ढाई आखर प्रेम का
ढाई आखर प्रेम का




कृति को, सोते हुए डेढ़ वर्षीय भोले और मासूम बेटे अभि के गालों और माथे को चूमते हुए देखकर, समीर के मन में एक टीस सी उठी पर वह कुछ बोला नहीं। उसकी मां ने भी उसे ऐसे ही चूमा होगा कभी।
अरे आज मदर्स डे भी तो है।
कल उसने भी अपनी 'माॅम को, अभि को गोद में लिये उनकी रंगीन फोटो वाली कुशन उपहार स्वरूप कोरियर से भेजी है शायद दोपहर तक ज़रूर मिल जाएगी उन्हें। फेसबुक पर माॅम के लिये प्यारे प्यारे मैसेज भी पोस्ट कर दिये हैं। अब तक तो देखकर खुश हो गई होंगी। पापा को भी अभि की कुछ वी डी ओ क्लिप्स भेज देता हूं। बहुत याद आ रहे हैं आज तो मम्मी पापा। समीर सोचे जा रहा था। कितना लंबा समय हो गया उनसे मिले।
माॅम डैड सुनते ही आ पहुंचे थे यहां। अभि की प्रीमैच्योर डिलीवरी की खबर सुनकर भला कैसे रूक सकते थे वो? सुपौत्र का जन्म उनके सपनों में रंग भरने के लिये काफी था। कितने खुश थे दोनों। पूरे सात साल बाद घर के आंगन में नन्ही किलकारियां गूंजी थीं। इतना लंबा इंतजार। पोते का नाम अभिनंदन रखकर कितने खुश थे पापा।
मम्मी पापा दोनों ही रिटायर हो गए हैं अब तो। यहीं रहना चाहिये था उन्हें। अभि को भी जरूरत थी उनकी। मगर कृति..ओफ्फ!
बुलाना चाहता हूं, लेकिन कृति के अवमानना वाले व्यवहार से आहत दोनों की यहां से वापसी, पिछले साल भर से नाराज़गी, उनकी खुद्दारी उन्हें यहां कभी नहीं आने देगी। दूर से ही स्काइप पर अभि की शैतानियों और मोहक क्रियाकलापों को देख-सुनकर संतुष्ट हो जाना अब उनके लिये काफी था। वो कभी नहीं आएंगे यहां। कैसी बेबसी है। उफ्फ़...समीर का सिर भन्ना रहा था बीती बातें याद कर।
--जरा डिस्प्रिन तो देना। बहुत दर्द हो रहा है सिर में।
--जल्दी लो ये गोली और मुझे स्कूल छोड़ दो। क्लीनिक ज़रा लेट चले जाना सुम्मू! आज मदर्स डे स्पेशल इवेंट है मुझे ही को-आर्डिनेट करना है सब। बेबू!जल्दी करो। प्लीज
--अभि ज्यादातर बिल्ली के उसी सोफ्ट ट्वाय से खेलता है, जिसे उसकी दादी बड़े प्यार से उसके लिये लाई थीं और हमेशा म्याऊं म्याऊं की आवाज़ करते हुए अभि को बहलाती थीं। कितनी बुरी तरह सोफ्ट ट्वाय को माॅम के हाथों से छीन कर दूर फेंक कर कृति कैसे चीखी थी-
--क्या लगा रक्खा है ये मेरे बच्चे के साथ। जानवरों की बोली सीखेगा अब ये। यही सिखाना बाकी था बस।
मम्मी कितना रोईं थीं तब।
यदा-कदा अभि को खाना खिलाते समय भी मम्मी के लिये परेशानी का सबब बन गई थी कृति।
एक बार तो हद ही कर दी थी उसने, जब चम्मच के बजाय अपनी उंगली की पोर से अभि को माॅम पालक का साग चटा रही थीं। कटोरी फेंककर फुफकार उठी थी वो मम्मी पर। सारे जर्म्स लपेट रखे हैं कटी फटी गंदी उंगलियों में। पता नहीं समझ क्यों नहीं आता यहां किसी को भी। मेरे बेटे को कुछ हो गया तो।
उसके ऐसे ही कटु व्यवहार से दुःखी होकर मम्मी पापा उदासीन से होकर वापस चले गए थे बैंगलोर।
तभी फोन बजने से समीर की तंद्रा टूटी-
-बेटा!हम दोपहर दो बजे तक पहुंच जाएंगे एयर पोर्ट पर.. लेने आ जाना हमें।
--जी.. जी.. माॅम बिल्कुल। उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो पा रहा था।
--ये.. ये.. क.. क.. कैसे हुआ माॅम?
--बहू ने बताया नहीं। अरे कल तो खूब देर तक बातें हुईं थीं हमारी। उसने बहुत साॅरी फील किया। हमारे टिकट वीजा सबके इंतज़ाम भी करा दिये हैं। बच्चे तो ग़लती करते ही हैं बेटा! माँ बाप का बड़प्पन तो उन्हें माफ़ करने में ही है।
कनखियों से देखते हुए कृति मुस्कुरा रही थी।
समीर कार की चाबी थामे अभि को गोद में उठाए कृति का हाथ थामे कोई फिल्मी गीत गुनगुनाते हुए मेन गेट की ओर मुड़ गया था।