डिपेंड
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नीरजा और उदय दोनों आमने -सामने बैठे थे , उन दोनों के बीच संन्नाटा पसरा हुआ था । उदय के द्वारा सामने टेबिल पर चाय के खाली कप रखने पर कप की खनक सुनाई दी , उदय का कप अपने से दूर रखे कप को बेकरार हो कर देख रहा था ।उफ ! इन दोनों के बीच की अनबन से हमारी शामत आई हुई है। हमें तो चाहे जब टेबल पर पटक दिया जाता है । कभी चीनी इतनी जोर से घोली जाती है की हमारी खाल ही उधड़ जाती है । हमारी शक्ल इस बेरुखी से भौडी हो जाती है । हमें डस्टबिन के हवाले कर दिया जाता है हमारे साथ के चार सदस्य इसी तरह जाचुके हैं । अब हम दोनों की बारी है । इन की अनबन हानी कारक होती जा रही है अब नीरजा जी को कौन समझाए कि अब बाई आने के सपने देखना छोड़ दें ?बाई अगर आई भी तो उसके लिए दस हजार का थर्मामीटर सेनिटाइजर , साबुन, मोटी तनख्वाह अलग से , बाई का हेल्थ सर्टिफिकेट देना होगा ।हर समय हेल्थ पर निगरानी करनी होगी वर्ना सोसायटी वाले हंगामा खड़ा कर देंगे । कुछ भी हो लेकिन यह सब पाकेट पर भारी है । उदय जी को तनख्वाह भी तो नहीं मिली है । उफ़ ! तौबा तौबा ये नीरजा जी तो बस .... समझना ही नहीं चाहती ।
नीरजा को अपने अंदर सकारात्मक सोच रखकर उदय के साथ मास्क बनाने का काम शुरू कर देना चाहिए । ये अवसाद के बादल कुछ समय बाद छंट ही जाएंगे । उदय जी भी मास्क बनाने में नीरजा का सहयोग चाहते हैं । करोना काल में उदय को कंपनी वालों ने काम से निकाल दिया है ।लेकिन नीरजा अड़ियल रुख अपना रही है । बेचारे उदय जी करें तो क्या करें ?
सुनो ! कप फुसफुसाते हुए दूसरे कप से बोला " देख मां जी आ रही हैं शायद कोई हल निकले ।" मां जी नीरजा को इस तरह उदास देखकर बोली "नीरजा तुम इतना दुखी मत हो, इंसान को अपने पर विश्वास होना चाहिए दूसरों पर डिपेंड होने से काम नहीं चलता फिर मैं हूं ना । तुमऔर उदय मास्का बनाने का काम करो, थोड़ी बहुत मदद आओ मैं भी तुम्हारी करूंगी" कहती हुई दोनों कप को उठाकर ट्रे में रखकर रसोई की तरफ बढ़ गई । ट्रे में पास पास बैठे हुए कप मुस्कुरा रहे थे।