दिवा स्वप्न
दिवा स्वप्न
एक बार एक गाँव में मंगलू नाम का लड़का था। वो बहुत आलसी था। उसे कोई काम नही सुहाता था। विद्यालय भी नहीं जाना चाहता था। गुरु जी का दिया गृह कार्य तो बिल्कुल नहीं करता था। एक ही कक्षा में दो बार अनुतीर्ण होता रहा। उसकी विधवा माँ हमेशा उसकी आलस भरी आदतों से परेशान रहती। पर मंगलू के कान पर जूं तक ना रेंगती।
एक बार कक्षा में गुरुजी ने अलाद्दीन और उसके चिराग से निकालने वाले जिन्न की कहानी सुनाई। मंगलू को बहुत पसंद आई। वो दिन भर जिन्न के बारे में ही सोचता रहा। अचानक उसने अपने आपको एक अलग ही दुनिया में पाया। वहाँ के लोग अलग ही वेशभूषा में थे। अचानक उसकी नज़र जादुई चिराग पर गई। वो बिल्कुल उसके कल्पना जैसा था। उसने चार दीनार में खरीद लिया। उसे दूर एकांत में ले गया। वहाँ जैसे गुरुजी ने बताया था वैसे ही घिसने लगा।
उसमें से जिन्न तो नहीं पर छोटी जीनी बाहर निकली। वो बहुत चंचल थी। उसने पहले ही बोला मुझे लगातार हुक्म देते ही रहना, वरना वो मंगलू को भी अपने साथ चिराग में कैद कर देगी। मंगलू बहुत खुश हुआ, क्योंकि उसके हिसाब से वो उसे बहुत काम करना होता है।
अतः मंगलू ने जीनी को अपना सब काम बता दिया। जिसे जीनी ने पलक झपकते ही कर दिया। सोच सोच कर मंगलू काम देता पर सब काम चुटकी बजाते ही कर देती।
आखिर में मंगलू के पास कोई काम ही शेष नहीं रहा तो जीनी उसकी तरफ दौड़ी और उसे घसीटने लगी चिराग के अंदर कैद करने के लिए। बेचारा मंगलू चीख रहा था मैं अपना सारा काम करूँगा, आलस नहीं करूँगा. ....
इतने में उसकी माँ की आवाज़ सुनाई दी कि आज विद्यालय नही जाना है क्या..... उठो....।
मंगलू आँखें मलते हुए अपने रात के दिवा स्वप्न के बारे में सोचकर राहत की साँस ली.... अच्छा है, स्वप्न ही था।