे मैं बेकसूर साबित हुआ, फिर बाहु को बुलाया गया वह मुस्कुराते लगा, गांव वालों ने उसके काली शक्तियों के समान को देखा जिससे यह साबित हो गया कि वही गांव वालों की मौत का कारण है इसलिए गांव वाले भड़क गए और उसे एक पेड़ पर बांधकर जिंदा जला दिया।
और मेरे सर पर भी गांव वालों की मौत का कलंक लगा दिया गया क्योंकि हमने बाहु को सबसे छुपा कर रखा था।
इस कलंक के साथ हम और प्रकाश यहां से चले जाना ही उचित समझा, प्रकाश और उसकी पत्नी किसी काम की वजह से एक दिन के लिए वहां रूकना पड़ा लेकिन दिव्या और दृष्टि अपने दादी के साथ अपने मामा के यहां चली गई।
अगले दिन खबर आया कि सुरजपुर गांव में आग लग गई है पुरा गांव श्मशान घाट बन चुका है। मैं समझ गया ये सब बाहु की अतृप्त आत्मा का काम है। वह सभी गांव वालों की आत्मा को वहीं कैद कर लिया।
मैं सबको मुक्ति दिलाने और बाहु की आत्मा को नष्ट करने के लिए पैरानॉर्मल सिखने लगा और एक दिन मैं उस गांव में प्रवेश हुआ।
पुरा गांव विरान हो चुका था मैंने बाहु के आत्मा को तो नष्ट कर दिया लेकिन गांव वालों की आत्मा को मुक्ति नहीं दिला पाया जिससे मैं पैरानॉर्मल एक्सपर्ट के पद को छोड़कर जंगलों में अपना मन शांत करने चला गया।
लेकिन आज तुम्हारे और दिव्या की वजह से उस गांव वालों की आत्मा को मुक्ति मिल गई, शायद नियती चाहती थी कि तुम्हारे हाथों से उन गांव वालों की मुक्ति हो।
समाप्त

