दिवास्वप्न
दिवास्वप्न
जुगनी सपना देख रही थी। उसने देखा वह समुंदर किनारे खड़ी है। तभी आसमान से एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर उसकी तरफ आता है, और उसको घोड़े पर बैठा कर एक सुंदर से और सोने की तरह चमकते हुए महल में लेकर आता है। वह महल में आकर झूम उठती है।
जुगनी राजकुमार से कहती है:- क्या यह महल सोने का है?
आप मुझे अपने साथ लेकर आए हैं तो क्या अब यह महल मेरा भी है?
तुम मुझे क्यों लेकर आए हो ?
क्या मुझसे प्यार करते हो ?
मुझे यहां महल में बहुत अच्छा लग रहा है, अब मैं यहां से वापस नहीं जाऊंगी।
तभी वह देखती है कि एक राजकुमारी भी महल में है। जिसका नाम शहदी है। वह राजकुमार को बुला रही है ।
जैसे ही राजकुमार शहदी के पास गया, शहदी ने राजकुमार को अपनी बांहों में भर लिया।
लेकिन राजकुमार प्रताप ने उसको अपने से दूर कर दिया।
राजकुमारी शहदी बोली:- मैं तुमसे प्यार करती हूं ।
राजकुमार बोला:- लेकिन मैं अभी बहुत थका हुआ हूं।
मुझे आराम करना होगा, तुम अपने कक्ष में जाओ।
शहदी ने कहा:- लेकिन यह तुम किसे साथ में लाए हो ?
यह कौन है?
राजकुमार ने कहा:- यह जुगनी है, इसको महल की रानी बनाऊंगा।
शहदी बोली:- लेकिन तुमने तो मेरे से कहा था कि मुझे रानी बनाओगे।
राजकुमार ने कहा:- तुम मुझसे प्यार करती हो लेकिन मैं जुगनी से भी प्यार करता हूं। तुम दोनों मेरी रानी बन कर
महल में रहो।
शहदी बोली:- ऐसा नहीं हो सकता। एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती।
तभी शहदी को गुस्सा आता है, और वह जुगनी को धक्का मारने के लिए आगे बढ़ती है।
तभी जुगनी का सपना टूट जाता है।
