दिवाली दिलवालों की
दिवाली दिलवालों की
दिव्या के घर के पास झुग्गियों का एक जमावड़ा था जिसमें बंजारे रहते थे जो रोजगार के लिए अपनी जमीन और अपनी पहचान भूल कर दूसरे शहरों में घूमते थे। इन झुग्गियों में रहने वाले परिवार में आदमी-औरत दोनों ही काम करके अपनी रोजी - रोटी कमाते, आदमी जूते की फैक्ट्रियों में काम करते तथा औरतें घरों में झाड़ू बर्तन का काम करती ।
जिंदगी की कुछ मुश्किलें कम जरूर हो गई थी इन लोगों की, अचानक विश्व में व्याप्त कोरोनावायरस की दस्तक इस शहर में भी पड़ गई, लॉकडाउन के दौरान 3 महीने तक घर में रहने तथा लॉकडाउन के बाद कई लोगों की नौकरियां चली गई क्योंकि जूतों की फैक्ट्री में ताले लग गए और उधर संक्रमण के डर के कारण लोगों ने काम वालियों को भी निकाल दिया।
दिव्या के घर में भी रानू नाम की एक बंजारन काम करती थी लॉकडाउन के दौरान उसके पति की नौकरी चली गई तथा घर की सुरक्षा को देखते हुए रानू को भी कुछ समय के लिए काम करने से मना कर दिया गया लेकिन दिव्या के परिवार वाले रानू की छोटी मोटी मदद करते रहते।नवरात्र के दौरान रानू अखबार में कुछ लपेटे हुए दिव्या के घर आई, बाहर से ही आवाज लगाते हुए बोली"अम्मा जी हम आए हैं रानू"।
दिव्या की दादी और मां नवरात्रि की अष्टमी की पूजा की तैयारी कर रही थी अतः दरवाजे पर दिव्या आई और बड़े प्यार से रानू को आंगन में बैठा कर अंदर अपनी मां को रानू के बारे में बताने चली गई।
कुछ देर बाद दिव्या एक कप चाय और कुछ बिस्किट लाकर रानू को देते हुए बोली"रानू दीदी बहुत दिनों बाद दिखी, कैसी हो? सब कुछ सही चल रहा है?"
"कहां दिव्या दी बस रोटी का इंतज़ाम हो जाता है, रोजगार तो अब हमारे पास कोई रहा नहीं, सोच रहे हैं वापस अपने गांव चले जाएं"।
मैंने सोचा जाने से पहले एक बार अम्मा जी और भाभी जी से मिलाओ ,कहां है वह लोग ?चाय पीते हुए रानू बोली।
"अष्टमी की तैयारी कर रहे हैं ,आप बताओ यह न्यूज़ पेपर में क्या लपेट के लाई हो"जिज्ञासा से दिव्या ने रानू से पूछा।
अपने आंचल में हाथ पूछते हुए रानू बोली" अरे दीदी,मुझे पता है अम्मा जी अष्टमी पूजन बड़े धूमधाम से करती हैं यह देखो मैं उनके लिए काली मैया की मूर्ति अपने हाथों से बनाकर लाई हूं"।
मूर्ति देखते ही दिव्या के मुंह से "वाउ! कितनी सुंदर मूर्ति है ,सच में यह आपने बनाई है!, इसकी तो आंखें बोल रही है साक्षात काली मैया की छवि साफ-साफ इसमें दिख रही है" ,ऐसा बोलते हुए दिव्या ने अपने मोबाइल से उस मूर्ति की कई तरह से फोटो खींचे और किसी को भेज दी।
रानू दीदी आपने कभी मुझे अपनी कला के बारे में नहीं बताया मेरे कई दोस्त ऐसी कला को प्रोत्साहन देने के लिए काम करते हैं और कई के अपने एनजीओ हैं अगर उन्हें पसंद आ गई तो आपको रोटी की चिंता करने की जरूरत नहीं रोजगार आपके पास चल कर आएगा"।
दिव्या की यह बात सुन रानू हताश होते हुए बोली "दीदी बच्चों की भूख के आगे हमने अपनी कला को छोड़ दिया ना हमारे पास भरपूर संसाधन है और ना ही कोई हमारी सच्चे मन से मदद करता है अब यह बातें तो हमें केवल मन बहलाने वाली लगती है।देखो जितना मेरे पास था मैंने उसी से यह मूर्ति बनाई है और मेरे पास इस में रंग भरने के लिए रंग भी नहीं थे अपनी खुशी से मैंने यहअम्मा जी के लिए बनाई है।"
" रानू दीदी अभी यह इतनी खूबसूरत लग रही है जब इस में रंग भर दिया जाएगा तो यह और सुंदर हो जाएगी।"दिव्या और रानू बात कर ही रहे थे , कि अंदर से अम्मा जी आंगन में आकर बैठ गई और रानू से उसका हाल- चाल पूछने लगी, और दिव्या अपने लैपटॉप में कुछ काम में व्यस्त हो गई।कुछ राशन और कुछ पैसे देकर रानू को उस दिन दिव्या के घर वालों ने, अपने घर से विदा कर दिया।
दशहरे के बाद अचानक दिव्या रानू की झुग्गी के बाहर दो चार लड़के और लड़कियां के साथ पहुंच गई, रानू का पता पूछते हुए हैं एक लड़का की मदद से रानू की झोपड़ी में पहुंच गई, अपनी दिव्या दीदी को देख कर रानू बहुत खुश हुई और आदर सत्कार के साथ अपने दीदी की ख़ातिरदारी में लग गई, अपने दुपट्टे में बंधे कुछ पैसे निकालकर अपने बेटे से बोली "जा लल्ला , लाला की दुकान से दीदी के लिए ठंडा ले आ।"
दिव्या ने उस बच्चे को रोकते हुए कहा"रानू दीदी ,ये सब हम बाद में ले लेंगे, देखो आज आपके घर रोजगार चलकर आया है ,इस दिवाली साक्षात लक्ष्मी जी आपके घर आने वाली है, अब आपको किसी के घर में जाकर काम करने की जरूरत नहीं है अब आप अपना खुद का काम कर सकती हैं, यह सब मेरे दोस्त हैं जो आपकी इसमें मदद करेंगे आप अपने साथ वाली और औरतों को भी बुला लो हम सब मिलकर सारी बातें तय कर लेते हैं।"
"सच दीदी"रानू की आंख में चमक और मुझसे यह शब्द निकले।
वही अपनी झोपड़ी के बाहर से रानू सबको आवाज़ लगाकर बुलाने लगी कुछ ही मिनट में 5 -6 औरतें आकर एकत्र हो गई।रानू की काली मैया की मूर्ति दिव्या में रंग भर के अपने साथ लाई थी ,उस मूर्ति को दिखा कर दिव्या के साथ आए हुए एक लड़के ने उन औरतों कोसंबोधित करते हुए कहा"कमाल की कारीगरी है आप लोगों के हाथ में, यह आप लोगों का खानदानी पेशा है और हम चाहते हैं आपको अब रोटी की कोई चिंता न हो, साथ में रोजगार भी आपके हाथ में हो, दिव्या ने मुझे आप लोगों के हुनर तथा माली हालत के बारे में बताया और हम ऐसे ही कारीगरों को प्रोत्साहन देते हैं मैं और मेरी पूरी टीम आप लोगों की भरपूर मदद करेगी आप लोगों को काम करने की जगह और सामान भी उपलब्ध कराएगी, बस आप लोगों की कार्य क्षमता तथा सहयोग हमें चाहिए, आने वाली दिवाली आप लोगों के लिए भी खुशियां लाए, समृद्धि लाए, यही हम लोग चाहते हैं, तो आप सब लोग इसके लिए तैयार हैं"
वहां मौजूद सारी औरतें खुशी से चहक उठी और बोली" हां भैया हां"
दिव्या के साथ आई एक लड़की रानू दीदी के कंधे में हाथ रखते हुए बोली "यह दिवाली दिल वालों की है और आप दुनिया को बता दो कि आपके हाथों में कितना हुनर छुपा हुआ है। वैसे भी इस बार दिवाली का स्वरूप बदलने वाला है कोरोनावायरस के कारण लोग महंगे-महंगे आइटम खरीदने से बच रहे हैं और दूसरी ओर चाइनीज सामान का बहिष्कार कर रहे हैं। और हमारे पास एक सुंदर अवसर है कि हम अपना हुनर दिखा कर रोजगार अर्जित कर सके तो आप लोग तैयार हैं ना? गणेश और पार्वती की मूर्ति और दीए बनाने के लिए?"
सब औरतें एक ही स्वर में बोली" हां दीदी हां"।
दिव्या बोली फिर शुरू करते हैं कल से, सब कुछ समझा कर वह लोग वहां से चले गए। दिवाली के आसपास सारी मूर्ति और दिये तैयार हो गए आकर्षक पैकिंग कर दिव्या और दिव्या के एनजीओ वाले दोस्तों ने ऑनलाइन बुकिंग करके बंजारों को दीवाली का एक सुंदर उपहार दिया।दिव्या की एक पहल से रानू जैसे कुशल कारीगरों का हुनर निखरा तथा रानू जैसी कई महिलाओं को रोजगार भी मिला इस तरह से इस बार झुग्गियों में भी खुशियों के दिये जल पाए।।