दिनचर्या
दिनचर्या


सुबह नींद खुली अलार्म से। उठने का मन नहीं कर रहा था।
पर कामों की याद ने बिस्तर से उठने को मजबूर कर दिया। फिर वही दिनचर्या । सफाई, बर्तन धोने , नाश्ता -खाना बनाने से लेकर कपड़े धोने तक का रूटीनी कामों की श्रृंखला। खत्म ही नहीं होती। रात नौ बजे डिनर खत्म होने के बाद राहत होती हैं ।
बालकनी में सुबह -शाम की चाय पी कर ही तरोताजा हो जाते हैं। पहले समय की कमी से मैं अकेले ही बालकनी में चाय पीती थी । सड़क पर कोई भी गुजरता तो बालकनी में डटे चेहरे उचक कर देखते। जिनको घर में काम नहीं है वो लोग बालकनी में दिन भर डटे रहते हैं।