देखो ! सबके सामने सुना दिया
देखो ! सबके सामने सुना दिया
देखो, मैंने सबके सामने सुना दिया !
" देखो, मैंने निशा भाभी को सबके सामने सुना दिया बहुत अभिमान था उसे। बहुत इतराती थी अब देखो।" कहते हुए संजना अपने पति आदित्य से बोली
संजना की आदत थी बात बात में सबको सुनाने की।
आदित्य "क्या तुम हर बात में दूसरों को सुनाने की कोशिश करती हो और निशा भाभी बड़ी है तुमसे। तुम्हें उनका सम्मान करना चाहिए । यह तुम्हारी अच्छी आदत नहीं " कहते हुए आदित्य अपने काम में व्यस्त होने लगे
तभी तुरंत संजना आदत से मज़बूर बोली "तुम्हें तो आदत है चुप रहने की । तुम मुझे बोले ही कहां देते हो । वह हर बात में अपनी चलाती हैं जैसे वही समझदार हैं । अभी तो माता-पिता है मेरे। "
"तो क्या करूं मैं तुम्हारा घर है तुम जानो। ऐसा करने से तुम्हारे घर में लड़ाई के अलावा और कुछ हासिल नहीं होगा " गुस्से से कहते हुए आदित्य कमरे में से बाहर निकल गए
अपने पति को गुस्से में देख संजना ने ज्यादा बात करना उचित ना समझा और और मन में बड़बड़ाती हुई कहने लगी इन्हें तो कुछ भी कहना बेकार है । मेरी हर बात बुरी लगती है मेरी। अब देखो मैंने क्या बुरा किया सच ही तो कहा बहुत बनती है भाभी अपने आप को । खूबसूरत समझती है । पढ़ी-लिखी समझती है। अक्ल नहीं है धेले भर की। अच्छा किया मैंने कह दिया अब पता तो चलेगा।
बड़बड़ाते हुए संजना रसोई की तरफ चल दी
संजना और अभिषेक बहुत अच्छे भाई बहन हैं।
घर में माता-पिता और संजना और अभिषेक। चारों हंसी-खुशी जीवन जीते।
समय का पहिया चलता रहा। मां बाप ने संजना को पढ़ा लिखा दिया तथा एक अच्छे परिवार में उसकी शादी कर दी।
इधर अभिषेक भी पढ़ लिख कर एक नौकरी करने लगा नौकरी के दौरान उसकी मुलाकात निशा से हुई। वह भी उसी के दफ्तर में काम नौकरी करती थी।
बातों ही बातों में दोनों में दोस्ती हुई और मुलाकात होने लगी दोनों एक दूसरे के साथ घूमते और एक दूसरे के घर भी जाते । अभिषेक को निशा मन ही मन पसंद आने लगी। उसके विचार उसकी सुंदरता उसका व्यक्तित्व उसे भा गया और दोनों ने ही मुलाकातों में एक दूसरे के साथ होने का निश्चय किया किंतु अभिषेक के माँ पिता बहन निशा को पसंद नहीं करते थे अभिषेक ने यह बात अपने माता-पिता से की । पहले तो उन्होंने मना कर दिया परंतु अपने बेटे की इच्छा के आगे उन्होंने यह स्वीकृति दे दी । विवाह संपूर्ण हुआ ।
अभिषेक और उसके माता-पिता निशा हंसी-खुशी जीवन बिताने लगे
संजना कभी-कभी अपने मायके आती तो भाभी निष्ठा से उसकी एक आंख ना बनती। उसके हर काम में कमी निकालना उसकी आदत हो गई। परंतु निशा अपने सुस्वभाव से कर्म करती रहती और कभी कोई किसी से शिकायत ना करती।
समय बीतता गया। संजना ने पुत्र को जन्म दिया । इस अवसर पर रीति रिवाज अनुसार अभिषेक और निशा ने अपने सार्मथ्य से ज्यादा संजना को खूब भेंट उपहार दिए। किंतु संजना को एक आंख ना भाये । उसने अपनी भाभी और भाई को बहुत सुनाया।
मन में क्षोभ का भाव लिए अभिषेक और निशा अपने घर आ गए और ले आए लज्जा और संकोच का भाव।
मन ही मन निशा सोचती रही क्यों सुनाते हैं लोग।
सब जानते हैं कि हम सब एक दूसरे के पूरक हैं।
चुप हूं यूं नहीं कि अल्फाज कम है
चुप हूं क्योंकि अभी लिहाज बाकी है
इस कहानी का संदेश है कि वक्त हर किसी का आता है। सुख-दुख, ऊँच नीच कर्मों की संगति कुसंगति हर व्यक्ति के साथ जुड़ा है।
जीवन में हर व्यक्ति को हर समस्या के साथ जूझना पड़ता है। परंतु लोगों को यह समझना चाहिए कि दूसरों को कभी नहीं सुनाना चाहिए। चाहे वह सच ही क्यों ना हो।
सुनाना ऐसे लगता है जैसे कि व्यक्ति को प्रताड़ित किया जा रहा हो किसी की आत्मा को अप्रसन्न करके खुद को कैसे प्रसन्न किया जा सकता है ? ?? दूसरों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करके आप कैसे खुश हो सकते है????
इस कहानी के माध्यम से मैं आपके विचार जानना चाहूंगी ।
