देव भी दानव भी

देव भी दानव भी

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गांधी मैदान में पुस्तक मेला लगा था। पति और बच्चों के साथ शाम में हम लोग वहां पहुँचे। कुछ पुस्तकें ली और बच्चों को कुछ कुछ खिला कर लगभग 7 बजे हम लोग वापस आने के लिए अपनी कार में बैठ गए। पतिदेव (शिरीष)ने कार स्टार्ट की तो थोड़ी परेशानी के बाद कार स्टार्ट हुई। अभी इस बात पर हम लोग चर्चा कर ही रहे थे कि कार एक बार में स्टार्ट क्यों नहीं हुई तब तक सड़क पर आकर कार बंद हो गई। कितना भी कोशिश किए कार स्टार्ट नहीं हुई।


सड़क पर अंधेरा था, अतः हमें चिंता होने लगी। शिरीष बोनेट खोल कर निरीक्षण कर ही रहे थे कि एक लड़का लगभग 25-30 साल का आया और पूछा, ‘क्या हुआ कार स्टार्ट नहीं हो रही? कहिए तो मैं देखूँ।’ शिरीष ने साफ मना कर दिया। उसे देख कर मैं फोन पर बात करने लगी कि मैं अपने भाई को बुला रही हूँ। वो चला गया। वहाँ तो मेरा कोई परिचित था नहीं अतः हम लोग अभी मनन कर ही रहे थे कि इस समस्या से कैसे उबरे तब तक एक दूसरा आदमी आया जो पहले वाले से ज्यादा उम्र का और कुछ शरीफ लग रहा था। उसने कहा, ‘थोड़ी दूर पर मेरा गैरेज है। कहिए तो धक्का लगा कर गाड़ी को वहाँ ले चलते हैं।’ अब हमारे पास उसकी बात मानने के सिवा कोई चारा नहीं था। हमने हामी भर दी।


हमारे हामी भरते ही वो कार के बोनेट का निरीक्षण-परीक्षण किया। फिर बोला मैं पांच मिनट में वो समान लेकर आता हूँ जो जल गया है। वह पैदल ही गया और दस मिनट में कार का पार्ट अपने एक साथी के साथ लेकर आया और दस मिनट में उसे लगा कर ठीक कर दिया। कार स्टार्ट हो गई। पुराना पार्ट हमें देकर केवल नए पार्ट का दाम 200 रुपया लेकर हाथ जोड़ दिया। हमें वो बहुत शरीफ इंसान लगा। हम उसे धन्यवाद देकर आगे बढ़े। कार चंद दूर ही गई थी कि उसने हाथ से इशारा किया और कहा क्या आप अगले मोड़ पर मुझे छोड़ देंगे। शिरीष उसकी बात मान मुझे पीछे बैठने को कहा और उसे आगे बैठा लिया। मैं बच्चों के साथ बैठ कर उनसे बातें करने लगी।


मोड़ आते ही वो उतर गया और हाथ जोड़ कर आगे बढ़ गया। मैं आगे आकर बैठी और सीट पर रखे उस पुराने समान को देखने के लिए खोजी कि क्या खराब हुआ है। वो समान नहीं मिला। हम लोग समझ गए कि चालाकी से वो आदमी उसे लेकर उतर गया। हम लोग ईश्वर को धन्यवाद दे आगे बढ़े कि इतना ही पर बात खत्म हो गई। उसने हमारे साथ कुछ बुरा नहीं किया।


भगवान को याद करते हुए हम लोग आगे बढ़े। घर से दो-तीन किलोमीटर पीछे थे कि गाड़ी पुनः बंद हो गई। अब मन बहुत चिंतित हो गया। मैं और बेटा कार से उतर कर धक्का देने लगे। तभी एक लड़का पीठ पर कोचिंग का बैग टाँगे आया और कहा, ‘आंटी बैठ जाओ मैं धक्का देता हूँ।’ हम लोग अंदर से डर गए। मैं उसे मना करने लगी। पर वो नहीं माना और मेरे साथ मिल कर कार को धक्का देने लगा। थोड़ी दूर तक धक्का देने पर भी कार स्टार्ट नहीं हुई। घर थोड़ी ही दूर पर था अतः हम लोग कार को टो कर के ले जाने के विषय में सोचने लगे। उस लड़के ने एक रिक्शा वाले को रोका और कहा, ‘आंटी आप कार में बैठ जाओ हम तीनों मिल कर धक्का दे कर कार आपके घर तक पहुँचा देंगे। आप चिंता नहीं करें।।’


पिछली घटना से हम इतना डर हुए थे कि उसकी बात किसी तरह भी मानने को तैयार नहीं थे। पर वो भी जिद्द पर अड़ गया और एक और रिक्शेवाले को रोका। अब सभी मिल कर कार को ठेलते हुए घर तक कार पहुँचा दिया।


घर पहुंच कर जब हम लोगों ने उन तीनों को कुछ देना चाहे तो उस लड़के के साथ साथ दोनों रिक्शा वालो ने भी हाथ जोड़ दिया। कितना भी कहे किसी ने कुछ नहीं लिया। फिर मेरे आग्रह पर वो लोग मिठाई खा कर पानी पीए और अपनी-अपनी राह चल दिए।


मैं एक ही दिन घटे दोनों घटना पर मंथन करने लगी - एक ही शहर में लगभग एक ही समय मुझे देव भी मिले और दानव भी। मैं भगवान का शुक्रिया अदा कर अपने को धन्य समझने लगी।


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