डोसा बिना भी क्या जीना
डोसा बिना भी क्या जीना
वह कहते हैं ना, "कुछ लोग खाने के लिए जीते हैं और कुछ लोग जीने के लिए खाते हैं।"
मैं भी जीने के लिए ही खाती हूँ, आप लोगों की तरह पर डोसा को मैं कभी ना नहीं बोल पाती। कितने भी व्यंजन हो, पकवान हो,
डोसा के आगे सब फेल मेरे लिए। कॉलेज के दिनों में खूब मस्ती की।
खाने को लेकर भी दोस्तों में हमेशा ट्रीट हुआ करती थी। छोटी-छोटी खुशी पर हम पार्टी कर लिया करते थे।
सबका रहता था," क्या क्या मँगाना है ? जल्दी बताओ।"
मैं जहाँ बोलती," मेरे लिए ....."
सभी मुझसे पहले बोल पड़ते, "डोसा मँगाना है।
समझ गए, डोसा फैन। जरूर तुम पिछले जन्म में साउथ इंडियन रही होगी।" और मैं हँस पड़ती। मैं जहाँ भी जाती पहले डोसा ही खोजती। सभी कहते," तुम अपना नाम बदल कर डोसा रख लो।"
एक बार हम सभी पूरा परिवार शादी में गए। मेरे मौसेरे भैया की शादी थी। बहुत मजा आ रहा था। बारात जाने का प्रोग्राम बन रहा था। हमारे समय लड़कियाँ कम जाया करती थी। पर किसी तरह मैंने अपने लिए सब सबको मनवा लिया।
फिर हम पाँच लड़कियों को जाने की आजादी मिली।" जल्दी तैयार हो जाओ सभी और तुम लड़कियां अच्छे से तैयार होना। लेट हुआ तो मैं यहीं छोड़ दूँगा।"
भैया का आदेश आया।
हमने भी जोश ने कहा ,"हाँ, भैया।"
तभी छोटे भैया बोल पड़े,"अरे ! हम लोग तो एक बात भूल ही गए। भगवान अब क्या होगा ? टाइम भी कम रह गया।"
सभी डर गए, अचानक यह क्या हो गया ? बारात निकलने को है। क्या मिस रह गया।
"क्या हुआ बताओ बंटी ?"
पापा परेशान होकर बोले।" अरे पापा ! हमने उन्हें तो बताया ही नहीं कि बेबी आ रही है। दूल्हे को बाद में पहले बेबी के लिए डोसा जरूर बनवाइएगा। वर्ना ये रूठ जाएँगी और दूल्हे की बहन को मनाना बहुत मुश्किल होता है।" सभी जोर से हँस पड़े और मैं भागकर अपना मुँह छिपाने दौड़ पड़ी।
