देश की बेटी

देश की बेटी

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"सर आतंकवादियों का ये कैंप तबाह करने में सिपाही गुरदीप सिंह, लांस नायक फिलिप और कैप्टन हमीद मारे जा चुके है, आतंकवादी गुफरान भाग चुका है, वो दूसरे आतंकवादियों के साथ हम पर कभी भी हमला कर सकता है। जाते-जाते वो डायनामाइट के विस्फोट इस दर्रे का रास्ता भी बंद कर गया है।" नायक शशि पाल कश्मीर घाटी के उस दर्रे की १०० फ़ीट की खड़ी ऊंचाई को देखते हुए बोला ।

"तो क्या करना चाहिए?" लेफ्टिनेंट विजय ने दर्रे के संकरे कोने में बैठी उस पंद्रह साल की अर्ध-नग्न बच्ची की और अपनी गर्म जैकेट फेंकते हुए पूछा।

"सर हम तीनों खड़ी ऊंचाई चढ़ने के एक्सपर्ट है, हम इस दर्रे से बाहर निकल कर दुश्मनों का मुकाबला कर सकते है, इस जगह तो हमें रात की ठंड और बर्फबारी ही मार डालेगी।" जवाब सिपाही देव ने दिया।

"इस बच्ची का क्या करें ?" लेफ्टिनेंट विजय ने अपने दोनों साथियों से पूछा।

"सर बच्ची मुस्लिम है और आतंकवादियों के कैम्प में मिली है, इसे यहीं छोड़कर निकल लेते है ।" नायक शशि पाल ने डरी-सहमी बच्ची की और देखते हुए कहा। लड़की अपनी नग्नता को लेफ्टिनेंट विजय की जैकेट के नीचे छिपाने का प्रयास कर रही थी।

"नहीं…बच्ची यहाँ इन आतंकवादियों की कैद में थी और दर्जनों आतंकवादी उसे अपनी हवस का शिकार बना रहे थे, यह सतायी हुई मासूम बच्ची है इसे ऐसे नहीं छोड़ सकते।" लेफ्टिनेंट विजय ने शांत भाव से कहा।

"तो इसे भी हमारे साथ ऊपर चढ़ना होगा…" नायक शशि पाल ने दर्रे की ऊंचाई, ढलती शाम और हल्की बर्फबारी को देखते हुए कहा।

"बच्ची प्रेगनेंट है…वो इस ऊंचाई पर नहीं चढ़ सकेगी, उसे यही छोड़ना होगा ।" सिपाही देव परेशान होते हुए बोला ।

"उसे मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है, हमें बाहर निकलने का कोई और रास्ता तलाश करना होगा ।" लेफ्टिनेंट विजय ने दर्रे के कोने में आतंकवादियों के ठिकाने की और देखते हुए कहा।

"और कौन सा रास्ता है सर?" नायक शशि पाल ने पूछा ।

"तुम तो एक्सप्लोसिव एक्सपर्ट हो और आतंकवादियों के ठिकाने पर ढेरों डायनामाइट है…"

"कैसी बात कर रहे है सर, अगर दर्रे में कही भी डायनामाइट लगाया तो, या तो हम मलबे के नीचे दब कर मरेंगे और अगर आतंकवादियों के ठिकाने पर पड़े ढेरों डायनामाइट ने आग पकड़ ली तो टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे हम सबके, और वो भी इस कश्मीरी लड़की के कारण जिसकी कोख में कोई आतंकवादी पल रहा है।" नायक शशिपाल हताशा के साथ बोला।

"ऐसा कुछ नहीं होगा, हम डायनामाइट इस तरह से लगाएंगे के मलबा दूसरी और गिरेगा।" लेफ्टिनेंट विजय ने शांत रहते हुए कहा ।

१० मिनट के अंदर दर्रे के अवरुद्ध द्वार पर डायनामाइट लगा कर उन्होंने पलीते में आग लगा दी और दौड़ कर उसी कोने में आ गए जिसमें वो बच्ची बैठी थी और ख़ामोशी से रो रही थी।

"रो मत बेटी अभी हम सब यहाँ से निकल जायेंगे…" नायक शशि पाल ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा।

तभी जोरदार धमाके से पूरी कश्मीर घाटी दहल गयी और दर्रे के द्वार का मलबा छितर गया ।

"बड़ा ज़बरदस्त बारूद था सर…" देव ने हैरान होते हुए कहा।

"नहीं ये हमारे बारूद की आवाज़ ना थी, मामला कुछ और है, आओ चलकर देखते है । लेफ्टिनेंट विजय ने दर्रे के द्वार की और बढ़ते हुए कहा।

दर्रे के द्वार का नज़ारा खौफनाक था, चारों तरफ हथियारबंद आतंकवादियों की लाशों के टुकड़े पड़े थे, लाशों के टुकड़ों से अनुमान लगाना मुश्किल था लेकिन आतंकवादी सैकड़ों रहे होंगे। उन तीनों को अनुमान लगाने में कोई दिक्कत न हुई की जब वो तीनों उस कश्मीरी मुस्लिम बच्ची को बचाने के लिए दर्रे के द्वार पर बारूद लगा रहे थे उसी समय बचा आतंकवादी सैकड़ों आतंकवादियों को लेकर दर्रे को उनकी कब्र बनाने के लिए दर्रे के दूसरी तरफ बारूद लगा रहा था। लेकिन फौजियों का बारूद पहले फटा और आतंकवादियों के बारूद में समय से पहले आग लगा कर उन सबकी मौत का कारण बना ।

"सर ये देश की बेटी तो बहुत भाग्यशाली है हम लोगों के लिए, इसे बचाने के लिए हमने जो बारूद लगाया उसने सैकड़ों आतंकवादियों की जान ले ली। हो सकता है इनमें वो पापी भी हो जिन्होंने इस इस मासूम को प्रेगनेन्ट किया है। मैं खुद इसे इसके घर पहुँचाऊँगा, इसका कोई ना मिला तो बेटी की तरह इसे पालूंगा, अच्छी जिंदगी दूँगा।" नायक शशि पाल उत्साह के साथ बोला और दर्रे के कोने में बैठी भारत की बेटी की ओर बढ़ चला।


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